बरेली में 1857 की क्रांति के रहे हैं नायक ब्रिटिश हुकूमत से जीतकर बनाई थी अपनी सरकार आज के दिन फांसी पर लटकाए गए थे खान बहादुर

आज 24 फरवरी का दिन है। 1860 में आज ही के दिन रुहेलखंड क्रांति के नायक खान बहादुर खान को अंग्रेज सैनिक अपनी सुरक्षा में शहर छावनी से लेकर पुरानी कोतवाली तक पैदल लेकर पहुंचे।

7 बजकर 10 मिनट पर सुबह के समय उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।आज का दिन बरेली और रुहेलखंड के इतिहास में हमेशा याद किया जाता रहा है। 1857 की क्रांति में बरेली का एक ऐसा नायक जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि अंग्रेजों से डटकर लोहा लिया।

अंग्रेजों से लड़कर अपनी अलग सरकार बनाई। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने खान बहादुर खान को 24 फरवरी 1860 को पुरानी कोतवाली में फांसी दे दी गई, उनके अलावा बरेली कमिश्नरी में बरगद के पेड़ पर 257 क्रांतिकारियों को भी लटकाकर फांसी दी गई।

खान बहादुर रुहेला का जन्म 1781 में हुआ था। वह रुहेलखंड के दूतीय नवाब हाफिज रहमत खान के पोते थे। 1857 की क्रांति में भारतीय विद्रोह के समय अंग्रेजों का खूब विरोध किया।

उन्होंने बरेली में अपनी सफलता के बाद अपनी सरकार बनाई। लेकिन 1857 का विद्रोह विफल हुआ तो फिर से बरेली अंग्रेजी राज के अधीन हो गया। खान बहादुर खान अंग्रेजों से बचकर नेपाल भाग निकले।

नेपाल के लोगों ने धोखे से उन्हें अंग्रेजों को सौंप दिया गया। उन्हें मौत की सजा सुनाई और आज ही के दिन 24 फरवरी 1860 को बरेली की पुरानी कोतवाली में उन्हें फांसी दे गई।

आज पुरानी कोतवाली का नामोनिशां नहीं है, यहां कुतुबखाना बाजार लगता है। बरेली इंटर कॉलेज के रिटायर्ड प्रवक्ता आचार्य जनार्दन बताते हैं कि जिस स्थान पर पुरानी कोतवाली में खान बहादुर खान को फांसी दी गई थी, आज वहां बाजार है और एसबीआई है।

दिन निकलते ही पैदल ले जाया गया

6 मई 1858 को खान बहादुर खान और अंग्रेजों के बीच आखिरी बार युद्ध हुआ। इसका नेतृत्व खान बहादुर खान कर रहे थे, लेकिन रोहिलों को हार का सामना करना पड़ा। खान बहादुर खान पर मुकदमा चलाया गया। उन्हें तरह तरह की यातनाएं दी गईं। 22 फरवरी 1860 को कमिश्नर राबर्ट द्वारा खान बहादुर खान को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई गई।

24 फरवरी की सुबह अंग्रेज उन्हें पैदल ही पुरानी कोतवाली लेकर पहुंचे, उन्होंने फांसी से पहले कहा था यह हमारी जीत है, मुझे क्या मारेंगे मैंने 100 अंग्रेजों को मारा है.. हमारी यह कुर्बानी एक दिन रंग लाएगी। बाद में इस क्रांतिकारी के शव को जिला जेल के अहाते में कब्र में दफना दिया गया था।

कमिश्नरी में 257 क्रांतिकारियों को दी गई फांसी

बरेली में जिस बरगद के पेड़ पर 24 फरवरी 1860 को 257 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई, वह बरगद आज भी गवाह है। यहीं पर 257 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया था। बीच शहर में कमिश्नरी स्थित कार्यालय में यह बरगद का पेड़ आज भी आजादी का गवाह है।

1857 की कांति में इसी बरगद के पेड़ पर अंग्रेजी हुकूमत ने 257 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था। आज यहां शहीद स्तंभ बना हुआ है। चाहे गणतंत्र दिवस हो या फिर स्वतंत्रता दिवस आज भी रूहेलखंड क्षेत्र की क्रांति में इसे याद कर लोग नमन करते हैं।

आधियों से टूट गईं वह खून से रंगी साख

बरगद का यह पेड़ करीब 250 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। 10 मई 1857 की क्रांति की शुरुआत यूपी के मेरठ से शुरू हुई। जिसके बाद बरेली, झांसी, कानपुर और दूसरे शहरों में फैल गई।

बरेली में चारों तरफ क्रांतिकारियों का बोलबाला हो चुका था, यह क्षेत्र रूहेलखंड के नाम से आज भी जाना जाता है, यहां के लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी।

शहर भर में क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी क्रांतिकारी पीछे नहीं हटे, देश के लिए मर मिटने के लिए वह आगे खड़े रहे। दस माह तक बरेली अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त रहा। लेकिन उसके बाद जो भी आवाज उठाता उस पर जुल्म ढहाए जाते।

पेड़ के पास बना हुआ शहीद स्तंभ

कमिश्नर कार्यालय के पेड के पास ही शहीद स्तंभ बना हुआ है। जिस पर लिखा है अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में क्रांति शुरू हुई। तो इस क्रांति का असर बरेली पर भी पड़ा। क्रांतिकारियों ने बरेली से अंग्रेजों का कब्जा हटाकर 31 मई 1857 को बरेली काे आजाद घोषित कर दिया।

हुकूमत चलाने के लिए खान बहादुर खान ने एक अन्य क्रांतिकारी मुंशी शोभाराम को वजीर ए आजम घोषित किया।

भदार अली खां और न्याज मोहम्मद खां को सूबेदार बनाया। क्रांतिकारियों को बरेली पर 10 माह पांच दिन तक कब्जा रहा। 6 मई 1858 को अंग्रेजी सेना ने क्रांतिकारियों को परास्त करते हुए बरेली शहर में प्रवेश कर दोबारा अधिकार कर लिया।

जिसके बाद अंग्रेजों ने सभी क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। बरेली में अंग्रेजी सरकार ने उन सभी पर मुकदमा चलाया। अदालत ने खान बहादुर खान को मौत की सजा दी। 24 फरवरी 1860 को उन्हें पुरानी कोतवाली में फांसी दी गई। 257 क्रांतिकारियों को कमिश्नरी स्थित बरगद के पेड से फांसी दी गई।

ब्यूरो रिपोर्ट , आल राइट्स मैगज़ीन

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