बरेली: 4 बड़ी निर्माण कंपनियां होंगी ब्लैकलिस्ट

बरेली में सड़क निर्माण के नाम पर ‘बड़ा खेल’: 25% बिलो टेंडर लेकर घटिया काम, 4 बड़ी कंपनियां ब्लैकलिस्ट होने की कगार पर

ब्यूरो रिपोर्ट: रोहिताश कुमार | बरेली

बरेली: उत्तर प्रदेश के बरेली मंडल में कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार की सड़कों पर प्रशासन का चाबुक चला है। ‘ए’ श्रेणी की चार बड़ी निर्माण कंपनियों ने सरकारी टेंडर हासिल करने के लिए 25 प्रतिशत से भी अधिक बिलो (Below) दरें भरीं, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता के साथ ऐसा खिलवाड़ किया कि अब उनकी पोल खुल गई है। लोक निर्माण विभाग (PWD) की जांच में गंभीर खामियां मिलने के बाद इन चारों फर्मों को ‘ब्लैकलिस्ट’ करने का नोटिस जारी किया गया है।

इन 4 बड़ी कंपनियों पर गिरी गाज

लोक निर्माण विभाग की जांच में जिन कंपनियों के कार्यों में धांधली और अनियमितताएं मिली हैं, उनमें शामिल हैं:

  1. एसएस इंफ्रोजोन प्रा. लि. (लखनऊ)

  2. एबी इंफ्राजोन (बदायूं)

  3. बीपी कंस्ट्रक्शन (गाजियाबाद)

  4. शर्मा कंस्ट्रक्शन (बरेली)

जांच में खुली पोल: न इंजीनियर मिले, न सही तकनीक

मुख्य अभियंता अजय कुमार ने बताया कि इन कंपनियों ने न केवल अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन किया, बल्कि तकनीक के साथ भी समझौता किया।

  • तकनीकी धोखाधड़ी: बैच मिक्स प्लांट की जगह पुराने ‘ड्रम बेस्ड हॉट मिक्स प्लांट’ का इस्तेमाल किया गया।

  • अनुपस्थित स्टाफ: साइट पर न तो प्रोजेक्ट मैनेजर मिले और न ही कोई योग्य इंजीनियर।

  • बदहाल सड़कें: भमोरा-शाहबाद, फरीदपुर-बीसलपुर समेत शाहजहांपुर और पीलीभीत की कई नई सड़कें बनने के कुछ महीनों बाद ही उखड़ने लगी हैं।


शर्मा कंस्ट्रक्शन पर 10 लाख का जुर्माना: नगर आयुक्त का सख्त एक्शन

सिर्फ PWD ही नहीं, बल्कि बरेली नगर निगम ने भी कड़ा रुख अपनाया है। सीएम ग्रिड योजना के तहत कोहाड़ापीर से कुदेशिया रोड तक चल रहे निर्माण में भारी लापरवाही और देरी के कारण शर्मा कंस्ट्रक्शन पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने मौके पर निरीक्षण के दौरान पाया कि सड़क खोदकर छोड़ दी गई है, जिससे पाइपलाइन और सड़कें टूट रही हैं। धूल और जाम से जनता त्रस्त है, लेकिन ठेकेदार काम में तेजी नहीं ला रहा है। नगर आयुक्त ने दो टूक चेतावनी दी है कि यदि सुधार नहीं हुआ, तो और भी कठोर कार्रवाई की जाएगी।

भ्रष्टाचार का मॉडल: ‘बिलो टेंडर’ की आड़ में खेल

विशेषज्ञों का दावा है कि जब कोई कंपनी वास्तविक लागत से 25% कम पर टेंडर लेती है, तो वह सामग्री और गुणवत्ता में भारी कटौती किए बिना मुनाफा नहीं कमा सकती। यह पूरा खेल अभियंताओं और ठेकेदारों की मिलीभगत से चल रहा है, जिस पर अब मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार नकेल कसी जा रही है।


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