बिल्डरों द्वारा व्यवस्था का मखौल

आजकल बिल्डर खुलेआम व्यवस्था का मखौल उड़ा रहे हैं और उन्हें कानून व्यवस्था का कोई डर नहीं है। ऐसा ही एक मामला पीडीएम यूनिवर्सिटी,बहादुरगढ़, हरियाणा में देखने में आया है, जहां उन्होंने एक रियल एस्टेट परियोजना शुरू की है और लगभग आठ साल बाद दिवालिया होने की पेशकश की है,

जबकि दूसरी ओर उन्होंने एक समारोह में पंजाबी गायक हार्डी संधू को आमंत्रित किया और यूनिवर्सिटी का प्रचार करने के लिए उसे मध्यमवर्गीय लोगों की मेहनत की कमाई में से एक मोटी रकम का भुगतान किया। सेवानिवृत्त रक्षा कर्मचारी, सेवारत लोग, वरिष्ठनागरिक सभी बिल्डर की मनमानी से पीड़ित हैं।

 पीडीएम ने पिछले एक साल से अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान नहीं किया है।

इसके जवाब में 200 से अधिक पीड़ित परिवारों ने अपने बच्चों और महिलाओं के साथ शाम 5.30 बजे पीडीएम यूनिवर्सिटी, बहादुरगढ़, हरियाणा मेंइकट्ठा हुए, ताकि अपनी मेहनत की कमाई को बचाने के लिए भ्रष्ट बिल्डर के खिलाफ लड़ाई लड़ सकें।

लोगों की मांगें

  1. परियोजनाजल्दी पूर्ण करके फ्लैटों का आवंटन किया जाये अथवा ब्याज के साथ धन की वापसी की जाये।
  2. पीडीएमसमूह को चाहिए कि फ्लैटों का निर्माण पूरा करने का इरादा दिखाये और खर्चीली जीवन शैली बंद करे। पीडीएम यूनिवर्सिटी परिसरमें भव्य आयोजनों की मेजबानी जैसे अनावश्यक खर्चों को रोकना चाहिए। तभी तो वे होमबॉयर्स की गाढ़ी कमाई का पैसा वापस कर सकते हैं।
  3. कंपनियोंऔर निदेशकों व उनके परिजनों के बैंक खातों की पिछले 10 वर्षों की पूरी जांच और विस्तृत फोरेंसिक ऑडिट कराया जाना चाहिए।
  4. पिछले3 वर्षों की फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट और दिल्ली ईओडब्ल्यू एफआईआर नं. 0059 दिनांक 04/04/2019 के आधार पर निदेशकों कीगिरफ्तारी होनी चाहिए।
  5. कब्जा मिलने याधन की वापसी तक बैंक ऋण के ईएमआई की माफी होनी चाहिए।

यद्यपि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश पर, पीडीएम बाइ एफओडब्ल्यू के प्रवर्तक – लाठार्स के खिलाफ निष्पक्ष जांच हेतु एकप्राथमिकी दर्ज की गयी है। जैसा कि बिल्डर को अदालत के मामले में दबाव मिल रहा है, उन्होंने खरीदारों को गंभीर परिणाम के साथ स्थानीय गुंडोंका उपयोग करने की धमकी देना शुरू कर दिया है। यह बॉलीवुड फिल्मों की तरह है: जब हम एक नायक के प्रकट होने और निर्दोष खरीदारों कोबचाने के लिए इंतजार कर रहे हैं। वास्तव में, हम नायक हैं और हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। आपने आम्रपाली मामले, माल्या मामले आदि केबारे में सुना ही होगा। अंत में न्याय होगा और दोषियों को जेल जाना होगा, क्योंकि यही उनके लिए उपयुक्त है और इसके अलावा हमारे पास जेलों मेंपर्याप्त जगह भी बची हुई है।

अंत में, हम अपने लोकतंत्र के स्तंभों – कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और प्रेस से अनुरोध करते हैं कि वे आगे आएं और उन हजारों निर्दोषमकान खरीदारों की मदद करें, जो अपने घर में शांतिपूर्ण जीवन की तलाश कर रहे हैं।

Sunit Narula

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