भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के शताब्दी समारोह के अवसर पर सम्बोधन

  1. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में स्थापित की गई इस संस्था द्वारा वर्ष 2018 मेंहिन्दी की सेवा के 100 वर्ष पूरा करने के लिए मैं दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ से जुड़े सभी लोगों को हार्दिक बधाई देता हूँ। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि महात्मा गांधी के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति और मेरे यशस्वी पूर्ववर्ती, भारत-रत्न, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने, इस सभा के अध्यक्ष का पद संभाला था।
  2. स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वदेशी के साथ-साथ स्वभाषा पर भी बहुत ज़ोर दिया गया था। सुब्रह्मण्यभारती की देश प्रेम से भरी तमिल कविताओं की भावना पूरे देश में महसूस की जाती थी। हमारी भारतीय भाषाओं की जमीन और भाव-भूमि एक है। इसी एकता को मजबूत बनाने का काम हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को करना है। इस सोच के साथ महात्मा गांधी ने ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ की स्थापना की थी।
  3. मुझे बताया गया है कि चेन्नई में स्थित ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ के परिसर के जिस भवन मेंगांधी जी ने, सन 1946 में प्रवास किया था, उसे नवंबर 2014 में ‘गांधी हेरिटेज साइट’ घोषित किया गया। उसके बाद, उस भवन का पुनर्निर्माण करके, पिछले वर्ष गांधी जयंती के दिन, दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया गया।
  4. कुछ ही दिनों बाद, आगामी 2 अक्तूबर से, हम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के समारोहों की शुरुआत करने जा रहे हैं। इसी सप्ताह, इन समारोहों के लिए ‘लोगो’ और ‘वेबसाइट’ को लॉन्च करने का सुअवसर मुझे मिला। मैंने सुझाव दिया कि यह ‘वेबसाइट’ क्षेत्रीय भाषाओं में भी होनी चाहिए। ऐसा करना, गांधी जी के विचारों के अनुरूप होगा। महात्मा गांधी, हिन्दी के प्रचार के साथ-साथ, सभी देशवासियों को अपनी मातृभाषा के अलावा कम से कम एक और भारतीय भाषा को सीखने की प्रेरणा देते थे। सन 1945 में, वर्धा में दिए गए एक महत्वपूर्ण भाषण में उन्होंने उत्तर भारत के लोगों से दक्षिण भारत की कम-से-कम एक भाषा सीखने का आग्रह किया था। भारतीय भाषाओं की उन्नति को वे अपने रचनात्मक कार्यक्रमों में शामिल करते थे। उन्होंने स्वयं तमिल सीखने का उल्लेख अपनी आत्मकथा में किया है।
  5. देश की भावनात्मक एकता को मजबूत बनाने में ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ जैसे संस्थानों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। भाषाएँ लोगों को जोड़ती हैं। भारतीय भाषाओं ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को सँजोकर रखा है। भारत में अनेक भाषाएँ और बोलियाँ हैं। उन सभी का अपना अपना स्वरूप और सौन्दर्य है। यह विविधता, हमारी संस्कृति को उदार और समृद्ध बनाती है। इस संस्कृति को भाषा के विकास से जोड़ते हुए, हमारे संविधान के अनुच्छेद 351 में हिन्दी से जुड़े कुछ निर्देशों का उल्लेख किया गया है। उन निर्देशों के अनुसार, हिन्दी भाषा का प्रचार इस ढंग से करना है कि वह भारत की सामासिक संस्कृति अर्थात् composite culture के सभी तत्त्वों को व्यक्त कर सके। साथ ही, यह निर्देश भी दिया गया है कि हिन्दी, भारत की अन्य भाषाओं की विशेषताओं को आत्मसात करे।
  6. हिन्दी प्रचार के माध्यम से ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ ने राष्ट्रीय एकता और सौहार्द की नींव को मजबूत बनाया है। मुझे बताया गया है कि सभा ने लगभग 20 हज़ार सक्रिय हिन्दी प्रचारकों का नेटवर्क विकसित किया है। सभा द्वारा अन्य भाषा-भाषियों के लिए हिन्दी की परीक्षा आयोजित की जाती है। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई है कि, वर्ष 2017-18 के दौरान, ऐसे परीक्षार्थियों की संख्यासाढ़े आठ लाख से भी अधिक हो गयी है। इस सभा के प्रयासों से, अब तक लगभग दो करोड़ छात्र लाभान्वित हो चुके हैं। सभा के ‘स्नातकोत्तर और शोध संस्थान’ द्वारा लगभग 6 हजार व्यक्तियों को पी.एच.डी., डी-लिट और अन्य प्रमाण पत्र प्रदान किए जा चुके हैं। सभा द्वारा अनेक कॉलेजों के माध्यम से, हिन्दी शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि सभा के ‘राष्ट्रीय हिन्दी शोध पुस्तकालय’ में हिन्दी साहित्य की एक लाख से भी अधिक पुस्तकें हैं। इस प्रकार, ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ ने एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया है, जिसका अनुकरण देश के सभी क्षेत्रों में होना चाहिए।
  7. इसके लिए, यह अच्छा होगा कि सभी देशवासी अपने राज्य की मुख्य भाषा के अलावा, अन्य राज्यों की भाषाओं को सीखने में भी उत्साह दिखाएँ। जब कोई हिन्दी भाषी युवा, तमिल, तेलुगु, मलयालम या कन्नड भाषा सीखता है तो वह एक बहुत ही समृद्ध परंपरा से जुड़ जाता है। वह उस प्रदेश में अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सकता है। यह जानकारी उसके व्यक्तित्व में एक नया पक्ष जोड़ने के साथ-साथ, उसके लिए विकास के नए अवसर भी पैदा कर सकती है।
  8. ऐसे अनेक वैज्ञानिक शोध सामने आ रहे हैं, जिनके अनुसार, एक से अधिक भाषा सीखने वाले व्यक्ति की मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है। अधिक भाषाएँ सीखने से सोच का दायरा भी बढ़ता है, दृष्टिकोण और अधिक व्यापक होता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में यह तथ्य और अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
  9. आज इंटरनेट पर हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में नयी सामग्री का सृजन बहुत तेज गति से बढ़ रहा है। यह प्रयास होना चाहिए कि बुनियादी और उच्च-शिक्षा के लिए, उच्च-स्तर की सामग्री सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। ऐसी सामग्री उपलब्ध होने से, भारतीय भाषाओं के माध्यम से मौलिक ज्ञान-विज्ञान, काम-काज और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। हिन्दी सहित, सभी भारतीय भाषाओं में, ऐसी क्षमता विकसित करनी चाहिए, कि उनमें बायो-टेक्नालॉजी और इन्फॉर्मेशन-टेक्नालॉजी जैसे विषयों पर मौलिक काम किया जा सके।

