Krishna Janmashtami 2024 : इस सरल विधि से करें जन्माष्टमी व्रत का पारण,

हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार भादो कृष्ण अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 03:39 से लेकर 27 अगस्त को देर रात 02:19 तक रहेगी।

ग्रहस्थ लोग 26 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे।  इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा का शुभ मुहूर्त मध्यरात्रि 12:00 बजे से लेकर 12:45 बजे तक रहेगा।

भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र

1. ॐ कृष्णाय नमः

2. हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

3. ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः

4. ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात

5. ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णाया कुण्ठमेधसे।

सर्वव्याधि विनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।

जन्माष्टमी व्रत करने वाले जरूर करें इस कथा का पाठ

पूर्वकाल में हरिश्चन्द्र नायक एक चक्रवर्ती राजा हो गये है उनपर संतुष्ट होकर ब्रह्माजी ने उन्हें एक सुन्दर पुरी प्रदान की, जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली थी।

उसमें रहकर राजा हरिश्चन्द्र सात द्वीपों से युक्त वसुन्धरा का धर्म पूर्वक पालन करते थे। प्रजा को वे औरस पुत्र की भाँति मानते थे । राजा के पास धन-धान्य की अधिकता थी उन्हें नाती- पोतो की भी कमी न थी।

अपने उत्तम राज्य का पालन करते हुए राजा को एक दिन बड़ा विस्मय हुआ वे सोचने लगे ‘ आज के पहले कभी किसी को ऐसा राज्य नहीं मिला था मेरे सिवा दूसरे मनुष्यों ने ऐसे विमान पर सवारी नहीं की होगी यह मेरे किस कर्म का फल है, जिससे मैं देवराज इन्द्र के समान सुखी हूं ?’

राजाओं में श्रेष्ठ हरिश्चन्द्र इस प्रकार सोच-विचारकर अपने उत्तम विमान पर आकाश मार्ग से जाते समय पर्वतों में श्रेष्ठ मेरु पर उनकी दृष्टि पड़ी उस श्रेष्ठ शैल पर झनयोग-परायण महर्षि सनकुमार दिखायी पड़े, जो सुवर्णमयी शिला के ऊपर विराजमान थे उन्हें देखकर राजा अपना विस्मय पूछने के लिये उतर पड़े। उन्होंने पास जा  मुनि के चरणों में मस्तक झुकाया।

महर्षि ने भी राजा का अभिनन्दन किया। फिर सुखपूर्वक बैठकर राजा ने मुनिश्रेष्ठ सनत्कुमारजी से पूछा- ‘भगवन् ! मुझे जो यह सम्पत्ति प्राप्त हुई है. मानवलोक में प्रायः दुर्लभ है। ऐसी सम्पत्ति किस कर्म से प्राप्त होती है? मैं पूर्वजन्म में कौन था ? ये सब बातें यथार्थ रूप से बतलाइये।’

सनत्कुमार जी बोले- राजन् ! सुनो – तुम पूर्व जन्म में सत्यवादी, पवित्र एवं उत्तम वैश्य थे तुमने अपना काम-धाम छोड़ दिया था, इसलिये बन्धु-वान्धवों ने तुम्हारा परित्याग कर दिया। तुम्हारे पास जीविका का कोई साधन नहीं रह गया था, इसलिए तुम स्वजनों को छोड़कर चल दिये। एक समय तुम किसी  जङ्गल में जा पहुंचे। वहां एक पोखर में कमल खिले हुए थे।

उन्हें देखकर तुम दोनों के मन में यह विचार उठा कि हम यहां से कमल ले लें कमल लेकर तुम दोनों एक-एक पग भूमि लांघते हुए शुभ एवं पुण्यमयी वाराणसी पुरी में पहुंचे वहां तुम लोग कमल बेचने लगे किंतु कोई भी उन्हें खरीदता नहीं था वहीं खड़े-खड़े तुम्हारे कानों में बाजे की आवाज सुनाई पड़ी।

फिर तुम उसी ओर चल दिये वहां काशी के विख्यात राजा इन्द्रद्युम्न की सती-साध्वी कन्या चन्द्रावती ने, जो बड़ी सौभाग्यशालिनी थी, जयन्ती नामक जन्माष्टमी का शुभ कारक व्रत किया था उस स्थान पर तुम बड़े हर्ष के साथ गए वहां पहुंचने पर तुम्हारा चित्त संतुष्ट हो गया।

तुमने वहां भगवान के पूजन का विधान देखा। कलश के ऊपर श्रीहरि की स्थापना करके उनकी पूजा हो रही थी। विशेष समारोह के साथ भगवान् का पूजन किया गया था, भित्र-भिन्न पुष्पों से उनका शृंगार हुआ था भगवान की भक्ति के वशीभूत हो तुमने भी अपनी पुत्री के साथ कमल के फूलो से वहां श्रीहरि का पूजन किया तथा पूजा से बचे हुए फूलों को उनके समीप ही बिखेर दिया।
तुमने भगवान् को पुष्पमय कर दिया। इससे उस कन्या को बड़ा संतोष हुआ। वह स्वयं तुम्हें धन देने लगी, किन्तु तुमने नहीं लिया। तब राजकुमारी ने तुम्हें भोजन के लिये निमन्त्रित किया; किन्तु उस समय तुमने न तो भोजन स्वीकार किया और न धन ही लिया।
यही पुण्य तुमने पिछले जन्म में उपार्जित किया था फिर अपने कर्म के अनुसार तुम्हारी मृत्यु हो गयी उसी महान् पुण्य के प्रभाव से तुम्हें विमान मिला है राजन् पूर्व जन्म में जो तुम्हारे द्वारा वह पुण्य हुआ था, उसी का फल इस समय तुम भोग रहे हो।

जन्माष्टमी पर करें इस स्तोत्र का पाठ

सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥

राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।

राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥

राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।

राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥

राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।

राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥

ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।

तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥

निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।

नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥

यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥

बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।

वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।

गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।

इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥

हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।

पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः

श्रीकृष्ण स्तुति

भये प्रगट कृपाला दीन दयाला,यशुमति के हितकारी, हर्षित महतारी रूप निहारी, मोहन मदन मुरारी।

कंसासुर जाना अति भय माना, पूतना बेगि पठाई, सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहां जदुराई।

तेहि जाइ उठाई ह्रदय लगाई, पयोधर मुख में दीन्हें, तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें।

जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी, गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरिवर धारी।

कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे, बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे।

अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका, ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुए गए शोका।

यह छन्द अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावै, तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन मांहीं, मन-वांछित फल पावै।

दोहा- नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल भाव दिखलाय।

जन्माष्टमी के त्योहार के लिए लाल रंग को बेहद शुभ माना जाता है। बहुत से ज्योतिषाचार्य लाल और पीले रंग के कपड़े को पहनने का सुझाव देते हैं। लाल रंग ऊर्जा और साहस का प्रतीक भी माना जाता है। लाल रंग को मंगल ग्रह से भी जोड़ कर देखा जाता है। ऐसे में इस साल कृष्ण जन्माष्टमी के त्योहार पर लाल रंग के कपड़े पहनते हैं तो आपके जीवन में भी अकूत उत्साह और ऊर्जा की वृद्धि होगी।
भगवान श्रीकृष्ण आवाहन मंत्रः
बिना आह्वान किए भगवान की पूजा पूरी नहीं हो पाती है। आह्वान का मतलब होता है भगवान को बुलाना। और जब आप भगवान को बुलाएंगे ही नहीं तो पूजा कैसे स्वीकार करेंगे भगवान इसलिए आह्वान किया जाता है।
आवाहन करने की विधि और मंत्र, हाथ में तिल जौ लेकर मूर्ति में भगवान का आवाहन करना चाहिए, आवाहन मंत्र- अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्। स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्।। – तिल जौ को भगवान की प्रतिमा पर छोड़ें।
भगवान श्रीकृष्ण को आसन देने का मंत्र :
अर्घा में जल लेकर बोलें- रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वासौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।। जल छोड़ें।
भगवान श्री कृष्ण को को अर्घ्य देने का मंत्र :
अर्घा में जल लेकर बोलें – अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह। करुणां करु मे देव! गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते।। जल छोड़ें।
भगवान श्रीकृष्ण का आचमन करवाने का मंत्र :
अर्घा में जल और गंध मिलाकर बोलें – सर्वतीर्थसमायुक्तं सुगन्धं निर्मलं जलम्। आचम्यतां मया दत्तं गृहत्वा परमेश्वर।। जल छोड़ें।

जन्माष्टमी पूजा मंत्र विधि विधान सहित

शुद्धि मंत्र: –
ओम अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोअपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। जल को स्वयं पर और पूजन सामग्री पर छींटे लगाकर पवित्र करें। इसके बाद पूजा का आरंभ विधि विधान सहित करे।

श्रीकृष्ण ध्यान मंत्र

वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम्। देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।। हे वसुदेव के पुत्र कंस और चाणूर का अंत करने वाले, देवकी को आनंदित करने वाले और जगत में पूजनीय श्रीकृष्ण आपको नमस्कार है। – इस मंत्र से भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करके फूल भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में निवेदित करें।

जन्माष्टमी 2024 पूजन संकल्प मंत्र :

यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्रीजन्माष्टमी पूजनं महं करिष्ये। – हाथ में पान का पत्ता कम से कम एक रुपये का सिक्का, जल, अक्षत, फूल, फल लेकर भी यह संकल्प मंत्र बोलें, फिर हाथ में रखी हुई सामग्री की भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित करें।

जन्माष्टमी के उपाय

अगर आप संतान सुख की प्राप्ति से वंचित हैं, तो ऐसे में जन्माष्टमी के दिन किए गए उपाय आपके लिए बेहद कारगार साबित होंगे। इस शुभ तिथि पर पति और पत्नी लड्डू गोपाल की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करें और माखन मिश्री का भोग लगाएं। अंत में प्रभु से संतान प्राप्ति के लिए कामना करें। साथ ही व्रत रखें। मान्यता है कि इस उपाय को सच्चे मन से करने से संतान की प्राप्ति होती है।

ब्यूरो रिपोर्ट , आल राइट्स मैगज़ीन

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