Fall Army Worm कीट की पहचान एवं प्रबन्ध की सही जानकारी कृषकों को होना अत्यंत आवश्यक है : उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा)

सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, बरेली

बरेली, 4 अगस्त।

उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) श्री विश्वनाथ ने बताया कि प्रदेश की जलवायु Fall Army Worm  कीट के लिए अनुकूल है तथा यह एक बहुभोजीय (Polyphagous) कीट है, जिसके कारण अन्य फसलों जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, गेहूँ तथा गन्ना आदि फसलों को भी हानि पहुँचा सकता है। उन्होंने कहा कि इस कीट की पहचान एवं प्रबन्ध की सही जानकारी कृषकों को होना अत्यंत आवश्यक है।उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) ने कहा कि इस कीट की मादा ज्यादातर पत्तियों की निचली सतह पर अंडे देती हैं, कभी कभी पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी अंडे देती हैं। इसकी मादा एक से ज्यादा पर्त में अंडे देकर सफेद झाग से ढक देती हैं और अंडे क्रीमिस से हरे व भूरे रंग के होते है। उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम Fall Army Worm तथा सामान्य सैनिक कीट में अन्तर को कृषकों को समझना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि Fall Army Worm का लार्वा भूरा, धूसर रंग का होता है, जिसके शरीर के साथ अलग से ट्यूबरकल दिखता है।

उन्होंने कहा कि इस कीट के लार्वा अवस्था में पीठ के नीचे तीन पतली सफेद धारियाँ और सिर पर एक अलग सफेद उल्टा अंग्रेज़ी शब्द का वाई (Y) दिखता है एवं इसके शरीर के दूसरे अंतिम खण्ड पर वर्गाकार चार बिन्दु दिखाई देते हैं तथा अन्य खण्ड पर चार छोटे-छोटे बिन्दु सम्बलम आकार में व्यवस्थित होते हैं। उन्होंने कहा कि यह कीट फसल की लगभग सभी अवस्थाओं में नुकसान पहुंचाता है, लेकिन मक्का इस कीट की रूचिकर फसल है तथा यह कीट मक्का के पत्तों के साथ साथ वाली को विशेष रूप से प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधे के डन्ठल आदि के अन्दर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करता है और इस कीट के प्रकोप की पहचान फसल की बढ़वार की अवस्था में जैसे पत्तियों के छिद्र एवं कीट के मल-मूत्र एवं बाहरी किनारों की पत्तियों पर मल-मूत्र से पहचाना जा सकता है एवं मल महीन भूसे के बुरादे जैसा दिखाई देता है।

उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) ने कहा कि फसल की गहन निगरानी एवं सर्वेक्षण करें तथा अण्ड परजीवी 2 से 5 ट्राइकोग्रामा कार्ड का प्रयोग एग लेइंग की अवस्था में करने से इनकी संख्या की बढोत्तरी में रोक लगायी जा सकती है। उन्होंने कहा कि ट्रैप फसल जैसे नैपियर की 3-4 लाइन मक्के की फसल के चारों ओर बुबाई करने से इसका प्रभावी नियंत्रण होता हैं। उन्होंने कहा कि ट्रैप फसलों पर इसका प्रकोप दिखाई देने पर 5 प्रतिशत एन.एस.के.ई. (नीम सीड़ करनल एक्सट्रेक्स) अथवा एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम. (नीम आयल) का छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एन.पी.वी. 250 एल.ई., मेटाराइजियम एनिप्सोली, नोमेरिया रिलाई, ब्यूबेरिया बैसियाना एवं वेनीसिलिटेम लेकानी आदि जैविक कीटनाशकों का प्रारम्भिक अवस्था में ही समय से प्रयोग अत्यन्त प्रभावशाली है। उन्होंने कहा कि यांत्रिक विधि के तौर पर सांयकाल (7 से 9 बजे तक) में 3 से 4 की संख्या में प्रकाश प्रपंच एवं 8 से 10 की संख्या में बर्ड पर्चर T आकार के डण्डे जिस पर चिड़िया बैठे।

प्रति एकड़ लगाना चाहिए। उन्होंने कहा कि रासायनिक नियंत्रण हेतु स्पीनेटोरम 11.7 प्रतिशत एस.सी. 0.5 मिली. अथवा क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस.सी. 0.4 मिली. अथवा थायोमेथाक्साम 12.6 प्रतिशत+लैम्ब्डा साईहैलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत जेड.सी. 0.25 मिली. को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर भूहा (Tassel) की अवस्था से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि फसल में कीट का प्रकोप दिखाई दे तो किसान 9452257111 एवं 9452247111 पर SMS/Whats App करके 48 घंटे में समाधान पा सकते है। उन्होंने कहा कि ट्राइकोग्रामा कार्ड एवं ब्यूबेरिया बैसियाना मंडल में स्थित समस्त कृषि रक्षा इकाइयों पर 75 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध है।

गोपाल चन्द्र अग्रवाल (संपादक , आल राइट्स मैगज़ीन)

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