परिवार संभालते हुए जीती ब्यूटी प्रतियोगिता UN में स्त्री-पुरुष के भेदभाव का मुद्दा उठाया

राजस्थान जैसी जगह पर जब मैंने अपने लिए आगे बढ़कर कुछ करना चाहा तो कई लोगों ने कहा- अरे भरा-पूरा परिवार है, पति-बच्चे सब हैं, मिल तो रही है दाल-रोटी, तो तुम्हें क्यों आगे बढ़ना है, क्यों खुद की पहचान बनाने की जिद है।

कोई नहीं समझता कि अगर यही सच सही होता तो लता मंगेशकर देश की फेमस गायिका और द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति कैसे बनतीं। जड़ों को पकड़े रहकर भी कुरीतियों को तोड़ते हुए आगे बढ़ा जा सकता है। ये कहना है A & H कैपिटल के साथ जनरल मैनेजर के तौर पर काम कर रही मोनिका मीणा का।

‘मैं राजस्थान के कोटा शहर से हूं, इसे डॉक्टर्स और इंजीनयरों को तैयार करने की फैक्ट्री भी कहते हैं। मेरे पिता जी जज थे और पूरी फैमिली पढ़ी-लिखी। घर में सब सरकारी नौकरी कर रहे थे और मेरी भी पढ़ाई लिखाई अच्छी हुईं। 2004-2009 में मैंने जोधपुर, राजस्थान की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से संवैधानिक क़ानून में B. A. LL B (Hons. ) की डिग्री ली। इसके बाद आगे जॉब और RJS की तैयारी के लिए दिल्ली शिफ्ट हो गई।

इधर परिवार से शादी के लिए फोन आने शुरू हो गए थे। उनका कहना था कि पहले शादी कर के घर बसा लो, उसके बाद आगे का भविष्य का फैसला करना। शादी के बाद वैसे भी लड़की को ससुराल के अनुसार ढलना पड़ता है।

2011 में मेरी शादी राजस्थान के लबान गांव में हुई। मैं हमेशा से काफी जिंदादिल और अम्बिशियश लड़की रही थी। परिवार का सपोर्ट रहा लेकिन सामाजिक परिवेश हमेशा पीछे खींचता रहता। मैं इसे अपनी अच्छी किस्मत कहूंगी कि गांव का बैकग्राउंड होने के बावजूद मेरी सास और पति ने बाकी ससुराल वालों के साथ मुझे हमेशा सपोर्ट किया।

पति रेलवे विभाग में ऑफिसर है। शुरुआत में इनकी पोस्टिंग छोटी जगहों पर हुई, साथ ही दो छोटे बच्चो की ज़िमेदारी के साथ कुछ समय तक मेरे लिए कोई खास करियर मैं स्कोप नहीं था। मेरे दोस्त कोई विदेश में थे और कोई लॉ फर्म्स में बतौर पार्टनर काम कर रहे थे। मुझे खुद के लिए अफ़सोस होता कि पढ़ने में अच्छी और काबिल होने के बावजूद मैं अपनी डिग्रीयों का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रही हूं।

ट्राइबल स्टूडेंट्स और महिलाओं को किया जागरुक

शादी के बाद ही कोटा, राजस्थान से मैंने साइबर लॉ और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स में LLM की डिग्री हासिल की। पति की नंदुरबार पोस्टिंग के दौरान मैंने महाराष्ट्र के नंदुरबार के एनटीवीएस कॉलेज ऑफ लॉ में बच्चों को पढ़ाया। इस दौरान मैंने फ्री लीगल एड कमेटी, ट्राइबल स्टूडेंट्स और महिलाओं के लिए भी काम किया। 2018 में मैंने सोशल मीडिया पर मिसेज इण्डिया वर्ल्ड वाइड कॉम्पटीशन का एड देखा तो मन में अजब सा उत्साह पैदा हुआ।

मैंने सोचा मैंने भी इस कॉम्पटीशन में पार्ट लूं, होगा या नहीं पता नहीं,ले किन ट्राई करने में क्या जाता है। मैंने अहमदाबाद में ऑडिशन दिया और मेरा सलेक्शन फाइनल राउंड के लिए हो गया। मेरे मायके पक्ष में रिश्तेदार इसे लेकर बहुत उत्साहित या खुश नहीं थे, उनका मानना था कि एक बार घर से निकल जाएगी और ग्लैमर का चस्का लग गया तो घर-बार, पति-बच्चे सब भूल जाएगी। जबकि मैं अपने बच्चों, पति और परिवार से बहुत प्यार करती हूं और मेरे लिए वो हमेशा से सबसे ऊपर रहे। मैंने हमेशा अपनी जिम्मेदारी निभायी और कही-सुनी बातों को अनसुना कर पहले ग्रीस, यूरोप में सेमीफाइनल और दिल्ली में होने वाले फाइनल राउंड में पार्टिसिपेट कर पॉपुलर टाइटल अपने नाम किआ।

