बरेली : बिजली विभाग की लापरवाही और नौकरशाही की सुस्ती ने एक बार फिर बरेली के औद्योगिक क्षेत्र की नब्ज़ पर चोट की है।

बरेली: बिजली विभाग की लापरवाही और नौकरशाही की सुस्ती ने एक बार फिर बरेली के औद्योगिक क्षेत्र की नब्ज़ पर चोट की है। 11 केवी उपकेंद्र अंद्रपुरा से टिसुआ तक की भूमिगत विद्युत लाइन का काम महीनों से रुका पड़ा है, और विभाग की नाकामी का खामियाजा अब उद्योगों को भुगतना पड़ रहा है।

200 से अधिक औद्योगिक इकाइयाँ बार-बार की ट्रिपिंग, वोल्टेज की अस्थिरता और बिजली आपूर्ति में लगातार बाधाओं से कराह उठी हैं। उत्पादन ठप पड़ने से लाखों नहीं, करोड़ों का नुकसान हो चुका है लेकिन विभाग के अफसरों के दफ्तरों में फाइलें आज भी “अनुमोदन की प्रतीक्षा” में धूल खा रही हैं।

बरेली के भारतीय उद्योग संघ आईआईए ने सरकार की “औद्योगिक विकास” की नीति को मज़बूती देने के लिए अंद्रपुरा क्षेत्र में 132 केवी उपकेंद्र के निर्माण में पूरा सहयोग किया।

यह वही उपकेंद्र है जो अब 200 से अधिक उद्योगों को 33 केवीए और 11 केवीए की लाइन से बिजली देता है। जिस विभाग को इन उद्योगों के कंधों पर खड़ा होना चाहिए था, वही विभाग अब उनकी रीढ़ तोड़ रहा है। उपकेंद्र से निकली फीडर भूमिगत लाइन का काम महीनों से अधर में लटका है।

और जब तक यह काम पूरा नहीं होता, उद्योगों को रोज़ाना झेलनी पड़ती है वोल्टेज की गिरावट, मशीनों का जलना और बार-बार का उत्पादन रुकना। 28 जुलाई को हुई जिला उद्योग बंधु बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया था कि अंद्रपुरा सब-स्टेशन से टिसुआ तक भूमिगत विद्युत लाइन तत्काल बिछाई जाएगी।

प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंज़ूरी भी मिल गई थी। यह भी तय हुआ कि जैसे ही एनएचएआई और वन विभाग की अनुमति प्राप्त होगी, 15 दिनों के भीतर काम शुरू कर दिया जाएगा।

अब सवाल यह है कि जब उद्योग बंधु जैसी उच्चस्तरीय बैठक में प्रस्ताव पारित हो चुका था, तो फिर बिजली विभाग ने इसे अमल में क्यों नहीं लाया? क्या यह फाइलें केवल दिखावे के लिए तैयार की जाती हैं।

औद्योगिक क्षेत्र के व्यापारियों का कहना है कि 11 केवी लाइन की खराब स्थिति ने पूरे प्रोडक्शन सिस्टम को अपंग कर दिया है। कभी वोल्टेज नीचे गिर जाता है, तो कभी ट्रिपिंग से पूरी लाइन बंद हो जाती है। कई बार महंगी सीएनसी और लेजर मशीनें खराब हो चुकी हैं।

हर दिन उत्पादन रुकने से फैक्ट्रियाँ घाटे में जा रही हैं और मज़दूरों को मजबूरी में छुट्टियाँ दी जा रही हैं। एक उद्योगपति ने कहा, सरकार ‘मेक इन यूपी’ और ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ की बात करती है, लेकिन हकीकत यह है कि उद्योग बिजली के बिना ठप हैं। अगर यही हाल रहा तो बरेली का उद्योग धंधा दम तोड़ देगा।”यह केवल उद्योगपतियों की समस्या नहीं है, बल्कि राज्य सरकार के राजस्व का भी नुकसान है।

बरेली के ये 200 से अधिक उद्योग हर महीने करोड़ों रुपये टैक्स और बिजली बिल के रूप में सरकार को देते हैं। लेकिन विभाग की सुस्ती से ये इकाइयाँ अब घाटे में हैं जिससे न केवल उत्पादन घटा है बल्कि सरकारी राजस्व में भी गिरावट आई है।

अगर यही हाल रहा, तो आने वाले महीनों में कई इकाइयाँ बंद हो सकती हैं और यह न केवल रोजगार पर असर डालेगा बल्कि सरकार की “औद्योगिक प्रगति” की तस्वीर धूमिल कर देगा। सवाल यह है कि आखिर किसकी जिम्मेदारी है यह काम शुरू कराने की? एनएचएआई और वन विभाग की अनुमति के नाम पर महीनों से मामला लटकाना क्या यह विभागीय नाकामी नहीं?

अगर उद्योगों की बर्बादी पर कोई जवाबदेही तय नहीं होती, उधर सरकार लगातार उद्योग व्यापार को बढ़ा रही है वहीं दूसरी ओर बिजली विभाग के अधिकारी उसको पलीता लगाते नजर आ रहे हैं।

विभाग के कई अफसरों ने दबी जुबान में स्वीकार किया है कि “फाइलें आगे बढ़ाने की प्रक्रिया धीमी है” और “अनुमोदन में तकनीकी औपचारिकताएँ लंबी हैं।”

लेकिन सवाल उठता है क्या उद्योगों की बर्बादी का इंतज़ार किया जा रहा है?भारतीय उद्योग संघ ने इस गंभीर मुद्दे पर ऊर्जा मंत्री से हस्तक्षेप की अपील की है।

पत्र में साफ लिखा गया है कि इस कार्य की देरी से उद्योगों को वित्तीय नुकसान हो रहा है, उत्पादन रुक रहा है, और सरकार के राजस्व पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है। इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर देखा जाए और संबंधित विभागों को तत्काल स्वीकृति जारी करने के निर्देश दिए जाएँ।

उद्योग जगत का कहना है कि अगर ऊर्जा मंत्री सीधे हस्तक्षेप करें, तो यह काम हफ्तों में पूरा हो सकता है। लेकिन अगर फाइलों का खेल यूँ ही चलता रहा, तो आने वाले दिनों में यह मामला राजनीतिक मुद्दा बन जाएगा।

बरेली से रोहिताश कुमार की रिपोर्ट

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