जीएसटी में संशोधन, सरकार की मंशा ठिक है लेकिन…
जीएसटी में हुए बदलाव के बाद देश को 15 दिन पहले दिवाली मनाने का मौका मिला था. इस बीच 2 दिनों के गुजरात दौरे पर द्वारिका पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि जीएसटी पर उनके फैसले का पूरे देश में स्वागत हुआ है और खास करके देश का व्यापारी वर्ग 15 दिन पहले ही दिवाली मना रहा है. उन्होंने कहा कि लोगों के सुझाव और पहले तीन महीने में मिले अनुभव के आधार पर सरकार ने जीएसटी में बड़े बदलाव किए हैं। वे आगे भी इस दिशा में काम करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि वे देश के व्यापारी वर्ग को कभी भी बाबूगीरी और लाल फीताशाही के जंजाल में नहीं फंसने देंगे।
जीएसटी में लगातार बदलाव बता रहे हैं की कहीं न कहीं सरकार को भी लगता है कि भले ही उनकी नीयत और मंशा ठीक है लेकिन अभी कई तकनीकी पेच ऐसे हैं जिनके चलते यह बिल आम जनता को परेशान कर रहा है. ऐसे में सरकार का यह मानना कि बिल में अभी सुधार की गुंजाइश है बताता है कि सरकार ने जनता पर यह बिल थोपा नहीं है बल्कि उसकी सहूलियत के लिए बनाया है. बस जरा जनता ऑनलाइन प्लेटफार्म पर तेजी से सक्रियता दिखाए और बिल को लेकर भ्रम दूर किए जाएँ तो मोदी सरकार की यह मुहीम देश के आर्थिक व सामाजिक सुधार में बड़ा योगदान कर सकती है.
जीएसटी में हुए बदलाव के बाद देश को 15 दिन पहले दिवाली मनाने का मौका मिला था. इस बीच 2 दिनों के गुजरात दौरे पर द्वारिका पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि जीएसटी पर उनके फैसले का पूरे देश में स्वागत हुआ है और खास करके देश का व्यापारी वर्ग 15 दिन पहले ही दिवाली मना रहा है. उन्होंने कहा कि लोगों के सुझाव और पहले तीन महीने में मिले अनुभव के आधार पर सरकार ने जीएसटी में बड़े बदलाव किए हैं। वे आगे भी इस दिशा में काम करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि वे देश के व्यापारी वर्ग को कभी भी बाबूगीरी और लाल फीताशाही के जंजाल में नहीं फंसने देंगे।
क्या क्या हुए हैं बदलाव
पहले बात करते हैं कि सरकार ने इस बिल में कौन कौन से सुधार किये हैं जो आम जन और व्यापारी वर्ग के लिए राहत पहुंचा रहा है. जीएसटी काउंसिल ने कई अहम फैसले किए हैं। काउंसिल ने 27 आइटम की जीएसटी दरों को कम किया है। जबकि एक्सपोर्टर्स की दिक्कत खत्म करने के लिए जल्दी रिफंड देने का फैसला किया है। 10 अक्टूबर से जुलाई महीने का और 18 अक्टूबर से अगस्त महीने का रिफंड मिलना शुरू होगा। इसके अलावा एक अप्रैल 2018 से एक्सपोर्टर्स के लिए ई-वॉलेट शुरू किया जाएगा।
काउंसिल ने कंपोजिशन स्कीम का दायरा 75 लाख रुपये से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दिया है। स्कीम के तहत ट्रेडर्स 1 फीसदी, मैन्युफैक्चरर्स 2 फीसदी और रेस्टोरेंट 5 फीसदी टैक्स देंगे। इसके अलावा अब 1.5 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाले कारोबारी 3 महीने में रिटर्न फाइल कर सकते हैं। ई-वे बिल भी एक अप्रैल 2018 से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म को भी जीएसटी काउंसिल ने 31 मार्च 2018 तक टाल दिया है। चौतरफा दबाव के बाद जीएसटी काउंसिल ने छोटे कारोबारियों से लेकर एक्सपोर्टर तक को कुछ राहत देने वाले फैसला किया हैं। सरकार ने 1.5 करोड़ सालाना टर्नओवर वालों छोटे कारोबारियों को रिटर्न में राहत दी है। जिसके चलते अब उन्हें हर महीने फाइल ना करते हुए अब 3 महीने में रिटर्न भरना होगा। वहीं सरकार ने ज्वेलरी कारोबार को मनी लॉन्ड्रिंग कानून यानि पीएमएलए के दायरे से बाहर किया है। साथ ही अब 50,000 रुपये से ज्यादा खरीद पर पेनकार्ड दिखाना जरूरी नहीं है। जानकारों का मानना है कि सरकार की इस फैसला तनिष्क, टीबीजेड, पीसी ज्वेलर्स के लिए राहत भरा होगा। बता दें कि इससे पहले 50,000 रुपये से ऊपर की ज्वेलरी खरीदारी पर पेन दिखाना आवश्यक था। लेकिन जीएसटी में बदलाव के बाद अब 2 लाख से ऊपर की ज्वेलरी खरीद पर पैन दिखाना जरुरी कर दिया गया है। इसके अलावा कंपोजीशन स्कीम की सीमा 75 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गई है। पहले कंपोजिशन में 1 से 5 फीसदी टैक्स देना होता है। हालांकि सरकार ने रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म पर 31 मार्च 2018 तक फैसला टाला गया है। जीएसटी में बदलाव को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि जीएसटी की बैठक में जीएसटी के 27 आइटम में बदलाव किए गए है। सरकार ने एक्सपोर्टरों की दिक्कतों पर भी चर्चा की है। जिसके तहत हर एक्सपोर्टर का एक ई-वॉलेट बनाया जाएगा और टैक्स रिफंड को लेकर सरकार नई व्यवस्था बना रही है। उन्होंने आगे कहा कि एक्सपोर्टरों को छूट के 3 हिस्से मिलेगे और ई- वॉलेट में एडवांस रिफंड दिया जाएगा। सरकार की ई-वे बिल को 1 अप्रैल से लागू करने की कोशिश होगी। ई-वॉलेट आने तक एक्सपोर्ट पर 0.1 फीसदी जीएसटी वसूली जाएगी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आगे कहा कि अब तक जीएसटी में 26 लाख नए टैक्सपेयर जुड़े है। जिनमें बड़े कारोबारियों से ज्यादा टैक्स मिला है।
बता दें कि जीएसटी में पूराने टैक्स की दरों में बदलाव करते हुए टैक्स की दरों में कटौती की गई है। मैंगो स्लाइस पर 12 फीसदी से घटकर 5 फीसदी, सिंघाड़ा में 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी और खाकरा में 12 फीसदी से घटकर 5 फीसदी टैक्स के दायरे में लाया गया है।
कई चीजों पर घटेगा जीएसटी
जीएसटी के तहत सबसे ऊंचे 28 पर्सेंट रेट वाले स्लैब पर नए सिरे से विचार किया जा सकता है। इसके अलावा आम तौर इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं पर टैक्स रेट घटाने पर भी विचार हो सकता है। सरकार के भीतर कुछ अहम लोग इस दिशा में कदम उठाए जाने का समर्थन कर रहे हैं। अगर ऐसा किया गया तो कई वस्तुओं के दाम घटेंगे, जो अभी ऊंचे जीएसटी के कारण बढ़े हुए हैं। इससे इनकी डिमांड बढ़ सकती है। डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रमोशन ने इंडस्ट्री, खासतौर से छोटे उद्योगों में जान डालने के लिए ऐसे बदलाव की वकालत की है, जिन्हें रोजगार के ज्यादा मौके पैदा करने के लिए जाना जाता है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 28च् वाले स्लैब पर नए सिरे से गौर करने की जरूरत है। उस ब्रैकेट में रखी गई कुछ वस्तुओं को एमएसएमई (माइक्रो, स्मॉल ऐंड मीडियम एंटरप्राइजेज) बनाते हैं और वे कुछ दबाव में हैं। 28च् वाले स्लैब में प्लास्टिक फर्नीचर, न्यूट्रिशनल ड्रिंक्स, ऑटो पार्ट्स, प्लाईवुड, इलेक्ट्रिकल फिटिंग्स, सीमेंट,सीलिंग फैन और घडय़िों के अलावा कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटोमोबाइल्स और तंबाकू उत्पाद रखे गए हैं। जीएसटी रेट बदलने पर जीएसटी काउंसिल की मुहर लगवानी होगी, जो इस संबंध में निर्णय करने वाली शीर्ष इकाई है। काउंसिल की बैठक 9-10 नवंबर को गुवाहाटी में होनी है। तब इस मामले पर चर्चा की जा सकती है। टॉप गवर्नमेंट ऑफिशल्स ने ऐसे कदम का संकेत पिछले दिनों दिया था। 28 अक्टूबर को ईटी अवॉर्ड्स समारोह के दौरान चर्चा में यह मुद्दा उठा और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था, 28च् स्लैब रेट ऊंचा तो है, लेकिन यह कुछ समय तक बना रहेगा और फिर उसके बाद हम कुछ चीजों को 28च् से हटाकर 18च्वाले स्लैब में रख देंगे। ऊंचे वाले ब्रैकेट में केवल लग्जरी आइटम्स रह जाएंगे। उन्होंने कहा था कि बदलाव करते वक्त सतर्कता जरूरी है क्योंकि स्लैब रेट्स में अचानक परिवर्तन करने का इन्फ्लेशन पर सीधा असर पड़ सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि जीएसटी रेट्स के स्टेबलाइज होने के साथ जरूरी उपयोग की वस्तुओं पर टैक्स कट सबसे पहले किया जाएगा।
ट्रेड और इंडस्ट्री से जुड़ी संस्थाओं ने सरकार से अनुरोध किया है कि कुछ वस्तुओं को टॉप टैक्स रेट से हटाया जाए क्योंकि ऊंचा ब्रैकेट तो लग्जरी और तंबाकू उत्पादों आदि के लिए था। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने कहा, मनमाने ढंग से 28च् वाला टैक्स स्लैब बनाने से जीएसटी की असल भावना पर बुरा असर पड़ा है। इसे केवल लग्जरी गुड्स और डीमेरिट गुड्स तक सीमित रखना चाहिए। कुछ राज्यों, खासतौर से कांग्रेस शासित राज्यों के भी काउंसिल की आगामी बैठक में यह मुद्दा उठाने की संभावना है।
काउंसिल ने अक्टूबर में अपनी पिछली बैठक में एक कॉन्सेप्ट पेपर अडॉप्ट किया था, जिसमें रेट्स में बदलाव के लिए गाइडलाइंस बताई गई थीं। उसके मुताबिक, कारखाने में बने किसी भी सामान को छूट नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि इससे मेक इन इंडिया से जुड़ी पहल में बाधा पड़ेगी। राज्य अगर किसी आइटम पर टैक्स का असर घटाना चाहें तो वे डायरेक्ट सब्सिडी ट्रांसफर का रास्ता चुन सकते हैं।
कितना जटिल है बिल?
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी को सत्तर साल पहले आजाद हुए भारत के इतिहास का सबसे बड़ा कर सुधार माना जा रहा है जिसने करीब दर्जन भर से ज्यादा संघ और राज्य के करों को खत्म कर दिया है. अधिकारियों का कहना है कि यह कर लाखों कारोबारियों को टैक्स के दायरे में लायेगा और सरकार का राजस्व बढ़ेगा. जीएसटी के आलोचक इसे जटिल बता रहे हैं. साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि इसका पालन करना खर्चीला होगा. नये कर नियमों के मुताबिक फर्मों को अपने बिल एक पोर्टल पर डालने होंगे जो उन्हें सप्लायरों के बिल से मैच करायेगा. जिन कंपनियों ने टैक्स नंबर के लिए खुद को रजिस्टर नहीं कराया है, उन्हें ग्राहकों से हाथ धोना पड़ सकता है. विशेषज्ञ का कहना है, छोटी गैर निबंधित कंपनियों के साथ अछूतों की तरह व्यवहार हो रहा है. सभी कंपनियां खुद को रजिस्टर कराने और नियमों का पालन करने का खर्च नहीं उठा सकतीं. इसका नतीजा आप देखेंगे कि छोटे व्यापार बंद होंगे और कामगारों की छुट्टी होगी.
भारत के 10 में से 9 मजदूर छोटी छोटी कंपनियों और व्यापारों में काम करते हैं. कपड़ा उद्योग में आधे से ज्यादा,जूते चप्पलों और गहनों के व्यापार में 70 फीसदी से ज्यादा मजदूर इन्हीं कंपनियों में काम करते हैं. नये नियमों के मुताबिक 20 लाख रुपये से ज्यादा का सालाना कारोबार करने वाली सभी फर्मों को जीएसटी के लिए रजिस्टर करना होगा. इसके लिए हिसाब किताब रखने के तौर तरीके बदलने के साथ ही कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी चीजों में निवेश भी करना होगा. मामूली मुनाफे पर काम करने वाली छोटी कंपनियों के लिए यह एक महंगा सौदा है. विशेषज्ञके मुताबिक, पूरा तंत्र केवल निबंधित कंपनियों के फायदे की सोच रहा है. जिन कंपनियों के लिए रजिस्टर होना जरूरी नहीं है, नुकसान उनका भी होगा क्योंकि तब निबंधित कंपनियां उनके साथ काम नहीं करना चाहेंगी.
सरकार का कहना है कि टैक्स का नया तंत्र व्यापार करना आसान बनायेगा और कंपनियों का खर्च घटेगा. टैक्स का आधार बढऩे से सार्वजनिक पैसे में बढ़ोत्तरी होगी और कल्याण के कामों के लिए ज्यादा खर्च हो सकेगा. कई लोगों का यह भी कहना है कि कारोबारियों के लिए शुरुआती खर्च और दूसरी दिक्कतों का बोझ व्यापार में मुनाफे से उतर जाएगा. अनियमित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ से ज्यादा कामगार भारत की जीडीपी का करीब आधे से ज्यादा हिस्सा पैदा करते हैं. उनका काम बंद हुआ तो उनके लिए नौकरी ढूंढऩा आसान नहीं होगा क्योंकि आर्थिक विकास के बावजूद नौकरियों में बहुत इजाफा नहीं हुआ है.
कांग्रेस भी समर्थन में
कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा वस्तु एवं सेवा कर के तहत कुछ क्षेत्रों को अंतरिम राहत पहुंचाने के लिए उठाए गए कदमों का स्वागत किया. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने यहां पार्टी मुख्यालय में मीडियाकर्मियों से कहा, हम अंतरिम राहत का स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा, च्च्एक देश एक कर अब एक देश और सात से ज्यादा कर में बदल गया है, जिसमें 0.25 फीसदी, तीन फीसदी, पांच फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी, 28 फीसदी और 40 फीसदी के कर स्लैब शामिल हैं।
उन्होंने कहा, भारत की जीएसटी की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है। यहां तक की आर्थिक सलाहकार ने भी 15 फीसदी से 15.25 फीसदी की राजस्व तटस्थ दर रखने की सिफारिश की थी।
राह में तकनीकी रोड़े
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली जुलाई से लागू होने वाले जीएसटी को भले अर्थव्यवस्था के लिए एक टर्निंग प्वायंट करार दिया हो, इसे लेकर अब भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है. कई व्यापारिक संगठनों ने भी इसके विभिन्न प्रावधानों और तकनीकी दिक्कतों पर आपत्ति जताई है. जब यह लागू होने वाला था तब भी इसे लेकर कई मुश्किलें थी, इसकी राह में आने वाली तकनीकी दिक्कतें कम होने का नाम नहीं ले रही थी. इसे लागू करने की राह में व्यापारियों को प्रक्रियागत समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा था. कोई महीने भर से ऑनलाइन पंजीकरण के लिए जीएसटी नेटवर्क सुचारू रूप से काम नहीं कर रहा था. इसकी वजह से ई-वे बिल बनाने में दिक्कत हुई. ऑनलाइन बनने वाले इस डिलीवरी नोट के बिना अब सामानों का परिवहन संभव नहीं होगा.
वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि शुरूआती दौर में जीएसटी को लागू करने की राह में दिक्कतें तय हैं. आगे चल कर धीरे-धीरे इन दिक्कतों और तकनीकी खामियों को दूर किया जा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि तमाम प्रक्रिया ऑनलाइन होने की वजह से साइबर सुरक्षा भी एक अहम पहलू है. महज एक तकनीकी दिक्कत माल परिवहन के कारोबार को ठप कर सकती है. प्रधानमंत्री मोदी भी साइबर सुरक्षा मजबूत करने पर जोर दे चुके हैं. केंद्र ने भले तमाम कामियों को दूर करने का भरोसा दिया है. लेकिन जीएसटी से जुड़े तमाम व्यापारियों में अब तक ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.
हालांकि मोदी आम व्यापारियों को पेश आनी वाली दिक्कतों को दूर करने के मूड में हैं और इसके लिए वह सख्ती से आदेश भी दे चुके हैं. गुड्स एंड सर्विस कर से छोटे कारोबारियों को हो रही परेशानियों पर किसी तरह की कोई सुनवाई नहीं होने पर पीएम मोदी ने अधिकारियों को कठोर संदेश देते हुए कहा है कि वो जल्द से जल्द उनकी परेशानियों को दूर करें. मासिक समीक्षा करते हुए मोदी ने ने राज्यों के सचिवों से बोला कि वो जिले के अधिकारियों के जरिए छोटे ट्रेडर्स के पास जाएं व उन्हें जीएसटी के तहत नए सिस्टम में ढालने का कोशिश करें.पीएम ने कहा कि छोटे कारोबारी जीएसटी के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्हें इसे अपनाने में कई तरह की दिक्कतें व परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इनकी सुनवाई जल्दी हो इसके लिए जिले के ऑफिसर अपनी तरफ से कार्रवाई करें. मोदी ने बोला कि छोटे कारोबारी जीएसटी नेटवर्क से जुड़े, जिससे उन्हें आगे चलकर लाभ मिलेगा. आम आदमी व कारोबारियों को इस नए कर सिस्टम से लाभ लेना चाहिए.
बहरहाल एक सवाल अभी भी सरकार के लिए बड़ा है कि वह आम और छोटे व्यापारियों को डिजिटल दुनिया से जोडऩे के लिए कोई मुहीम चलाये और शायद तभी सबको जीएसटी का लाभ मिल सकेगा जिसके लिए मोदी सरकार ने यह सार्थक आर्थिक विकास का कदम उठाया था.