पिता जी के दोस्त उनसे कह रहे थे कि जब लड़की के पास सब कुछ है और समाज के लोग इसका ब्यूटी कांटेस्ट में जाना नहीं पसंद कर रहे तो आखिर क्यों यह सामाजिक नियमों के खिलाफ जा रही हैं। कई रिश्तेदारों की भी यही सोच थी।

यहां मेरा जवाब था- मैं ऐसा खुद के लिए कर रही हूं, अपनी पहचान और अपने नाम के लिए कर रही हूं, समाज के लिए नहीं। आज अगर मैं चार दीवारों में लोग क्या कहेंगे सोच अगर कैद हो गयी, तो न जाने कितनी ही लड़कियां जो मुझे जानती है। कभी आगे नही बढ़ पाएंगी। बहुत लोगों को मेरी बात रास न आई, लेकिन मैं सही थी इसलिए सबके होंठ सिल गए और मैं आगे बढ़ती रही।

‘मिसेज इण्डिया वर्ल्ड वाइड कॉम्पटीशन’ के वक़्त

जिस सामाजिक गतिरोध और कुरीतियों का सामना कर मैं ‘मिसेज इण्डिया वर्ल्ड वाइड कॉम्पटीशन’ के मंच पर थी दिल जोरों से धड़क रहा था। मैं सोच रही थी कि क्या होगा। लेकिन पति और मेरे करीबी दोस्तों ने मुझे काफी सपोर्ट किया।

पब्लिक वोटिंग में मुझे इतने वोट मिले जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मैं पॉपुलर टाइटल की विनर रही। अचानक से मेरे कांफिडेंस का ग्राफ जमीन से आसमान छूने लगा। मुझे लगा कि शायद ये प्लेटफॉर्म ही मेरे लिए बना है और यही मुझे मेरे सपनों की मंजिल तक लेकर जाएगा और अब मैं पलट कर नहीं देखूंगी।

2018 के बाद 2019 में भी TIF (84वे अंतरराष्ट्रीय थेसालोनिकी फेस्टिवल, यूरोप) में भी विदेश में मैंने अपने देश का मान बढ़ाया,

इसी बीच राजस्थान साथ ही महाराष्ट्र के लोगों ने मुझे इतना सपोर्ट दिया कि मैंने फिर कभी मुड़ कर पीछे नही देखा। मेरे लिए ये अवसर सुनहरे मौके की तरह थे जब मैं विश्व मंच पर अपने देश की खूबसूरत संस्कृति की झलक पेश कर पाई।

ना हारी, ना रुकी, हासिल किया मुकाम

यूरोप से लौटने के बाद मैं मुंबई शिफ्ट हुई क्योंकि पति की पोस्टिंग यहां हो चुकी थी। शुरुआत में मैंने कुछ वक्त लॉ फर्म्स के साथ और प्रोडक्शन हाउस में कंसल्टेंट की तरह काम किया ,लेकिन मैं हमेशा से कॉर्पोरेट वर्ल्ड में अपनी विशेष पहचान बनाना चाहती थी। इसलिए मैं अब कॉर्पोरेट की दुनिया में आगे बढ़ रही हूं । मेरा मानना है कि अगर धीरे-धीरे भी आप अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहेंगे तो अपनी मंजिल को एक दिन जरूर हासिल कर लेंगे।

मैंने बहुत मेहनत, धैर्य और संघर्ष के बाद अपना सपना साकार किया। आप जो हासिल करना चाहते हैं। उसके लिए कड़ी मेहनत करते हुए हमेशा प्रयास करें आखिरकार आपको सफलता जरूर मिलेगी।

मेरे नाम दर्ज हैं ये उपलब्धियां

मैं हमेशा से आदिवासी क्षेत्रों में स्थित स्कूलों के लिए काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रही। मैंने महाराष्ट्र में ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षित करने में जिला स्तर पर काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों के साथ सक्रिय भागीदारी निभाई। मैं राजस्थान के विभिन्न जिलों में स्थित कानूनी सहायता क्लीनिकों के साथ कॉलेज से सक्रिय भागीदारी और अब महाराष्ट्र में प्रेरक वक्ता के रूप में भी काम कर रही हूं।

