झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में-क्या है बरेली के झुमके की कहानी।

हर शहर की लगभग कोई न कोई खासियत जरुर होती है जैसे इंदौर के पोहे जलेबी , फ़तेहाबाद के गुलाब जामुन तो बनारस का पान इन व्यंजनों को हर कोई चखना चाहता है । लेकिन कुछ शहर ऐसे भी है जो किसी चीज को लेकर जबरिया फेमस हो गए जैसे बरेली का झुमका ।आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि बरेली कभी भी किसी खूबसूरत या डिजाइनदार झुमकों के बाज़ार को लेकर फेमस नहीं रहा बल्कि बरेली का मशहूर तो सुरमा है जो सारी दुनिया के लोगों की आंखों में चमक रहा है तो फिर मेरा साया फ़िल्म में मेहंदी अली खान ने ये गीत आखिर क्यों लिखा न तो फ़िल्म की कहानी में बरेली था न कोई झुमकी की सिचुएशन जिससे फ़िल्म की स्टोरी आगे बढ़ती बल्कि ये गाना भी फ्लैशबैक में मेले के दौरान देवी के मंदिर के सामने आधी रात को होता है। बहरहाल बरेली के झुमके की कहानी फ़िल्म के गीतकार गुलाम अली खान से शुरू होती है जो अक्सर बरेली आया जाया करते थे।उनकी दोस्ती अमिताभ बच्चन के वालिद , उनकी वालदा से जरूर थी।बात आजादी से पहले की है।सन 1941 के आखिरी दिन की। उस वक्त हिन्दुस्तान और पाकिस्तान जुदा नहीं हुए थे। यही वजह थी कि लाहौर के खजान सिंह सरदार की बेटी तेजी सूरी और इलाहाबादी हरिवंश राय बच्चन की मोहब्बत की राहें मुश्किल नहीं रहीं और इस खूबसूरत मोहब्बत का गवाह बना बरेली शहर बरेली। लगभग 80 साल पहले लाहौर की तेजी सूरी अगर बरेली नहीं आतीं तो शायद भारतीय सिनेमा को सदी के नायक के रूप में अमिताभ बच्चन भी नहीं मिलते। हरिवंश राय बच्चन उस दौर में अपनी अलग पहचान बना चुके थे। साल 1941 में क्रिसमस की छुट्टियां चल रही थीं। कुछ वक्त पहले ही हरिवंश राय बच्चन अपने पिता और पहली पत्नी दोनों को खो चुके थे। जी हाँ हरिवंशराय की ये दूसरी पत्नी बनी।साल का आखिरी दिन यानि 31 दिसंबर था।अंदर से पूरी तरह टूट चुके हरिवंश राय बरेली में अपने दोस्त प्रोफेसर ज्योति प्रकाश के सिविल लाइंस में कंपनी बाग के पास स्थित घर पहुंचे। हरिवंश राय बच्चन की नौकरी भी बरेली कालेज में लगी थी लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं की थी। बहरहाल, बच्चन के अलावा प्रोफेसर साहब के घर में एक दूसरी मेहमान भी थीं। ये मेहमान कोई और नहीं बल्कि तेजी सूरी थीं। हरिवंश राय बच्चन और तेजी सूरी की यह पहली मुलाकात थी जो 31 दिसंबर 1941 की सुबह प्रोफेसर साहब के घर चाय पर हुई थी।

