100 बिस्तर का राज्य कर्मचारी बीमा निगम हॉस्पिटल भी टेक्सटाइल पार्क की भांति ही होगा विलंबित !

बरेली। नरेंद मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल से श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार के इस्तीफे के बाद उनके समर्थक अब उन्हें जहाँ राज्यपाल के पद पर आसीन होने के चर्चा कर रहे हैं परन्तु राज्यपाल पद के लिए 2024 तक बरेली लोकसभा सीट खाली करना अभी मुश्किल ही होगा। और सरकार भी नही चाहेगी की लोकसभा का उपचुनाव हों। इसलिए राजेश अग्रवाल जी की तरह संतोष जी को भी संगठन में ही महत्वपूर्ण पद मिलने की अधिक उम्मीद है।

अगर बरेली की बात की जाए तो संतोष गंगवार के इस्तीफे के बाद उनके कई ड्रीम प्रोजेक्ट की गति टेक्सटाइल पार्क की तरह धीमी पड़ सकती है जिसमे 100 बेड का कर्मचारी राज्य बीमा निगम का हॉस्पिटल भी है। बरेली को स्मार्ट सिटी का संतोष गंगवार के प्रयास से दर्जा तो मिल गया पर इस योजना में अरबो रुपये की योजनाये कई साल बाद भी धरातल पर नही आ सकीं। यही हाल बरेली की बिजली संकट का है। शहर विधायक अरुण कुमार से भी पूर्व में बिजली अधिकारी पंगा ले चुके हैं। अधिकारियो के नहीं सुनने का केंद्रीय मंत्री का एक पत्र भी सोशल मीडिया पर वायरल कराया जा चुका है।

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कलेक्टर बक गंज में 90 करोड़ रुपये के कर्मचारी राज्य बीमा निगम के 100 बिस्तर के हॉस्पिटल का 25 अक्टूबर 2020 को भूमि पूजन होने के बाद भी उसकी गति अभी धीमी ही है। बरेली में पुराने हॉस्पिटल के सी एम एस डॉ चरणजीत ने बताया कि हॉस्पिटल बनने में अभी डेढ़ 2 साल लगेंगे। यही हाल मोदी सरकार में बरेली में घोषित टेक्सटाइल पार्क का है। जो अभी धरातल से काफी दूर है। सुभाष नगर में उपरिगामी पुल बनने की बात फ़ाइल में ही है। मीरगंज के गोरा घाट के पुल और मार्ग अधूरा ही है। रामगंगा का चौबारी बांध भी धर्मपाल सिंह के सिंचाई मंत्री पद से हटते ही ठंडा पड़ गया। जिन नेताओ पर बरेली में कूड़ा निस्तारण प्लांट में अवरोध पैदा करने के आरोप लगे। वह आज भी सत्ता की मौज में है। कुतुबखाना का उपरिगामी पुल भी ठंडे बस्ते में ही है।

बरेली की सड़कों का बुरा हाल है। नाले सफाई के नाम पर गोलमाल होता है। इस के चलते वर्षा होते ही जिलाधिकारी, पुलिस अधिकारी कार्यालय में जल भराव आम बात है। कचहरी मार्ग पर ही अतिक्रमण की भरमार है। पूरे शहर में कोई बाहन पार्किंग सुनियोजित ढंग से अभी तक नही बन सकी। जनता मंहगाई से परेशान है। भारतीय जनता पार्टी को बरेली जिले में सभी 9 सीटे, एम एल सी, मेयर, जिला पंचायत अध्यक्ष पद जिताने के बाद भी बरेली जिले का प्रदेश एवम देश की सरकार में भागीदारी शून्य ही है जिसके लिए यहां के 2 शीर्ष नेताओं की खींचतान या कोल्डवार भी कम जिम्मेदार नही कहा जा सकता। जिसका लाभ शाहजहांपुर के बाद अब बदायूं के नेताओ ने भी संघ को फीडबैक देकर अपना भला कर लिया। और खुलेआम बरेली की राजनीतिक पिच पर अपनी जाति के बरेली के कुछ सत्तालोलुप नेताओं को साधकर बैटिंग भी की और स्थानीय दिग्गज मुंह ताकते रहे। बोट बैंक की चाहत में गैर दलों के नेता बीजेपी में आकर मंत्री पद भी पा गए। कोरोना काल के बाद रोजगार भी कम हो रहे है। आज बरेली भले ही कागजो में स्मार्ट सिटी हो बिजली समस्या, वर्षा में पर जल भराव एवम बाजारों में अतिक्रमण सबसे ज्वलंत समस्या है।

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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