बरेली-पीलीभीत बाईपास रोड स्थित साई सुखदा अस्पताल एक बार फिर सुर्खियों में है।

बरेली-पीलीभीत बाईपास रोड स्थित साई सुखदा अस्पताल एक बार फिर सुर्खियों में है। थाना भमौरा क्षेत्र के राजपुर गांव की 60 वर्षीय सरोज देवी का पैर टूटने के बाद यहां इलाज के लिए लाया गया था।

परिजनों के मुताबिक, डॉक्टर निशांत गुप्ता की सलाह पर उनका ऑपरेशन किया गया। लेकिन कुछ ही घंटों बाद सरोज की मौत हो गई। गुस्साए परिजनों और ग्रामीणों ने अस्पताल पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जमकर हंगामा किया।

ग्रामीणों का कहना है कि न तो डॉक्टर ने सही जांच की, न ही ऑपरेशन से पहले जोखिम बताए। ऑपरेशन के बाद सरोज देवी की हालत लगातार बिगड़ती गई और आखिरकार उनकी सांसें थम गईं।

मौत की खबर फैलते ही सैकड़ों ग्रामीण अस्पताल पहुंच गए और प्रबंधन को घेरकर नारेबाजी की। माहौल इतना तनावपूर्ण हो गया कि पुलिस को भारी फोर्स के साथ पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित करना पड़ा। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया।

परिजनों का आरोप: जानबूझकर की गई लापरवाही

परिजनों का कहना है कि साई सुखदा अस्पताल की लापरवाही ने उनकी मां की जान ले ली। न तो उचित इलाज किया गया, न ही समय पर गंभीर स्थिति को संभालने की कोशिश की गई। उनका आरोप है कि अस्पताल पैसे कमाने के चक्कर में मरीजों की जान को जोखिम में डालता है।

ग्रामीणों की मांग है कि अस्पताल का लाइसेंस तत्काल रद्द किया जाए और डॉक्टर निशांत गुप्ता के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हो। लोगों ने साफ चेतावनी दी कि अगर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो वे सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे।

स्वास्थ्य विभाग पर सवालिया निशान

यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोलती है। बरेली में निजी अस्पतालों की मनमानी कोई नई बात नहीं है। आए दिन मरीजों की मौत लापरवाही से होती है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग हर बार “जांच समिति” बनाकर खानापूरी करता है। न किसी का लाइसेंस रद्द होता है, न किसी जिम्मेदार पर ठोस कार्रवाई। नतीजा यह है कि अस्पताल प्रबंधन बेलगाम होकर मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ करते रहते हैं।

लोगों का कहना है कि अगर स्वास्थ्य विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाता, तो इस तरह की घटनाएं रुक सकती थीं। लेकिन हकीकत यह है कि विभाग की मिलीभगत से निजी अस्पताल खुलकर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

पुलिस और प्रशासन की भूमिका

मौके पर पहुंचे एसपी सिटी ने बताया कि मौत का कारण पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट होगा और मामले की जांच की जा रही है। लेकिन सवाल यही है कि क्या यह जांच भी पुराने मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगी? क्या एक और मौत के बाद भी प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग जागेगा?

ग्रामीणों का अल्टीमेटम

ग्रामीणों ने दो टूक कह दिया है कि अगर अस्पताल और डॉक्टर पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे। उन्होंने साफ कहा कि अब और जानें अस्पतालों की लापरवाही के नाम पर बर्बाद नहीं होने दी जाएंगी।

साई सुखदा अस्पताल की यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सवाल है क्या मरीजों की जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि अस्पताल की लापरवाही उन्हें निगल जाए और सरकार मूकदर्शक बनी रहे? अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई तो बरेली में स्वास्थ्य व्यवस्था पर से लोगों का भरोसा पूरी तरह टूट जाएगा।

यह साफ है कि अब समय आ गया है जब सिर्फ “जांच” नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई होनी चाहिए अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया जाए और जिम्मेदार डॉक्टर पर सख्त धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए। वरना ऐसे हादसे लगातार दोहराए जाएंगे और हर बार पीड़ित परिवार न्याय के लिए तरसते रह जाएंगे।

बरेली से रोहिताश कुमार की रिपोर्ट

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