रमज़ान शरीफ़ का आखिरी अशरा जहन्नुम से आज़ादी का ।

प्रेस विज्ञप्ति
दरगाह आला हज़रत/ताजुश्शरिया
बरेली ।।
03-05-2021

 

दरगाह आला हज़रत से मरकज़ी दारूल इफ्ता के मुफ्ती अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी ने कहा है कि कल से रमज़ानुल मुबारक का आख़री अशरा शुरू हो रहा है, यूँ तो रमज़ान का पूरा महीना ही रहमत व बरकत के एतबार से दूसरे महीनों से मुमताज़ और खुसूसियत वाला है लेकिन इसके आख़री दस दिनों की फ़ज़ीलत और भी ज़्यादा है। इसे जहन्नुम से आज़ादी का या आख़री अशरा कहा जाता है, जो 21वे रोजे से 29वे या 30वे रोजे तक चलता है। हदीसे पाक में आया है कि अल्लाह के प्यारे रसूल सल्ललाहु अलैहि व सल्लम इस अशरे में सबसे ज़्यादा इबादत व रियाज़त, ज़िक्र व फ़िक्र, तिलावते कुरआन और शब बेदारी किया करते थे।

रमज़ानुल मुबारक की एक खुसूसियत यह भी है कि इसके आख़री अशरे में एतकाफ़ किया जाता है, हदीसे पाक में आया है कि अल्लाह के प्यारे रसूल रमज़ान के आख़री दस दिनों में एतकाफ़ फ़रमाया करते थे। मस्जिद में इबादत की नियत से ठहरने को एतकाफ़ कहते हैं, एतकाफ़ सुन्नते किफ़ाया है, अहले मुहल्ला को चाहिए कि उनमें से कोई एक शख्स ज़रूर एतकाफ़ करे, इससे साल भर तक अहले मुहल्ला अमन व सुकून में रहते हैं। रमज़ानुल मुबारक के आख़री अशरे की एक खुसूसियत यह भी है कि इसकी किसी एक ताक रात में शबे कदर आती है, इस लिए अल्लाह के रसूल ने शबे कदर को 21, 23, 25, 27 और 29 की रातों में तलाश करने का हुक्म फ़रमाया है, ये रात हज़ार रातों से बेहतर और सुब्ह तक सलामती वाली है, उन्हों ने कहा कि अल्लाह ने अपने नबी पर शबे कदर में ही कुरआने मजीद को उतारा। मुसलामानों को चाहिए कि इन रातों में खूब खूब इबादत करें क्यूंकि इनमें से किसी एक रात की इबादत व रियाज़त हज़ार रातों की इबादत व रियाज़त के बेहतर है। जमात रज़ा के प्रवक्ता समरान खान ने बताया एतकाफ सुन्नत-ए-किफाया है अगर सबने छोड़ दिया तो सब गुनहगार होंगे और अगर एक ने भी कर लिया तो सब की जिम्मेदारी अदा हो गई। लोग अपने शहर से लेकर देहात तक की छोटी-बड़ी मस्जिदों में एतकाफ की नियत कर बैठते है और ईद के चाँद का एलान होते ही मस्जिद से उठते है ।।

 

 

बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !

 

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