रातों रात उखाड़ दिया सरकारी हैण्डपम्प
हांलाकि नगर पालिका बिना किसी नियम कानून के अपने खुद के उपबन्धों और अनुबन्धां की अवमानना करते हुए किसी की निजी जमीन पर इंटरलॉकिंग नहीं करा सकती है और न ही वहां जल निगम हैण्डपम्प लगवा सकता है। यह बातें दोनां संस्थाओं द्वारा कही भी जाति रही हैं लेकिन मनमानी के आगे धीरे धीरे इनको अनसुना किया जाता रहा। नतीजा यह है, कि करीब 10 साल पहले जल निगम द्वारा लगाया गया सरकारी हैण्डपम्प को उखाड़कर नाजायज कब्जेदार द्वारा उसमें समरसिबल लगा लिया गया। और उक्त गली में लगी सरकारी इंटर लॉकिंग रोड को नगर पालिका अधिकारियों पर दबाब बनाकर उखड़वा दिया गया।
यानि एक आदमी को अनुचित लाभ पहुॅचाने के लिये किसान टोला नई बस्ती के तमाम बाशिंदों को गली की सुविधा से वंचित कर दिये जाने में तमाम हालात मौके पर बना दिये गये है।
गली की दूसरी तरफ रहने वाला एक व्यक्ति इस गढ़़बड़ झाला को लेकर पालिका और प्रशासन के अधिकारियों से बार बार मिलता है। दरखासें देता है, और गली की सही स्थिति को बहाल करने की गुजारिश करता है। लेकिन दस साल में किसी स्तर पर उसकी सुनवाई नहीं की गई। जाहिर है कि सम्बन्धित अधिकारियों का इस मामले में हथियार डाल देना सिर्फ इसलिए है, कि वे नहीं चाहते कि निष्पक्ष कार्यवाही करके रसूक वाले से बैर मोल लें और वह उनके खिलाफ लिखकर उनकी कलही खोलता रहे। यानी इस मामले में “न तू मुझको छेड़ न मैं तुझको” बाली नीति अपना कर सार्वजनिक हित के मुददे को नकार दिया जा रहा है।
वैसे इस तरह के मामलों की सुर्खियां ेमें लाने का एक प्लेटफार्म राजनीति का भी होता है लेकिन राजनीतिक नेता कार्यकर्ता पहले से ही रसूक वाले के आगे गर्दन झुकाए रहते हैं। पिछले सालों में सूबे में सत्तारूढ़ दल के जिले के सबसे बड़े नेता ने ऐसा ही रोल निभाया है। जिसके बारे में अप्रत्यक्ष रूप से एक अधिकारी ने ही दुहाई दी थी कि उनका दबाब होने के नाते हम साफ फैसला नहीं कर सकते। यानी फिलहाल गली का नस्तनाबूत करने से प्रभावित पक्ष के सामने इस मामले में कहीं न्याय मिलने का कोई रास्ता तो नजर नहीं आता लेकिन ऐसा होने से अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना कोई बंद तो नहीं कर देगा। पीड़ित हमेशा इस उम्मीद के साथ ही तो लड़ता है, कि एक दिन उसका हक बहाल होगा। अन्यायी शिकस्त होगा और न्याय की जीत होगी। वह सुबह कभी आयेगी।