इस मुलाकात का जिक्र खुद बच्चन साहब ने किया है, वह लिखते हैं कि उनका रूप पहली नजर में ही किसी को भी अभिभूत करने के लिए काफी था। बच्चन साहब साहित्यकार थे तो तेजी सूरी भी मनोविज्ञान की प्रोफेसर थीं। तेजी की सगाई एक विदेश में पले-बढ़े लड़के से हो चुकी थीं लेकिन तेजी इस बेमेल विचार वाले लड़के को अपना हमसफर नहीं बनाना चाहती थीं। उन दिनों तेजी की प्रिंसिपल प्रेमा जौहरी थीं। प्रेमा बरेली की रहने वाली थीं और तेजी के दिल की बात को भी अच्छी तरह जानती थीं। प्रेमा के पति प्रेम प्रकाश जौहरी उन दिनों बरेली कालेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे और बच्चन जी के अच्छे दोस्त भी थे। एक तरफ तेजी बेमेल संबंधों से असहज थीं तो दूसरी तरफ बच्चन साहब अपनी पहली पत्नी की मौत से आहत थे। इसलिए जौहरी साहब के मन में इन दोनों टूटे हुए दिलों को जोड़ने का ख्याल आया।
31 दिसंबर की रात को इलाके के नामी वकील रामजी शरण सक्सेना के घर पर थर्टी फर्स्ट का एक कार्यक्रम आयोजन किया गया। इसमें तेजी और बच्चन साहब एक-दूसरे के करीब बैठे थे। रात को जब संगीत समारोह से लौटे तो प्रकाश जी ने बच्चन साहब को नए साल पर एक कविता सुनाने का आग्रह किया।
जैसे ही बच्चन साहब ने कहा, उस नयन में बह सकी कब इस नयन की अश्रुधारा, तो तेजी की आंखें नम हो गईं। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी और बच्चन साहब भी अपने आंसू रोक नहीं पाए।
यह देख प्रेमा जौहरी और उनके पति कमरे से बाहर चले गए। बच्चन साहब इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं, हम दोनों एक-दूसरे के गले से लिपटकर रोने लगे, 24 घंटे भी नहीं हुए थे कि दो अजनबी जीवनसाथी हो चुके थे। नए साल की सुबह में सब-कुछ पूरी तरह से बदल चुका था। प्रकाश जी ने दोनों के गले में फूलमालाएं डालकर दोनों की सगाई की घोषणा कर दी यानि इस तरह तेजी सूरी का झुमका हरिवंशराय के कुर्ते में अटक गया या बरेली के इस बाजार में इस आलिंगन में वो कही खो गया। तभी तो इस गीत में आगे ये लाईन आती है,,,,
सैया आए नैन झुकाएं घर में चोरी चोरी।
बोले झुमका मैं पहना दूँ आजा बाकी छोरी।
इस तरह दोनों का प्यार परवान चढ़ा और तेजी अपने पिता का आशीर्वाद लेने के लिए लाहौर चली गईं तो बच्चन साहब इलाहाबाद जाकर शादी की तैयारियों में जुट गए। चार जनवरी 1942 को दोनों हमेशा के लिए एक होने से पहले थोड़े वक्त के लिए जुदा हो गए।
दोनों ने शादी नहीं की थी।
इस पर दोस्त अक्सर उनसे शादी के बारे में पूछा करते थे। एक कार्यक्रम में राज मेहंदी अली खां भी थे और तेजी व बच्चन साहब भी उसमें शरीक हुए।
जब तेजी से पूछा गया कि ये सब कब तक चलेगा तो तेजी ने बड़े ही खूबसूरत अंदाज में कहा कि मेरा झुमका तो बरेली के बाजार में गिर गया है। अब इसका अर्थ कुछ भी हो सकता है जैसे दोनों ने सगाई तो कर ही ली है। अब फेरे भी लगा लेंगे।मेहंदी साहब के जेहन में यह किस्सा बसा हुआ था।
25 साल बाद जब मेरा साया फिल्म के लिए गीत लिखने की बात चली तो मेहंदी साहब को यह किस्सा याद आ गया और तेजी के झुमके पर उन्होंने साधना पर फिल्माया गया मशहूर गीत झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में लिख डाला।
बरेली का प्राचीन नाम पांचाल है और द्रोपदी यही की राजकुमारी थीं इसलिए उन्हें पांचाली भी कहते हैं उन्हें भी झुमकों का काफी शौक था। लेकिन फ़िल्म में ये झुमका साधना और द्रोपदी का नहीं बल्कि तेजी सूरी का गिरा था जो बाद में तेजी बच्चन बनी।
ये खोया हुआ झूमका देर से ही सही 55 साल बाद बरेली सरकार को जरूर मिल गया है।
तभी तो उन्होंने गुम हुए अकेले झुमके को बरेली के तिराहे पर लटका दिया है कि जिसका भी झूमका हो ले जाए।
ख़ैर कि इस गीत की कहानी भी तेजी सूरी और हरिवंश राय बच्चन की मोहब्बत से जुड़ी हुई है। सालों बाद ही सही इस झुमके की महत्ता को समझा और बरेली में 14 मीटर ऊंचा झुमका लगा कर इस तिराहे का नामकरण भी झुमका तिराहे के नाम पर कर दिया गया।

प्रस्तुति: सुरेन्द्र बीनू सिन्हा मो.9412067488

 

 

बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !

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