मैंने इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स, लंदन के सहयोग से लॉ मंत्रा द्वारा आयोजित इंटरनेशनल सेमिनार में पेपर पेश किया। 2018 में माइकल ट्रेमबेथ के सहयोग से डॉ राम भोसले (गांधी जी के डॉक्टर) ‘संवाहन चिकित्सा’ का प्रचार किया।

दिल्ली में ‘उड़ान परियोजना’ के तहत सम्मानित, साल 2018 में सबसे बड़ी वार्षिक राजनीतिक और प्रशासनिक वार्षिक जनजातीय बैठक में भाग लिया। सामाजिक कार्यों और लोकप्रियता के लिए मुझे KOTA RATN अवार्ड, 2018 से सम्मानित किया गया। ‘द गोल्डन गर्ल अवार्ड्स’ की ब्रांड एंबेसडर बनकर मैंने 2018 में देश भर की महिलाओं को सम्मानित करने के लिए राजस्थान में सबसे बड़ा पुरस्कार समारोह किया।

नेत्रदान (संगठन को दान की गई आंखें) और पीरियड्स हायजीन के क्षेत्रों में जागरूकता लाने के लिए एकता धारीवाल जी की ‘अक्षम संस्था’ के साथ भी जुड़ी रही। डॉ ए. पी. जे। अब्दुल कलाम की स्मृति में राष्ट्रीय चिह्न पुरस्कार से भी मुझे सम्मानित किया गया। स्काई चैनल द्वारा 84वे अंतरराष्ट्रीय थेसालोनिकी फेस्टिवल, यूरोप में मुझे मेरी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए लाइव टेलीकास्ट किया गया जो कि एक अंतरराष्ट्रीय चैनल है।

मुंबई में IWAA (भारतीय महिला अचीवर पुरस्कार 2019) से सम्मानित किया गया। सोनू सूद द्वारा गोवा में “इंटरनेशनल ग्लोरी अवार्ड”, 2021 (वुमन ऑफ सब्सटेन्स) से सम्मानित किया गया। राज्यपाल भरत सिंह जी कोश्यारी ने मुझे “गौ गौरव भारती- विशेष सम्मान)-2021 से नवाजा। अपनी लोकप्रियता और सामाजिक कार्यों के लिए मिसेज अर्थ एशिया क्वीन-2021 का खिताब जीता।

लिंग भेदभाव का हो खात्मा, लड़कियों-महिलाओं को मिले प्रगति के अवसर

UN के मंच पर जब मैंने देश में चल रहे जेंडर डिस्क्रिमिनेशन का मुद्दा उठाया तो वो क्लिप बहुत वायरल हुई, लोगों का कहना था कि पराये देश में अपने देश की बुराई क्यों? जबकि मेरा मानना है कि ये कुरीति खत्म होनी चाहिए ताकि लड़कियों को प्रगति के समान अवसर मिलें। वो जब जितना चाहें बिना रोक-टोक के पढ़ सकें और अपना करियर बना सकें।

जब उन्हें कोई सही वक्त पर सही योग्य साथी मिले तो उसका हाथ थामकर जीवन डगर पर चलने का फैसला कर सके ना कि उम्र की सीमा या समाज के बंधनों का दबाव लड़कियो पर हो। इस सन्दर्भ में मैं अपनी सासू मां को बहुत अच्छे विचारों की मानती हूं।

उनका कहना है कि बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं, उस पर प्रेशर नहीं डालना चाहिए बल्कि मां-बाप को उनके मन को समझकर, हित-अहित समझाना चाहिए ताकि जीवन के जरूरी फैसले वो खुद ही कर सकें। चोट लगना भी जरूरी हैं क्योंकि जब तक आप गिरेंगे नही, उठकर चलना कैसे सीख पाएंगे। लड़के और लड़कियों के बीच जो भेदभाव हैं वो खत्म किए जाने चाहिए ताकि सभी को समान अधिकार और अवसर मिले।

मैं चाहती हूं सरकार गांव की महिलाओं के लिए लघु उद्योग जैसी स्कीम शुरू करें कई ट्राइबल महिलाएं ऐसी हैं जो अचार, पापड़ या ऊन से स्वेटर तैयार करती हैं लघु उद्योग के जरिए जब ये महिलाएं अपने हुनर से जब चार पैसे कमाएंगी तो अपने फैसले भी खुद ले पाएंगी।

मैंने इसलिए छोटे स्तर पर ही सही ट्राइबल महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास किया ताकि वो घरेलू हिंसा और लिंग भेदभाव जैसे मुद्दों से डील कर सकें और खुल कर हर मुद्दे पर अपनी राय रख सकें।

ब्यूरो रिपोर्ट , आल राइट्स मैगज़ीन

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