स्वागत कीजिए सरकार के नए कदम का

देश के तमाम उपभोक्ताओं के लिए यह अच्छी खबर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सरकार उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के स्थान पर एक नया कानून जल्द ही लेकर आ रही है। पूर्व, दक्षिण और दक्षिण पूर्वी देशों के लिए उपभोक्ता संरक्षण पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि इस कानून में भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और उपभोक्ता शिकायतों को समयबद्ध एवं प्रभावी तरीके से कम खर्च में निपटाने पर जोर दिया गया है।

कुछ समय पहले खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने भी इसका संकेत दिया था। उन्होंने कहा था कि 1986 के कानून में कई खामियां हैं और ई-कॉमर्स के दौर में वह व्यावहारिक नहीं रह गया है। इसीलिए नए कानून में बड़े पैमाने पर बदलाव किया गया है। सच तो यह है कि नए कानून का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। भारत में अब बाजार और खरीदारी का स्वरूप काफी तेजी से बदला है। हाल तक हमारे समाज में खरीदारी त्योहारों या सामाजिक आयोजनों तक सीमित थी। लेकिन पिछले एक-डेढ़ दशकों में हमारा रहन-सहन तेजी से बदला है। मध्यवर्ग की क्रयशक्ति में इजाफा हुआ है, उसके उपभोग की आदतें बदली हैं। बाजार का विस्तार हुआ है। वह घरों तक पहुंच गया है। ऐसे में मिडिल क्लास नियमित खरीदार बन गया है। लेकिन उसके साथ उत्पादकों, विक्रेताओं का व्यवहार नहीं बदला है। वे बड़ी चतुराई के साथ उपभोक्ताओं का शोषण कर रहे हैं। हालांकि इस बारे में कानून बने हुए हैं, पर उनका कोई खास फायदा नहीं हो रहा है। अब जैसे कई चीजों की कीमत में एकरूपता नहीं है। कई जगहों पर एमआरपी से ज्यादा कीमत वसूली जाती हैं और उसके पीछे अजीबोगरीब तर्क दिए जाते हैं। ई-कॉमर्स की कुछ कंपनियां तो कई बार डुप्लीकेट या टूटा-फूटा माल भेज देती हैं, कई बार सामान लौटाने पर पैसे नहीं लौटातीं। एक सर्वे के अनुसार देश में जाली उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार 2500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो चुका है।

झूठे और भ्रामक विज्ञापन देना भी शोषण का ही एक रूप है। विभिन्न माध्यमों से गोरापन बढ़ाने, घुटनों के दर्द का रामबाण इलाज करने,कद लंबा करने, सेक्स पावर बढ़ाने आदि के प्रचार किए जाते हैं और इससे जुड़े प्रॉडक्ट खरीदकर लोग प्राय निराश होते हैं। उपभोक्ताओं को शीघ्र न्याय दिलाने के लिए त्रि-स्तरीय अर्धन्यायिक व्यवस्था की गई थी। पर यहां भी लोगों को तारीख पर तारीख ही मिलती रहती है। देश भर के जिला मंचों, राज्य आयोगों और राष्ट्रीय आयोग में लाखों मामले लंबित पड़े हैं। सरकार का दावा है कि नए कानून में इन तमाम बीमारियों का इलाज खोजा गया है। यह बात सही हो तो भी उपभोक्ताओं को जागरूक और संगठित होना होगा। नया कानून भी तभी जमीन पर उतर पाएगा।

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