चुनावी बॉन्ड पर 10 बातों का राज़ खोलेगी सुप्रीम कोर्ट
केंद्र सरकार की मांग थी कि इस मामले को लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने तक टाल दिया जाए. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाया. अदालत का फैसला क्या है और इस पर आगे क्या हो सकता है, यहां समझें…

चुनावी बॉन्ड पर देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया है. अब सभी राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड देने वाले दाताओं के नाम चुनाव आयोग को देने होंगे. केंद्र सरकार की मांग थी कि इस मामले को लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने तक टाल दिया जाए. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाया. अदालत का फैसला क्या है और इस पर आगे क्या हो सकता है, यहां समझें…
1. चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. अब सभी राजनीतिक दलों को 30 मई तक सीलबंद लिफाफे में बॉन्ड के जरिए मिलने वाले चंदे की जानकारी देनी होगी.
2. मतलब ये है कि 15 मई तक मिली रकम का सभी दलों को हिसाब बताना होगा और उन लोगों के खातों की भी जानकारी देनी होगी जहां से ये बॉन्ड इन दलों को मिले हैं.
3. केंद्र सरकार ने चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के नाम पर एक हजार-दस हजार-एक लाख-दस लाख तक के चुनावी बांड जारी किए थे. कोई भी नागरिक इन बॉन्ड को खरीदकर दलों को एक तरह से चंदा दे सकता था.
4. पहले शर्त थी कि बॉन्ड खरीदने वालों के नाम गोपनीय रखे जाने थे लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने दानकर्ताओं के नाम भी मांगे हैं. और इन्हें चुनाव आयोग को देने की जानकारी दी है.
5. बॉन्ड खरीदने वालों को अपने बैलेंस शीट में राजनीतिक दल के खरीदे गए बॉन्ड का जिक्र करना होगा.
6. इन चुनावी बॉन्ड को भारत का कोई भी नागरिक उन दलों को दे सकता है, जिन्हें पिछले चुनावों में कुल वोटों का कम से कम एक फीसदी वोट मिला था.
7. सरकार ने बॉन्ड खरीदने के लिए पहले 55 दिनों का समय रखा था, इस दौरान जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में बॉन्ड खरीदे जाते थे. पहले ये समय 50 दिन का था लेकिन बाद में 5 दिन बढ़ाए गए थे.
8. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को भी पलट दिया है, अब सिर्फ 50 दिन ही बॉन्ड का उपयोग हो सकता है.
9. ADR की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 में इलेक्टोरल बॉन्ड के द्वारा 222 करोड़ रुपये का चंदा दिया गया.
10. इसमें से BJP को 210 करोड़ (94.5%), कांग्रेस को 5 करोड़ रुपए और बाकी दलों को 7 करोड़ रुपए हासिल हुए हैं.