झारखंड में किसान की पहली आत्महत्या से शासन पर उठे कई गहरे सवाल

झारखंड में किसान द्वारा आत्महत्या किये जाने की घटना भले ही पहली बार घटित हुई है, पर झारखंड में किसानों की हालात अत्यंत दयनीय है. लगभग 80 प्रतिशत अन्नदाता को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है और अन्नदाता के परिजन अपने पेट में अन्न के लिए मजदूरी करने को विवश है. इधर नकली बीज और खाद ने किसानों की स्थिति ऐसी कर दी कि वे कर्ज में डूबते जा रहे हैं और अब आत्महत्या करने को मजबूर हैं.झारखंड की राजधानी रांची के पिठोरिया प्रखंड के दो किसानों ने आर्थिक तंगी से त्रस्त होकर अपनी जान दे दी. पिठोरिया के खेत काफी उर्वरा हैं और यहां के किसान कभी काफी सम्पन्न भी माने जाते थे, पर अब नकली बीज और खाद ने इन किसानों की भी हालत काफी खस्ता कर दिया है.

सबसे आश्चर्यजनक तथ्य हो यह है कि इन दोनों किसानों ने आत्महत्या तब की, जबकि सीएम रघुवर दास इस घटना से ठीक एक दिन रांची में एक बड़े किसान सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए किसानों के लिए दर्जनों कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की, बड़े-बड़े वादे और किसानों को सबसे खुशहाल होने की बातें कही. पर आज किसानों के सामने जो यक्ष प्रश्न है, उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता. किसानों के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती खती नहीं, पैदावार नहीं, बल्कि जिंदा रहने की जद्दोजहद है. सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह है कि किसान आत्महत्या करने को मजबूर है, पर किसी को जिम्मेवार नहीं ठहराया गया, केवल जांच कमेटी बनाकर औपचारिकता पूरी कर ली गई. हद तो तब हो गई, जब जिले के आलाधिकारियों ने दोनों ही किसानों की आत्महत्या पर ही सवाल खड़ा कर दिये. एक किसान के बारे में तो यह कहा गया कि वह नशे का आदी था और नशे में कुएं में गिर जाने से उसकी मौत हो गई, जबकि दूसरे किसान के बारे में भी कई तरह के सवाल खड़ा कर उसके आत्महत्या को ही संदिग्ध बता दिया. इस तरह के बयान से राज्य के किसानों में काफी आक्रोश है, जबकि किसान कर्ज के दबाव में आत्महत्या कर रहे हैं. यहां करोड़ों रुपए लोन लेने वाले ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं, जबकि पचास हजार रुपए लोन लेने वाले किसान आत्महत्या करने को मजबूर है. रघुवर दास किसानों के प्रति कितने संवेदनशील है, यह इससे ही पता चलता है कि रांची से पन्द्रह किलोमीटर दूर पिठोरिया में पांच दिनों के भीतर दो किसानों ने आत्महत्या कर लिया, पर सीएम ने परिजनों से मिलना उचित नहीं समझा. उनके मंत्रिमंडल का कोई भी सदस्य ने वहां जाना उचित नहीं समझा.

झारखंड में पहली बार किसान आत्महत्सा को मजबूर हुए हैं. पिठोरिया के प्रगतिशील किसान कलेश्वर महतो ने फांसी लगाकर जान दे दी. कलेश्वर स्नातक था और कई किसान प्रतियोगिता भी जीता था. परिवार वालों के अनुसार उसने बैंक से कर्ज लिया था और इस कर्ज के चुकता नहीं करने से परेशान था, वैसे उसके पास 66 क_ा जमीन थी, पर इस बार उसकी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी. उसने अपने सुसाईड नोट में अपनी मौत का कारण बैंक से लिएगए कर्ज और फसल का बर्बाद होना बताया. उसके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी बदहाल थी कि उसकी मौत के बाद दाह संस्कार के लिए आसपास के लोगों से सहयोग लेना पड़ा. अभी इस घटना से राज्य के किसान एवं अन्य लोग उबर भी नहीं पाए थे कि ठीक पांच दिन एक और किसान बालदेव महतो ने कर्ज से तंग आकर आत्महत्या कर लिया. बलदेव का बड़ा भाई सत्यनारायण महतो भी दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुका है. बलदेव के पास 51 डिसमील जमीन थी, उसमें सिंचाई के लिए दो बार कुआं खोदने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सका.बलदेव ने तो खेती के लिए लोन लिया ही था, उसकी पत्नी भी महिला समिति से 20 हजार रुपए का कर्ज ले रखा था. बलदेव के परिवार का आरोप है कि जितने पैसे खेती में लगते थे, उसका उत्पादन मूल्य भी नहीं मिल पाता था. इस बार दो-दो फसलें क्षतिग्रस्त हो गईं. अपने परिवार का पेट भरने के लिए बलदेव मजदूरी करने लगा, पर वह कर्ज के दबाव से परेशान था और इसी परेशानी में उसने आत्महत्या कर ली. वैसे रांची के आला अधिकारी इस बात से इंकार करते हैं कि उसने आत्महत्या की है. अधिकारियों का मानना है कि वह नशे का आदि था और नशे में वह कुएं में गिर गया, जिससे उसकी मौत हो गई. आला अधिकारी के इस बयान से यहां के किसानों में काफी आक्रोश है.

झारखंड में पहली बार किसान आत्महत्सा को मजबूर हुए हैं. पिठोरिया के प्रगतिशील किसान कलेश्वर महतो ने फांसी लगाकर जान दे दी. कलेश्वर स्नातक था और कई किसान प्रतियोगिता भी जीता था. परिवार वालों के अनुसार उसने बैंक से कर्ज लिया था और इस कर्ज के चुकता नहीं करने से परेशान था, वैसे उसके पास 66 क जमीन थी, पर इस बार उसकी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी. उसने अपने सुसाईड नोट में अपनी मौत का कारण बैंक से लिएगए कर्ज और फसल का बर्बाद होना बताया.

यहां के किसानों का कहना है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उनलोगों को नहीं मिल पाता है. फसल क्षति के बाद भी बीमा का पैसा नहीं मिला है. सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बिचौलिए किसानों पर हावी हैं और पूरा लाभ ले जाते हैं पर सरकारी अमला इस ओर कोई कदम नहीं उठाता. किसान द्वारा किये जा रहे आत्महत्या की घटना को सरकार को गंभीरता से लेना होगा. राज्य सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए पूरे राज्य में कृषि जागृति अभियान चला रही है, पर इस दौरान किसान आत्महत्या कर रहे हैं. झारखंड के छोटे और सीमांत किसानों की जरूरतें बहुत छोटी-छोटी है, लेकिन विडंबना यह है कि सरकारी तंत्र किसानों की इन जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाते हैं. किसान के हितों के लिए दर्जनों योजनाएं चलायी जा रही है, पर ये योजनाएं किसानों तक पहुंच ही नहीं पाती है. स्पष्ट  है कि राज्य सरकार का मौजूदा तंत्र इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेवार है. किसानों को अभी तक अपनी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. धान खरीद में भी घोटाले हुए थे, इस बात को स्वयं खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने स्वीकार किया था, नकली बीज एवं खाद से भी किसान परेशान हैं. रांची के अनुमंडल पदाधिकारी ने जब नकली खाद बीज का रैकेट पकड़ा तो उस अधिकारी का आनन-फानन में स्थानान्तरण कर दिया गया और कारोबारियों को भाजपा सरकार ने बचा लिया.

वैसे दोनों किसानों की मौत चाहे जैसे भी हुई हो, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि झारखंड के छोटे किसान गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. यहां रोजगार का साधन कृषि है, जो सिंचाई के अभाव में आमतौर पर नाममात्र का लाभ देती है. प्रतिकूल मौसम में किसान भारी घाटे में आ जाते हैं. सूदखोर, बिचौलिया, दलाल सरकारी व्यवस्था पर भारी पड़ रहे हैं. किसी अधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार भी नहीं ठहराया जाता है. यही कारण है कि किसान तंगहाली की ओर बढ़ रहे हैं. जबकि अफसर और दलाल मालामाल होते जा रहे हैं.

इधर रघुवर दास ने किसान की आत्महत्या को गंभीर बताते हुए कहा कि सरकार किसानों के विकास एवं उनकी आय में वृद्धि को लेकर कृतसंकल्प है. राज्य में किसानों के हित में दर्जनों योजनाएं चला रही है. फसल बीमा योजना का लाभ भी किसानों को दिया जा रहा है. किसानों द्वारा लिएगए ऋण पर ब्याज की दरों में भारी कमी की गई है, ताकि राज्य के किसान समृद्ध और प्रगतिशील हो सके. किसानों को बिचौलियों से मुक्त करने के लिए भी योजना शुरू की गई है. इसके कारण किसानों को अपने फसल का सही दाम और बाजार मिल सकेगा.

नेता प्रतिपक्ष एवं राज्य के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि भाजपा सरकार को किसानों से कोई लेना-देना नहीं है, किसानों की मौत पर केवल घडिय़ाली आंसू बहा रहे हैं. यहां सरकार पूंजीपतियों की है और किसानों का हाल बदहाल कर किसानों का जमीन छीन औद्योगिक घरानों को देने की साजिश चल रही है. अगर सीएम किसानों के प्रति इतने संवेदनशील रहते तो नकली बीज और खाद का रैकेट चलाने वाले का पर्दाफाश करने वाले आईएएस अधिकारी का स्थानान्तरण नहीं कर देते. भाजपा सरकार ही इनलोगों को संरक्षण देने का काम कर रही है.जो भी हो किसानों की मौत पर लोगों या राजनीतिक दलों को राजनीति नहीं कर किसानों का हालात कैसे सुधरे, इस पर मंथन करना चाहिए.

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