3 जून जयन्ती पर विशेष-हिन्दी गद्य के उन्नायक बालकृष्ण भट्ट
बालकृष्ण भट्ट हिन्दी के महान साहित्यकार हैं। उन्होंने पत्रकार, उपन्यासकार, आलोचक एवं निबन्धकार के रूप में विशेष ख्याति अर्जित की। हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें गद्य काव्य विधा का जनक कहा जाता है। वे भारतेन्दु युग के एक प्रमुख स्तम्भ थे। उनकी कृतियां हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। उनके निबन्ध एवं नाटक संग्रह पाठकों के मध्य बहुत लोकप्रिय हुए।
बालकृष्ण भट्ट का जन्म प्रयाग के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. बेणी प्रसाद भट्ट था। इनकी माँ बहुत विदुषी महिला थीं। इस प्रकार बालकृष्ण भट्ट को साहित्य के गुण अपनी माँ से विरासत के रूप में मिले थे। विद्यालय में 10वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने घर पर रहकर ही संस्कृत का अध्ययन किया। संस्कृत के अतिरिक्त उन्हें हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू तथा फारसी आदि भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान हो गया था।
भट्ट जी स्वतंत्र प्रकृति के व्यक्ति थे और किसी के अनुशासन में बंधकर रहना उनके स्वभाव के विपरीत था। उन्होंने कुछ समय तक कायस्थ पाठशाला प्रयाग में संस्कृत अध्यापक के रूप में कार्य किया, परन्तु अपनी स्वतंत्र प्रवृत्ति के कारण वे अधिक समय तक वहां नहीं टिक सके। बाद में उन्होंने व्यापार का कार्य किया परन्तु इसमें भी भी उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
भारतेन्दु जी से प्रभावित होकर उन्होंने हिन्दी साहित्य सेवा का व्रत लिया और उन्होंने हिन्दी प्रदीप नामक मासिक पत्र निकालना प्रारम्भ किया वे इस पत्र के सम्पादक थे। उन्होंने हिन्दी प्रदीप के द्वारा निरन्तर 32 वर्ष तक हिन्दी की सेवा की।
हिन्दी प्रचार के लिए उन्होंने संवत् 1933 में प्रयाग में हिन्दी वर्द्धिनि नामक सभा की स्थापना की। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा आयोजित हिन्दी शब्द सागर के सम्पादन में भी उन्होंने बाबू श्याम सुन्दरदास तथा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के साथ मिलकर कार्य किया। हिन्दी प्रदीप के अतिरिक्त भट्ट जी ने 2-3 अन्य पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।
भट्ट जी भारतेन्दु युग के प्रतिष्ठित निबन्धकार थे। अपने निबन्धों द्वारा हिन्दी की सेवा करने के लिए उनका नाम सदैव अग्रगण्य रहेगा। उनके निबन्ध अधिकतर हिन्दी प्रदीप मासिक पत्र में प्रकाशित होते थे। उनके निबन्ध सदा मौलिक और भावनापूर्ण होते थे।
भट्ट जी ने हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य किया। मगर उन्हें मूलरूप से निबन्ध लेखक के रूप में जाना जाता है। निबन्ध के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास तथा नाटक भी लिखे। भट्ट जी ने बंग्ला तथा संस्कृत के नाटकों के अनुवाद भी किये जिनमें वेणी संहार, मृच्छकटिक तथा पदमावती आदि प्रमुख हैं।
भट्ट जी इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें पुस्तकें लिखने का समय ही नहीं मिलता था। इस व्यस्तता के बीच भी उन्होंने कई कालजयी कृतियों की रचना की। “सौ अजान एक सुजान“, “रेल का निकट खेल“, “नूतन ब्रह्मचारी“, “बाल विवाह“ तथा
“भाग्य की परख“ जैसी उनकी कृतियाँ हिन्दी जगत में बहुत लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध हुईं। ये कृतियाँ हिन्दी साहित्य प्रेमियों द्वारा बहुत सराही गईं।
भारतेन्दु काल के निबन्ध लेखकों में भट्ट जी का सर्वोच्च स्थान है। उन्होंने पत्र नाटक काव्य निबन्ध उपन्यास तथा अनुवाद लिखकर हिन्दी की अमूल सेवा की और हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
साहित्य की दृष्टि से भट्ट जी के निबन्ध अत्यन्त उच्चकोटि के हैं। समीक्षक निबन्धों के मामले में उनकी तुलना अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबन्धकार चार्ल्स लैंव से करते हैं। भट्ट जी को गद्य काव्य का जनक कहा जाता है उन्होंने ही हिन्दी गद्य काव्य की रचना प्रारम्भ की। एक प्रतिष्ठित निबन्धकार और प्रखर पत्रकार के रूप में उन्हें सदैव याद किया जायेगा।
सुरेश बाबू मिश्रा
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य
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बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !