गूगल ने डूडल बना कर मिर्जा गालिब को श्रद्धांजलि अर्पित की
आज मशहूर शायर मिर्जा गालिब की आज 220वीं जयंती है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बना कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। गूगल ने गालिब साहब की एक फोटो शेयर की है। इस तस्वीर में गालिब के हाथों में कलम और पेन दिखाई दे रहा है। बैकग्राउंड में मुगलकालीन वास्तुकला दिख रही है।गालिब एक ऐसे शायर थे जिनके लिए भारत-पाकिस्तान की सरहदें एक हो जाती है। जितनी ख्याति उन्हे यहां मिली उतनी ही इज्जत उन्हें पाकिस्तान में मिली। मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 उत्तर प्रदेश के आगरा में एक सैन्य परिवार में में हुआ था। उनका पूरा नाम असद-उल्लाह बेग खां उर्फ गालिब था। ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे में स्पष्टतः कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने ११ वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी में गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था। उन्होने अधिकतर फारसी और उर्दू में पारम्परिक भक्ति और सौन्दर्य रस पर रचनाये लिखी जो गजल में लिखी हुई है। उन्होंने फारसी और उर्दू दोनो में पारंपरिक गीत काव्य की रहस्यमय-रोमांटिक शैली में सबसे व्यापक रूप से लिखा और यह गजल के रूप में जाना जाता है।
13 वर्ष की आयु में उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गये थे जहाँ उनकी तमाम उम्र बीती। अपने पेंशन के सिलसिले में उन्हें कोलकाता कि लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी, जिसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है। बचपन से ही गालिब को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। उनकी जिदंगी काफी उथल-पुथल और त्रासदी भरी रही। उनका यह दर्द उनकी शायरी में कहीं ना कहीं दिखता है। बचपन में ही उनके पिताजी चले बसे थे जिसके बाद उन्हें उनके चाचा ने पाला था, लेकिन उनका साथ भी काफी कम समय में छूट गया। बाद में उनकी परवरिश नाना-नानी ने की थी। 13 वर्ष में गालिब की शादी बेगम से हो गई थी। विवाह के बाद गालिब की आर्थिक कठिनाइयां बढ़ती ही गईं। इसके बाद 7 नवजात बच्चों की मृत्यू ने उन्हें झकझोंर कर रख दिया।मुगल शासक बहादुर शाह ज़फ़र ने उन्हें दो बड़ी उपाधियों से नवाज़ा। उन्हें अपने दरबार का खास अंग बनाया। गालिब को उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है।