पुलिस प्रशासन निष्क्रिय-चोर सक्रिय

वैसे तो किसी भी प्रकार की सामाजिक अच्छाई अथवा बुराई के आंकड़ों का सीधा संबंध बढ़ती हुई आबादी की दर से है। जैसे-जैसे आबादी वृद्धि होती जा रही है उसी के अनुसार समाज में जहां अच्छाईयां बढ़ रही हैं वहीं बुराईयां भी उससे अधिक तेज़ अनुपात से बढ़ती जा रही हैं। गरीबी, बेरोजग़ारी, मंहगाई, अशिक्षा, अज्ञानता भी प्रत्येक बुराई के कारण हंै। हमारे समाज में होने वाले अनेक अपराध ऐसे हैं जिन्हें रोक पाना पुलिस अथवा प्रशासन के लिए एक मुश्किल व चुनौती भरा काम है। जैसे आतंकवाद पर नियंत्रण पाना, हत्या-डकैती अथवा रंजिश के चलते होने वाले अपराध कब और कहां घटित हों इसका अंदाज़ा लगा पाना प्रशासन के लिए निश्चित रूप से एक मुश्किल काम होता है। परंतु कुछ अपराध ऐसे भी हैं जो पुलिस प्रशासन द्वारा नियंत्रित किए जा सकते हैं। और इनके बढ़ते हुए ग्राफ में कमी भी लाई जा सकती है। परंतु इसके बावजूद यदि ऐसे अपराधों में बढ़ोतरी होती जा रही है तो निश्चित रूप से इसका अर्थ यही है कि पुलिस प्रशासन निष्क्रिय है तथा इस प्रकार के नियंत्रित हो सकने वाले अपराधों को रोक पाने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है। ऐसे ही एक निरंतर बढ़ते हुए अपराध का नाम है चोरी। इन दिनों आप देश के किसी भी राज्य के समाचार पत्र पर नजऱ डालें तो आपको एक ही दिन में पूरे देश के सैकड़ों शहरों,कस्बों व गांव में चोरी की वारदातों की खबरें पढऩ़े को मिलेंगी।

कभी चोरी का तरीकों में सेंधमारी या दीवार कूद कर घरों में दाखिल होकर घर का सामान चोरी कर लेने जैसे उपाय चोरों द्वारा अपनाए जाते थे। परंतु अब तो चोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे घरों के ताले,कुंडे-कब्ज़े तथा शटर आदि तोडऩे में देर नहीं लगाते। छतों को काटकर,खिड़कियां व दरवाज़े तोडक़र चोरियां की जा रही हैं। भीड़भाड़ वाली जगहों से,सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों के बाहर से सरेआम साईकल,स्कूटर यहां तक कि कारों तक की चोरियां की जा रही हैं। चोरों की दिलेरी व सीनाज़ोरी का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि चोरों के कई गैंग बाकायदा छोटी मालवाहक वैन अथवा ट्रैक्टर ट्राली भी साथ लेकर चलते हैं तथा अपने इस लोडिंग वाहन को घटनास्थल के आस-पास खड़ा कर देते हैं। उसके बाद पूरे घर का सामान इसी वाहन में लादकर चंपत हो जाते हैं। गांव व कस्बों में तो किसानों व ज़मींदारों के पशुधन को भी खूंटे से खोलकर अपने लोडिंग वाहन पर सवार कर ले उड़ते हैं। कई समाचार तो ऐसे भी सुनने को मिले कि चोरों ने पीडि़त व्यक्ति के घर में स्टॉक के रूप में रखा गया कई क्विंटल गेहूं तक चुरा लिया। रेलवे, रोडवेज़ तथा बिजली जैसे कई सरकारी विभाग हमारे देश में ऐसे भी हैं जिनका वार्षिक बजट ‘भीतर और बाहर’ से होने वाली इन्हीं चोरी की घटनाओं की वजह से प्रभावित होता हैं।

विभिन्न शहरों में कुछ विशेष क़िस्म के लोग आधी रात के बाद अपने कंधों पर बड़े-बड़े थैले रखकर कूड़ा-करकट रद्दी,गत्ता, पॉलीथिन व बोतलें आदी चुनने के बहाने अपने घरों से बाहर निकल पड़ते हैं। इनमें महिलाओं की आबादी अधिक होती है। यह लोग भीषण सर्दी तथा बरसात या गर्मी की परवाह किए बिना प्राय नंगे पैर ही अपनी ‘डयूटी’ पर निकल पड़ते हैं। और जब सूर्योदय का समय होता है उस समय इनकी वापसी हो रही होती है। वापसी के समय इनके कंधों पर बड़-बड़े बोझ वाले भारी थैले लदे होते हैं। सोचने की बात है कि रात के अंधेरे में आखिर इन कूड़ा चुनने वालों को क्या सुझाई देता होगा? सर्दी के दिनों में तो धुंध में एक-दो मीटर दूर की कोई वस्तु भी दिखाई नहीं देती परंतु यह ‘जांबाज़’ लोग किसी भी कठिन से कठिन मौसम की परवाह किए बिना नंगे पांव अपने ‘मिशन’ पर बाहर धूम रहे होते हैं। बड़े दुख की बात है कि इनके मां-बाप व अभिभावक इन बच्चों को देर रात में ही बिस्तर से उठाकर उनके कंधों पर बड़े-बड़े बोरे अथवा थैले रखकर उन्हें अपने घर से बाहर कमाई करने के लिए भेज देते हैं। इस प्रकार के लोगों के निशाने पर कोई लावारिस वस्तु या ऐसी चीज़ें जिसे आप संभालना या सुरक्षित रखना भूल गए हों या फिर घर की बाऊंड्री में कूद कर इधर-उधर पड़ा कीमती सामान या किसी खाली पड़े मकान,दुकान अथवा कार्यालय का कोई भी सामान आदि होता है। यदि कहीं निर्माण कार्य चल रहा है या तोड़-फोड़ जैसा कोई काम हो रहा है वहां भी यह लोग अंधेरे में ही पहुंच कर अपने मतलब की चीज़ें हासिल कर लेते हैं।

कभी चोरी का तरीकों में सेंधमारी या दीवार कूद कर घरों में दाखिल होकर घर का सामान चोरी कर लेने जैसे उपाय चोरों द्वारा अपनाए जाते थे। परंतु अब तो चोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे घरों के ताले,कुंडे-कब्ज़े तथा शटर आदि तोडऩे में देर नहीं लगाते। छतों को काटकर,खिड़कियां व दरवाज़े तोडक़र चोरियां की जा रही हैं। भीड़भाड़ वाली जगहों से,सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों के बाहर से सरेआम साईकल,स्कूटर यहां तक कि कारों तक की चोरियां की जा रही हैं।

यह तो थी चोरों की सक्रियता तथा अपने मिशन के लिए उनकी मेहनत व कुर्बानी की कुछ मिसालें। अब जऱा इस अपराध पर नियंत्रण पाने की सबसे जि़म्मेदार मशीनरी अर्थात् पुलिस प्रशासन की कारगुज़ारी भी गौर फरमाईए। यहां यह विस्तार से बताने की ज़रूरत नहीं कि दिल्ली से लेकर हरियाणा-पंजाब व हिमाचल जैसे राज्यों में सूरज छुपते ही आम लोगों के साथ-साथ पुलिस विभाग के जि़म्मेदार कर्मचारी भी अपनी दिनभर की ‘टेंशन’ को दूर करने की कोशिशों में व्यस्त हो जाते हैं। रात होते-होते इनकी ‘टेंशन’ रफरचक्कर हो चुकी होती है। परिणामस्वरूप थानों व पुलिस चौकियों में भीतर की ओर से कुंडे अथवा ताले बंद हो जाते हैं और हमारा रक्षक विभाग चैन की नींद सोता है। जिस समय बड़े ही जि़म्मेदार व कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारियों के हाथों में कानून व्यवस्था की बागडोर हुआ करती थी उस समय विभिन्न प्रदेशों में प्रत्येक मोहल्ले के लगभग प्रत्येक चौराहे पर पुलिस की चौबीस घंटे नियमित डयूटी लगा करती थी। यही पुलिस चौराहे से उठकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद पूरे मोहल्ले व गलियों के चक्कर भी लगाती थी। इनके हाथों में टार्च,डंडा अथवा ज़रूरी शस्त्र भी होता था। इस व्यवस्था से चोर भयभीत व सचेत रहते थे। चौराहे से देर रात निकलने वाले किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को रोककर पुलिस उसके आने-जाने के संबंध में सवाल-जवाब करती थी। ज़ाहिर है इस प्रशासनिक चौकसी के परिणामस्वरूप कम से कम चोरी जैसे अपराधों में तो कमी रहती ही थी।

परंतु अब हालात इसके विपरीत हो चुके प्रतीत होते हैं। गोया पुलिस प्रशासन जहां चोरी रोक पाने में,चौकसी बरत पाने में निष्क्रिय होता जा रहा है वहीं अपने काम को मिशन के रूप में अंजाम देने वाले चोरों की सक्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। चोरों के गिरोह भी पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता को भलीभांति समझ चुके हैं। यही वजह है कि उन्हें इस बात की भी परवाह नहीं कि उनके द्वारा निशाना बनाए जाने वाला कोई स्थान पुलिस थाने के करीब है या बैंक अथवा कचहरी के आसपास। चोरों को आम राहगीरों के मनोविज्ञान का भी भलीभांति अंदाज़ा है कि आम राहगीर किसी भी व्यक्ति यहां तक कि चोर-उचक्कों से तो खासतौर पर कुछ बोलना,पूछना या टोका-टाकी करना पसंद नहीं करता । आम जनता की अथवा आम राहगीरों की इस अनदेखी का भी चोरों को पूरा लाभ मिलता है। जिस समय यह लोग सुबह अंधेरे के समय ही अपना ‘मिशन’ पूरा कर अपने घरों को वापस जा रहे होते हैं या किसी कबाड़ की दुकान पर अपना चोरी या सडकों से इक_ा किया हुआ माल बेचने जाते हैं उस समय भी इन्हें रास्ते में रोक कर पूछने वाला या इनकी तलाशी लेने वाला कोई नहीं होता। ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरूप जहां आम जनता को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है वहीं इस प्रकार के असमाजिक तत्वों के बढ़ते हौसले इसी समाज में दूसरे बच्चों को भी इसी रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: