महाराष्ट्र: 59 मुमुक्षुओं की रिकॉर्ड जैन दीक्षा
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महाराष्ट्र में 59 मुमुक्षुओं का ‘भव्य त्याग’, अध्यात्म की नई ऊँचाई
Allrights संवाददाता (अनिल बेदाग) मुंबई:-/महाराष्ट्र: 23 नवंबर को महाराष्ट्र ने एक अध्यात्मिक उपलब्धि का साक्षी बनकर इतिहास रच दिया, जब पहली बार 59 मुमुक्षुओं ने सामूहिक रूप से जैन दीक्षा ग्रहण की। जैन धर्म के इतिहास में दर्ज यह भव्य दीक्षा महोत्सव त्याग, भक्ति और वैराग्य की भावना का अद्वितीय संगम रहा।
आचार्य सोमसुंदरसूरिजी, श्रेयांसप्रभसूरिजी और योगतिलकसूरिजी की पवित्र निश्रा में संपन्न हुए इस पुण्यमय अवसर पर 200 से अधिक श्रमण भगवंत और 500 से अधिक श्रमणी भगवंत की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन की आध्यात्मिक महत्ता को और बढ़ा दिया।

🙏 Vairagya और भक्ति का अद्भुत समागम
करीब 14,000 वर्ग फुट के विशाल पंडाल में 5,000 से अधिक श्रद्धालुओं की उपस्थिति थी। वातावरण वीतराग संगीत और भक्ति के भाव से ओत-प्रोत था। मंगल प्रभात लोढ़ा और भरत भाई शाह जैसे विशिष्ट अतिथियों ने भी इस अनंत पुण्यमय अवसर की शोभा बढ़ाई।
🗓️ मुंबई में होने जा रहा है एक और ऐतिहासिक दीक्षा समारोह
इस भव्य आयोजन के बाद, मुंबई अब एक और ऐतिहासिक अध्यात्मिक यात्रा के लिए तैयार है।
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आयोजन की तिथि: 4 फरवरी 2026 से 8 फरवरी 2026
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स्थान: बोरीवली पश्चिम, मुंबई
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दीक्षार्थी: इस समारोह में 59 दीक्षार्थी (18 पुरुष, 41 महिलाएं) क्षुल्लक और क्षुल्लिका के पवित्र जीवन में प्रवेश करेंगे।
इन मुमुक्षुओं ने सांसारिक मोह को त्यागकर मोक्ष मार्ग अपनाने का संकल्प लिया है।
🌎 देश-विदेश के मुमुक्षु करेंगे संसार त्याग
दीक्षा लेने वाले मुमुक्षु भारत के प्रमुख राज्यों (गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़) के साथ अमेरिका से भी शामिल हैं।
खास आकर्षण:
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अंतर्राष्ट्रीय त्याग: अमेरिका से सुजाताबेन वोहरा और संगीताबेन शाह का दीक्षा लेना।
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परिवार का त्याग: रायपुर से एक ही परिवार के चार सदस्यों – आशीषभाई, आर्यनभाई, आयुषभाई, और ऋतुबेन का एक साथ संसार त्यागना – पूरे समारोह का एक सबसे प्रेरक अध्याय बनेगा।
✨ आचार्य योगतिलकसूरिजी: दीक्षा परंपरा के महान स्तंभ
इस सामूहिक जैन दीक्षा में आचार्य योगतिलकसूरिजी का मार्गदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण है। पिछले 10 वर्षों में 350 से अधिक दीक्षा प्रदान करने वाले वे एकमात्र जैन आचार्य हैं। उनके 100 से अधिक शिष्य हैं, जो जैन धर्म में एक अद्वितीय सिद्धि मानी जाती है।
4 फरवरी 2026 का क्षण भारतीय अध्यात्म के इतिहास में सदा-सदा के लिए दर्ज हो जाएगा।
