Bareilly News : रमजान के तीनों अशरे,ज़िन्दगी को बना देते हैं बेहतर

बरेली के तीन सौ से ज़्यादा बन्दे रमज़ान मनाएंगे मक्का मदीने में।

बरेली हज सेवा समिति के संस्थापक पम्मी खान वारसी ने बताया कि बरेली के सेकड़ो बन्दे रज़मान मनाने के लिये मक्का मदीना जाएंगे साथ ही उमराह करेंगे और हर रोज़ मक्का मदीना में रोज़ा रखकर सहरी इफ्तार के साथ इबादत करेंगे,कुछ लोग 15 रमज़ान में वापसी करेंगे तो कुछ बन्दे 30 रोज़े पूरे करके लौटेंगे और बहुत से बरेली के लोग 21 रमज़ान से सऊदी अरब की मस्जिदे हरम और मस्जिदे नबीवी में एहतकाफ में बैठकर अपने वतन की सलामती खुशहाली तरक़्क़ी कामयाबी के लिये दुआ करेंगे।रमज़ान शरीफ के बारे में पम्मी खान वारसी ने बताया कि रमज़ान के 30 दिन वो दिन हैं जिसमें इंसान सब कुछ पा सकता हैं बस उसकी इबादत में रब को राज़ी करने की वो खूबियां हो जो अल्लाह को पसंद हैं,अल्लाह रमज़ान के इन 30 दिनों में बन्दे को वो सब कुछ देगा जिसका वो हक़दार हैं, रमज़ान हम सबको सब्र मदद और नेकी करने की सीख देता हैं इसलिये रमज़ान में उन सब ज़रूरतमन्दों को ज़रूर याद रखे जो सहुलियातो से वंचित हैं उनके लिये सहरी और इफ़्तार इंतेज़ाम करें इस्लाम हम सबको सब्र, मोहब्बत और मदद का पैग़ाम देता हैं आपकी मदद असल ज़रूरतमन्द तक ज़रूर पहुँचनी चाहिये ताकि वो भी रमज़ान के महीने में अल्लाह की रहमत से फ़ैज़याब हो सके,रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है,जिसमें 30 दिनों तक रोजे रखे जाते हैं, इस्लाम के मुताबिक पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, पहला,दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है,रमजान के पहले 10 दिन (1-10) में पहला अशरा, दूसरे 10 दिन (11-20) में दूसरा अशरा और तीसरे दिन (21-30) में तीसरा अशरा होता हैं।इस तरह रमजान के महीने में तीन अशरे होते हैं,पहला अशरा रहमत का होता है,दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की तौबा का होता है और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से निजात के लिए होता है,रमजान के शुरुआती 10 दिनों में रोजा-नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत हासिल होती हैं रमजान के दूसरे अशरे में मुसलमान अपने गुनाहों से माफ़ी माँगकर अपने आपको पाक साफ़ बना सकते हैं ,रमजान के आखिरी यानी तीसरे अशरे में जहन्नम की आग से निजात पा सकते हैं,रमजान महीने के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं,रोजा नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत हासिल होती हैं,रमजान के पहले अशरे में मुस्लिमों को रोज़ा नमाज़ के साथ साथ हर ज़रूरतमन्द की मदद करनी चाहिए और एक दूसरे का ख्याल रखना चाहिए ताकि किसी को कोई तक़लीफ़ न हो सब अल्लाह की राह में भलाई करें और आपसी सहयोग और तालमेल और मोहब्बते बाँटे।रमजान के ग्यारवें रोजे से बीसवें रोजे तक दूसरा अशरा होता है,यह अशरा मग़फ़िरत यानी माफ़ी माँगने का होता है,इस अशरे में लोग इबादत करके अपने गुनाहों से अल्लाह से माफी पा सकते हैं,रमजान का तीसरा और आखिरी अशरा 21वें रोजे से शुरू होकर चांद के हिसाब से 29वें या 30वें रोजे तक चलता है,ये अशरा जहन्नम की आग से निजात के लिये हैं अल्लाह अपने बन्दों के गुनाहों को बक्श देता हैं और उसको जहन्नम की आग से मुक्ति मिल जाती हैं हर बन्दे को दुआ माँगी चाहिए ताकि रमज़ान की फ़ज़ीलत से ज़िन्दगी असां हो और जहन्नम की आग से निजात मिले,मस्जिदों में रमजान के आखिरी अशरे में मुस्लिम मर्द एहतकाफ में बैठते हैं,और इबादत करते हैं ईद की चाँद रात को ही वो एहतकाफ की नीयत से बाहर आते हैं,और सबके लिये दुआ करते हैं।इसी तरह रमज़ान के पूरे महीने हर घर से मस्जिदों में इफ्तारी भेजी जाती हैं ताकि कोई भी परदेसी या ज़रूरतमन्द बन्दा रोज़ा इफ्तार कर सकें।

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