कहाँ हो पापा ?

ज्ञानवती खेत पर काम रही थी चार बजे के आस पास का समय रहा होगा। काम करते-करते अचानक उसे बहुत बेचैनी सी होने लगी। कुछ देर तक वह खेत में ही बैठी रही मगर जब बेचैनी कम नहीं हुई तो वह घर लौट आई। घर मंे भी उसका किसी काम में मन नहीं लगा।
रात को नींद में भी उसे बड़े खराब-खराब सपने आते रहे। रात में तीन बजे के करीब उसका चार वर्षीय बेटा केशव अचानक जोर-जोर से रोने लगा। वह चिल्ला रहा था-‘मम्मी उठो पापा को कोई हमसे बहुत दूर लिए जा रहा है।’
ज्ञानवती उठकर बैठ गई। उसने उठकर लाइट जलाई। केशव बुरी तरह से सुबक-सुबक कर रो रहा था और बार-बार यही रट लगा रहा था-‘मम्मी पापा को बचाओ कोई उन्हें हमसे दूर ले जा रहा है।’
ज्ञानवती ने उसे कसकर अपने सीने से चिपका लिया और उसे चुप कराने का प्रयास करने लगी। थोड़ी देर बाद केशव तो सो गया मगर ज्ञानवती की आँखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी।
ज्ञानवती बार-बार करबटें बदल रही थी। मगर उसे नींद नहीं आ रही थी। सूरजपुर गाँव के लोग अभी घरों में रजाइयों में दुबके हुए थे। तभी थाने की जीप ग्राम प्रधान के मकान पर आकर रुकी।
प्रधान को लेकर थानेदार और सिपाही ज्ञानवती के घर पहुँचे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। ज्ञानवती के ससुर ने उठकर दरवाजा खोला। ज्ञानवती जाग रही थी इसलिए आवाज सुनकर वह भी बाहर आ गई।
दरोगा ने ज्ञानवती के ससुर को बताया कि कल चार बजे के करीब आतंकवादियों ने सी.आर.पी.एफ. बस पर फिदाइन हमला किया जिसमें आपका बेटा सर्वेश राजपूत भी शहीद हो गया। खबर सुनकर ज्ञानवती के ससुर को मानो काठ मार गया था। “क्या ?“ ज्ञानवती के मुँह से बस इतना निकला और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी।
जंगल की आग की तरह यह खबर पूरे गाँव में फैल गई और पूरा गाँव सर्वेश के घर में जमा हो गया।

लोगों का शोर सुनकर ज्ञानवती का बेटा केशव बाहर निकल आया। वह अपनी माँ को उठाने का प्रयास कर रहा था और कह रहा था मम्मी जल्दी उठो मुझे पापा के पास जाना है।
जब ज्ञानवती ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह अपने बाबा के पास जाकर जिद करने लगा-“बाबा मुझे अपने पापा के पास जाना है मुझे मेरे पापा के पास ले चलो।“
जब उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया तो वह दरोगा जी के पास जाकर बोला-“पुलिस अंकल मुझे मेरे पापा के पास ले चलो। मुझे उनकी बहुत याद आ रही है।“
छोटे बच्चे की अपने पापा से मिलने की यह जिद देखकर वहाँ खड़े सारे लोगों की आँखें नम हो गई थीं। वहाँ खड़े एक बुजुर्ग बुदबुदाए-“इस नादान को तो यह भी नहीं पता कि अब यह अपने पापा से कभी नहीं मिल पाएगा।“
उधर केशव जोर-जोर से रो रहा था और चिल्ला रहा था-“पापा आप कहाँ हो ? जल्दी से आ जाओ। कोई मुझे आपके पास लेकर नहीं आ रहा है।“
सुरेश बाबू मिश्रा
ए-373/3, राजेन्द्र नगर, बरेली-243122 (उ॰प्र॰)
मोबाइल नं. 9411422735
E-mail : sureshbabubareilly@gmail.com

 

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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