TMC नेता के बेटे को उम्रकैद की सजा!
हांसखाली कांड: TMC नेता के बेटे समेत 3 को ‘आमरण’ उम्रकैद, नदिया की अदालत ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
कोलकाता/राणाघाट। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले को झकझोर देने वाले हांसखाली सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में न्याय की जीत हुई है। राणाघाट की जिला अदालत ने मंगलवार, 23 दिसंबर 2025 को मामले के मुख्य दोषियों को ऐसी सजा सुनाई है कि वे अब अपनी पूरी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे ही बिताएंगे।
तीन दोषियों को ‘आमरण’ उम्रकैद: बची हुई जिंदगी जेल में कटेगी
सोमवार को 9 लोगों को दोषी करार दिए जाने के बाद, आज न्यायाधीश ने सजा का ऐलान किया।
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मुख्य दोषी: सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता के बेटे ब्रज गयाली को ‘आमरण’ उम्रकैद (Imprisonment until death) की सजा सुनाई गई है।
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सह-आरोपी: ब्रज के साथ प्रभाकर पोद्दार और रंजीत मल्लिक को भी इसी कठोर सजा से दंडित किया गया है।
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सजा का मतलब: ‘आमरण’ उम्रकैद का अर्थ है कि इन तीनों अपराधियों को अपनी अंतिम सांस तक जेल में ही रहना होगा, उन्हें कोई राहत नहीं मिलेगी।
TMC नेता और अन्य को भी मिली जेल
अदालत ने केवल दुष्कर्म के आरोपियों को ही नहीं, बल्कि साक्ष्य मिटाने और साजिश रचने वालों को भी कड़ा संदेश दिया है:
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TMC नेता समरेंद्र गयाली: मुख्य आरोपी ब्रज के पिता और स्थानीय नेता समरेंद्र गयाली, दीप्त गयाली और एक अन्य व्यक्ति को 5 साल के कारावास की सजा सुनाई गई है।
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अंशुमान बागची: पीड़िता के परिवार को डराने-धमकाने और शव को श्मशान ले जाने के लिए मजबूर करने के आरोपी अंशुमान बागची को 3 साल की सजा मिली है।
क्या था पूरा मामला? (फ्लैशबैक 2022)
यह रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना 4 अप्रैल, 2022 की है, जिसने पूरे देश को हिला दिया था:
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जन्मदिन की पार्टी: एक 14 वर्षीय नाबालिग किशोरी को पंचायत नेता के बेटे ब्रज गयाली ने अपने जन्मदिन की पार्टी में बुलाया था।
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हैवानियत: पार्टी के दौरान नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई।
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मौत: इलाज और मदद के अभाव में किशोरी ने अगले ही दिन दम तोड़ दिया।
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दबाव: आरोपियों पर आरोप था कि उन्होंने रसूख के दम पर परिवार को धमकाया और बिना पोस्टमार्टम के शव का अंतिम संस्कार करवा दिया था।
साढ़े तीन साल बाद मिला न्याय
करीब साढ़े तीन साल तक चली कानूनी लड़ाई और सीबीआई (CBI) की जांच के बाद, आज नदिया की जिला अदालत ने पीड़िता को न्याय दिया है। इस फैसले को बंगाल में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर एक बड़े प्रहार के रूप में देखा जा रहा है।
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