अपनों की राह देख रहे है करीब 200 अस्थि कलश

लखीमपुर खीरी (हर्ष सहानी) : शहर के तमाम बेटे-बेटियां ऐसे हैं, जिन्होंने पूर्वजों का क्रिया कर्म तो कर दिया, मगर उनके फूलों को गंगा में सिराना भूल गए हैं। शहर के मुक्तिधाम में ऐसे करीब 200 अस्थि कलश विसर्जन के लिए अपनों के आने की प्रतीक्षा में रखे हुए हैं। अस्थि कलशों को इंतजार है कि उनका कोई अपना आएगा और फूलों को ले जाकर गंगा में प्रवाहित कर उन्हें मुक्ति दिलाएगा।

पितृपक्ष के 16 दिन पितरों के लिए ही होते हैं। इनमें श्राद्घ एवं तर्पण करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अस्थि विसर्जन न होने से आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। इन दिनों में करना बेहद शुभ रहता है।

सेठघाट मुक्तिधाम में करीब 60 से 70 लोगों का हर माह अंतिम संस्कार होता है। मगर, इस बार कोरोना की दूसरी लहर ऐसी आफत बनकर आई कि एक ही दिन में 20 से 30 शवों का दाह संस्कार हुआ। कई लोगों ने जिम्मेदारी निभाकर अपनों के फूल गंगा में प्रवाहित कर दिए। मगर, तमाम लोगों ने फूलों की पोटली बनाकर मुक्तिधाम के अस्थि संग्रह कक्ष में यह सोचकर रख दिए थे कि आने वाले दिनों में गंगा में विसर्जित कर अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाएंगे, लेकिन कारण चाहे जो भी हो ऐसे लोगों ने अस्थि कलशों या पोटली की ओर मुढ़कर नहीं देखा है। इसमें ऐसे भी कई परिवार हैं, जिनके पूर्वजों को परलोक गए छह से सात माह से लेकर एक साल तक हो गया है, बावजूद इसके उन्होंने फूल अब तक सिराए नहीं हैं। वर्तमान में मुक्तिधाम में रखे अस्थि कलशों की संख्या 200 के करीब है।

सुनहरा वक्त है अपनी भूल सुधारने और आशीष पाने का
मान्यता है कि मौत के बाद अस्थियां गंगा में विसर्जित करने से आत्मा को मुक्ति मिलती है। शहर के मुक्तिधाम में करीब 200 अस्थि कलश मुक्ति पाने के लिए अपनों की राह तक रहे हैं। फिलहाल, अब सोमवार से पितृपक्ष शुरू हो गए हैं। ऐसे में जो लोग भूलवश पूर्वजों के फूल सिराना भूल गए है, उनके लिए यह एक अच्छा अवसर है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितरों को विधिवत विदाई दी जाती है, जिसके बाद पूर्वज आशीषों की बारिश करते हुए परलोक लौट जाते हैं।

अस्थिसंग्रह कक्ष में करीब डेढ़ सौ और करीब 50 से अधिक अस्थि कलश एक अन्य कमरे में रखे हैं। इनमें से तमाम कलश करीब एक साल से रखे हुए हैं, जो लोग अस्थियां नहीं ले जाते हैं। उनका विसर्जन मुक्तिधाम की ओर से कराया जाता है।

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