वर्ष 1950 से अबतक वैश्विक स्तर पर 8.3 से 9 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है, जो कचरे के चार से अधिक माउंट एवरेस्ट के बराबर है। अब तक निर्मित कुल प्लास्टिक का लगभग 44 फीसद वर्ष 2000 के बाद बनाया गया है। वहीं भारत में प्रतिदिन 9 हजार एशियाई हाथियों के वजन जितना 25,940 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। फिर भी, भारतीय दुनिया के सबसे कम प्लास्टिक उपभोक्ताओं में शामिल हैं। एक भारतीय एक वर्ष में औसतन 11 किग्रा प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है।

पर्यावरण में मौजूद प्लास्टिक : उत्पादित प्लास्टिक का लगभग 40 फीसद पैकेजिंग के इस्तेमाल में आता है, जिसे एक बार उपयोग किया जाता है और फिर छोड़ दिया जाता है। 1950 के बाद से उत्पादित सभी प्लास्टिक का 79 फीसद पर्यावरण में अभी भी मौजूद है।

बेहद हानिकारक : संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक हर साल लगभग 5 ट्रिलियन प्लास्टिक की थैलियां दुनिया भर में उपयोग की जाती हैं। प्लास्टिक की थैलियां पर्यावरण, समुद्र और धरती पर रहने वाले जीवों के लिए बेहद हानिकारक हैं। दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश 2002 में प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश था। कई अफ्रीकी देशों ने अपेक्षाकृत कम अपशिष्ट-संग्रह और रीसाइक्लिंग दरों के लिए जगह बनाई है। अमेरिका ने अभी तक प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, हालांकि उसके कुछ राज्यों ने स्वंय ही थैलियों पर प्रतिबंध लगा रखा है।

कचरा घर बना समुद्र : जॉर्जिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक 41 लाख टन से 1.27 करोड़ टन के बीच प्लास्टिक हर साल समुद्र में प्रवेश करता है, जो 2025 तक दोगुना होने की उम्मीद है।

20 अगस्त को भारतीय संसद ने कहा कि वह परिसर में प्लास्टिक की वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाएगी। 2 अक्टूबर से भारतीय रेलवे सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने जा रही है। ये दोनों घोषणाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के कुछ दिनों बाद आई हैं, जिसमें उन्होंने नागरिकों से प्लास्टिक के उपयोग को छोड़ने का आग्रह किया था। प्लास्टिक के खिलाफ भारत ने आंदोलन की शुरुआत कर दी है।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के पालन का आकलन करने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट अंतिम बार 2017-18 के लिए प्रकाशित की गई थी। 2018 में इसके नियमों में संशोधन किया गया था। 2017-18 में केवल 14 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट सीपीसीबी को सौंपी थी। इन 14 में से उत्तर प्रदेश में हर साल 2.06 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ। यहां पर प्लास्टिक निर्माण और रिसाइकिल की 16 अपंजीकृत इकाइयां भी थीं। वहीं गुजरात में 2.69 लाख टन प्रति वर्ष प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ।