रोहिंग्या शरणार्थी और ‘वसुधैव कुटुंबकम’

rohingaम्यांमार(बर्मा)में रोहिंग्या समाज के लोगों के विरुद्ध चल रहे सैन्य एवं राज्य प्रायोजित नरसंहार के बाद बर्मा के रखाईन प्रांत से रोहिंग्या लोगों का पलायन जारी है। रोहिंग्या समाज के लाखों लोग जिनमें अधिकांशत: मुस्लिम धर्म से संबंध रखने वाले रोहिंग्या शामिल हैं बर्मा की सीमा से सटे देशों की सीमाओं में अपनी जान व इज़्ज़त आबरू की रक्षा करने के लिए प्रवेश कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सहित कई मानवाधिकारों से जुड़ी कई संस्थाओं ने यह स्वीकार किया है कि बर्मा में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा ह। इसके अतिरिक्त बीबीसी तथा कई अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने रखाईन प्रांत के उन इलाकों का दौरा किया है जहां रोहिंग्या लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। इनकी पूरी की पूरी बस्तियां आग के हवाले की जा रही हैं तथा उनका सामूहिक नरसंहार किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर सेना तथा स्थानीय बहुसंख्य बौद्ध समाज के लोगों द्वारा रोहिंग्या महिलाओं के साथ बलात्कार करने तथा उनकी हत्याएं कर देने जैसे दिल दहलाने वाले समाचार प्राप्त हो रहे हैं। गोया इस समय पूरे बर्मा में शासन-प्रशासन,सेना,पक्ष-विपक्ष की ओर से रोहिंग्या लोगों के पक्ष में आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है। इस नरसंहार ने तथा इसके पीछे छिपे उद्देश्य ने जर्मनी के उस नाज़ीवादी दौर की याद दिला दी है जब हिटलर के नेतृत्व में यहूदियों के विरुद्ध इसी अंदाज़ से उनके नरसंहार का खेल खेला गया था। उस समय जर्मनी छोडकर भागने वाले यहूदी शरणार्थियों को अरब जगत ने फिलिस्तीन क्षेत्र के रेगिस्तानी इलाकों में पनाह दी थी।

रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण दिए जाने को लेकर जहां बंगलादेश ने सबसे आगे अपने हाथ बढ़ाए हैं वहीं भारत सरकार ने रोहिंग्या लोगों को अपने देश में शरण देने से इंकार कर दिया है। भारत सरकार का मत है कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। भाजपा के संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक राष्ट्रीय प्रचारक ने यह तर्क पेश किया है कि ‘जो  कौम अपने ही देश की वफादार न हो सकी वह किसी अन्य देश की हितकारी नहीं हो सकती। उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि दुनिया के सभी मुस्लिम देशों को रोहिंग्या मुसलमानों को समान रूप से बांटकर अपने देशों में शरण देनी चाहिए। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेता तथा उससे जुड़े संगठन सभी यही भाषा बोलते दिखाई दे रहे हैं। भाजपा,सरकार तथा संघ के इस रवैये पर वैसे तो किसी को इसलिए आश्चर्य नहीं होना चािहए क्योंकि इनकी राजनीति का आधार ही धर्म आधारित तथा धार्मिक धु्रवीकरण पर निर्भर करता है। अपने गठन से लेकर सत्ता में आने तक और सत्ता में आने के बाद अपने प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष एजेंडों को लागू कराने में लगभग सभी जगह इनके ऐसे प्रयास साफतौर पर देखे जा सकते हैं। बावजूद इसके कि रोहिंग्या शरणार्थियों में सैकड़ों हिंदू परिवार भी शामिल हैं,परंतु सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को रोहिंग्या मुसलमान कहकर ही संबोधित कर रही है।

रोहिंग्या को भारत में शरण नहीं दी जाएगी, यह मत भारत सरकार का तो ज़रूर हो सकता है परंतु देश की समग्र जनता का ऐसा मत नहीं है। हमारे देश की संस्कृति तथा स्वभाव में तथा यहां के आम जन की रग-रग में वसुधैव कुटंबकम की शिक्षा बसी हुई है। हमारे देश के लोग पूजा-पाठ,आरती,अरदास व नमाज़ के बाद मानवजाति के कल्याण,विश्व में शांति, सद्भावना तथा जनकल्याण की दुआएं मांगते हैं। सहयोग, समर्पण, सहायता व संस्कार हमारे मूल में बसा है। यही वजह है कि भले ही अपनी पूर्वाग्रही विचारधारा रखने के चलते केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में रोहिंग्या शरणार्थियों को देश में शरण न दिए जाने के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया है। परंतु इसके बावजूद देश के वरिष्ठ वकीलों का एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो मानवता की रक्षा की खातिर रोहिंग्याओं को देश में शरण देने की वकालत कर रहा है। देश के अनेक राजनैतिक दल,राजनेता,स्वयंसेवी संगठन,मीडिया घराने आदि सभी मानवता की रक्षा की खातिर रोहिंग्याओं को शरण देने की बात कह रहे हैं। दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थियों के पक्ष में हुए प्रदर्शन में देश के अनेक बुद्धिजीवियों,सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों तथा विशिष्ट लोगों का भाग लेना इस बात का सुबूत है कि रोहिंग्या के धर्म व समुदाय के बारे में जाने बिना भारत के लोग केवल मानवता के कारण उनके साथ खड़े हैं।

भारत सरकार में रोहिंग्या को लेकर चल रहे वैचारिक एवं पूर्वाग्रही मतभेद का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों असम की एक वरिष्ठ भाजपा नेता बेनज़ीर आरफान को सिर्फ इस लिए भाजपा से निलंबित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर एक ऐसी प्रार्थना सभा की फोटो पोस्ट की थी जिसमें रोहिंग्या शरणार्थियों के कल्याण की दुआएं मांगी जा रही थीं। वे शरणार्थियों के साथ मानवीय बर्ताव किए जाने की पक्षधर थीं। अराफान ने तीन तलाक विरोधी भाजपा मुहिम में पार्टी का खुलकर साथ दिया था तथा इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। इसी तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि भारत के सिख समाज का एक प्रसिद्ध संगठन ‘गुरु का लंगर’ म्यांमार-बंगलादेश सीमा के उस पार बंगला देश में जा पहुंचा है जहां उसके सदस्यों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को खाना खिलाना तथा साफ पानी व दवाईयां आदि देना शुरु कर दिया है। ज़ाहिर है सिख समाज को सेवा की यह सीख उनके अपने गुरुओं से ही प्राप्त हुई है। भाई कन्हैया सिंह एक ऐसे मानवता प्रेमी योद्धा थे जो सिख फौज के सदस्य होने के बावजूद अपने उन दुश्मनों को भी पानी पिलाया करते थे जो प्यासे या घायल होते थे। इन्हीं संस्कारों के कारण आज सिख युवकों को मुसीबतज़दा रोहिंग्या लोगों में कोई मुसलमान,हिंदू या आतंकवादी नजऱ नहीं आया बल्कि उन्हें यह लोग केवल परेशान हाल इंसान ही दिखाई दिए।

आज भारत सरकार की रोहिंग्याओं के प्रति बरती जा रही नीति ने जिसपर सरकार ने असुरक्षा व आतंक जैसा लेबल लगा दिया है निश्चित रूप से भारत की प्राचीन परंपरा,यहां के संविधान,शरणार्थियों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों तथा मानवीय संवेदनाओं आदि सभी पहलुओं पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। संघ के राष्ट्रीय प्रचारक का बयान कि रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं, जो कौम अपने देश की नहीं हुई वह दूसरे देश की क्या होगी,सभी मुस्लिम देश इन्हें आपस में बांट लें, ऐसी बातें इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए काफी हैं कि यह विचारधारा संकीर्ण सोच रखने वाली विचारधारा है और इनकी हर नीति तथा इनके प्रत्येक फैसले सबसे पहले धर्म के मद्देनजऱ होते हैं न कि मानवता के मद्देनजऱ। हालांकि भारत सरकार ने बंगला देश में बसने वाले हज़ारों रोहिंग्या शरणार्थियों की सहायता हेतु भारी मात्रा में सहायता सामग्री ज़रूर भेजी है। इसके लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए। परंतु जो शासकीय पक्ष रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर रखा जा रहा है उसे पूरा देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व देख रहा है। जिस सत्तारुढ़ संगठन व दल के कार्यकर्ता व सदस्य इस बात के लिए चिंतित रहते हैं कि राहुल गांधी ने विदेश में ऐसा क्या और क्यों कह दिया जिससे विदेश की धरती पर देश की बदनामी हुई। उन्हीं लोगों को रोहिंग्या मुद्दे पर सरकार के पक्ष के बारे में यह ज़रूर सोचना चाहिए कि सरकार के ऐसे रवैये से भारत की पूरे विश्व में इज़्ज़त बढ़ रही है या बदनामी हो रही है? वसुधैव कुटुंबकम हमारे देश की संस्कृति का अहम वाक्य था और इसे बने रहना चाहिए।

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