सुप्रीम कोर्ट: UP विध्वंस पर ‘यथास्थिति’ रहे
सुप्रीम कोर्ट का यूपी विध्वंस मामले में हस्तक्षेप: दो याचिकाकर्ताओं को एक सप्ताह की अंतरिम राहत, इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने का निर्देश
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश में संपत्ति ढहाए जाने की कार्रवाई का सामना कर रहे दो याचिकाकर्ताओं को एक हफ्ते की अंतरिम राहत (संरक्षण) प्रदान कर दी है। पीठ ने निर्देश दिया कि तब तक पक्षकार अपनी संपत्ति पर यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखें।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें अधिकारियों को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना याचिकाकर्ताओं के घर या मैरिज हॉल के ढांचे को और गिराने से रोकने की मांग की गई थी।

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट भेजा
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने पीठ को बताया कि उनके घर या मैरिज हॉल परिसर का एक हिस्सा अधिकारियों द्वारा पहले ही थोड़ा गिरा दिया गया है। वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि अधिकारियों की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के पिछले दिशानिर्देशों का उल्लंघन (अवमानना) है।
पीठ ने शुरुआत में ही याचिकाकर्ताओं के वकील से पूछा कि उन्होंने पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख क्यों नहीं किया और सीधे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट क्यों आए।
- पीठ का स्पष्टीकरण: पीठ ने कहा, “कोर्ट पहले ही विस्तृत फैसला दे चुका है। हाईकोर्ट का रुख करें और उस फैसले का लाभ उठाएं। ऐसा नहीं है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट तात्कालिकता पर विचार नहीं करता। संपत्ति ढहाने के मामलों में हाईकोर्ट में जिस दिन उनका उल्लेख होता है, उसी दिन उन पर सुनवाई भी होती है।”
- अंतरिम राहत: वकील ने 15 दिन की राहत की मांग की, जिसके बाद पीठ ने उन्हें एक हफ्ते की राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने को कहा।
- प्रभाव न पड़ने का निर्देश: शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसकी ओर से दी गई यह अंतरिम राहत हाईकोर्ट को याचिका पर सुनवाई करने और स्थगन की अर्जी पर उसकी मेरिट के आधार पर विचार करने में प्रभावित नहीं करेगी।
कानूनी प्रक्रिया के पालन पर जोर
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उनमें से एक 75 वर्षीय व्यक्ति है, जिसे बिना कोई नोटिस दिए कार्रवाई की गई, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष नवंबर में पूरे भारत के लिए दिशानिर्देश तय किए थे कि कारण बताओ नोटिस के बिना कोई भी संपत्ति नहीं ढहाई जानी चाहिए और प्रभावित लोगों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
पीठ ने इन चिंताओं को समझते हुए याचिकाकर्ताओं को उचित आदेश के लिए तत्काल इलाहाबाद हाईकोर्ट में अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर करने का निर्देश दिया।
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