10. दूसरे देशों के लोगों में भारतीय भाषाओं के प्रति रुचि देखकर, मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। चेक रिपब्‍लिक की मेरी हाल की यात्रा के दौरान, मुझे वहां प्राग स्थित Charles University के Indology विभाग में एक व्‍याख्‍यान देने के लिए आमंत्रित किया गया। उस विभाग के चार विद्यार्थियों को स्‍वागत समारोह में भाषण देना था। आपको यह जानकर खुशी होगी, कि उन विदेशी विद्यार्थियों ने, अपना स्वागत-भाषण हिन्‍दी, संस्‍कृत, तमिल और बंगला में दिया। वहां, बहुत से लोगों ने, मेरा अभिवादन भी, हिन्‍दी में किया। हमें, भारतीय भाषाओं की इस ‘सॉफ्ट पावर’ का सदुपयोग करना ही चाहिए। अंग्रेज़ी में एक कहावत है, “Charity begins at home.” अपनी मातृभाषा के अलावा, अन्य भारतीय भाषाएँ सीखकर हम भारतीय भाषाओं की शक्ति का बहुआयामी उपयोग कर सकेंगे। ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’, इसी दिशा में लोगों को आगे बढ़ा रही है।

11. जिस सभा ने सार्थक योगदान के सौ वर्ष पूरे किए हों, उसके पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में कितनी सकारात्मक ऊर्जा है, उसकी आप कल्पना कर सकते हैं। जिस तरह आपकी संस्था नें हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया है उसी तरह सभी भारतीय भाषाओं के विकास और प्रसार का प्रयास होना चाहिए। ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ की तर्ज पर, अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी, ऐसी सभाओं की शुरुआत होनी चाहिए। इस प्रयास में, आपकी संस्था को पहल करनी चाहिए। ऐसी पहल करने से ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि आपकी इस पहल को सबकी सहायता प्राप्त होगी, और इस तरह, हम गांधी जी के सपनों को साकार कर सकेंगे।

12. सौ वर्षों में निर्मित अपनी स्वस्थ परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, यह सभा, हिन्दी भाषा के संवर्धन और विकास में निरंतर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहे, यही मेरी शुभकामना है।

 

धन्यवाद

जय हिन्द!

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