माँ की ममता
गाँव में अचानक साम्प्रदायिक दंगा भड़क उठा था। सदियों से एक साथ मिलकर रहने वाले दो समुदायों के लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। गाँव में चारों ओर आगजनी और मारकाट मच गई थी।
मोरकली पड़ोस के गाँव से अपनी रिश्तेदारी से लौट रही थी। उसकी गोद में उसका छः महीने का बेटा था। उसका घरवाला सोमपाल सामान लेकर आगे-आगे चल रहा था। वे लोग गाँव में हो रहे दंगे से बेखबर थे। जैसे ही वे लोग गाँव मंे घुसे शोरगुल की आवाजें उनके कानों में पड़ीं। वे काजीटोला से गुजर रहे थे तभी दस-पन्द्रह लोगों के झुण्ड ने उन्हें घेर लिया। “मारो काफिरों को, भागने न पाएं।“ भीड़ में से कोई चिल्लाया।
मोरकली और सोमपाल उन लोगों के सामने काफी रोए-गिड़गिड़ाए मगर उन लोगों पर तो मजहबी जुनून सवार था।
सोमपाल के सिर पर भीड़ में से किसी ने धारदार कांते से बार किया था और वह एक ही बार में ढेर होकर गिर पड़ा था। कुछ लोग मोरकली की ओर लपके। उन्होंने उसके दुधमुंहे बच्चे को झटके से उसकी गोदी से छीनकर जोर से उसे जमीन पर पटक दिया जिससे एक क्षण में ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए थे। मोरकली किसी तरह जान बचाकर भागी थी। भीड़ ने कुछ दूर तक उसका पीछा किया फिर वे मजहबी नारे लगाते हुए दूसरी ओर चले गए थे।
उधर मोरकली भागती हुई अपने मोहल्ले में पहुँच गई थी। वहां का नजारा भी दिल को दहला देने वाला था। मुहल्ले में रहने वाले रहमान और परवीन की लाशें उनके घर के सामने पड़ी हुई थीं। परवीन की छाती से उसका दुधमुंहा बच्चा चिपका हुआ था। वह जिन्दा था और जोर-जोर से रो रहा था। मोरकली जैसे ही लाशों के पास से गुजरी तो उसकी नजर बच्चे पर पड़ी।
पहले तो उसने सोचा कि बच्चे को उठा ले, मगर तुरन्त ही उसने अपना इरादा बदल दिया। उसने सोचा कि बच्चा है तो क्या हुआ, है तो विधर्मी। इसके धर्म वालों ने कितनी वेदर्दी से उसके घरवाले और बेटे को मारा था। वह आगे बढ़ने लगी। बच्चा और जोर-जोर से रोने लगा।
बच्चे के रोने की आवाजें मोरकली के दिल में हलचल पैदा कर रही थीं। वह आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी, मगर उसके अन्दर जो माँ का दिल था वह उसे आगे बढ़ने से रोक रहा था। मोरकली के मन में विचारों का झंझावत चल रहा था। काफी देर तक मोरकली किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी रही थी, फिर कुछ निश्चय करके उसने बच्चे को गोद में उठा लिया और अपने घर की ओर चल दी।
घर पहुँचकर वह चारपाई पर बैठ गई बच्चा अब भी जोर-जोर से रो रहा था। अन्त में धर्म, सम्प्रदाय, जाति, पंथ, स्वधर्मी, विधर्मी की सारी दीवारें टूट गई थीं। सब पर माँ की ममता की जीत हुई थी। मोरकली ने बच्चे को अपने सीने से लगा लिया और उसे दूध पिलाने लगी थी।
सुरेश बाबू मिश्रा
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बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !