मनरेगा की जगह लेगा G-RAM-G कानून

संसद से ‘जी राम जी’ बिल पास: खत्म हुई मनरेगा! अब ‘G RAM G’ के नाम से मिलेगी ग्रामीण रोजगार की गारंटी; जानें क्या बदल गया

नई दिल्ली | नेशनल डेस्क:

भारतीय संसद ने एक ऐतिहासिक और विवादित कदम उठाते हुए ‘विकसित भारत-रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी G RAM G (जी राम जी) बिल को मंजूरी दे दी है। यह नया कानून यूपीए सरकार के समय से चली आ रही ‘मनरेगा’ (MNREGA) की जगह लेगा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह प्रभावी हो जाएगा। हालांकि, विपक्ष ने इसके नाम और फंडिंग स्ट्रक्चर को लेकर सदन में भारी हंगामा और विरोध किया।

मनरेगा बनाम जी राम जी: क्या हैं मुख्य बदलाव?

विशेषता मनरेगा (MNREGA) जी राम जी (G RAM G)
गारंटीशुदा काम 100 दिन 125 दिन
फंडिंग (केंद्र:राज्य) ~90:10 (मजदूरी केंद्र देता था) 60:40 (राज्यों पर बोझ बढ़ा)
नाम महात्मा गांधी के नाम पर भगवान राम के नाम पर (विपक्ष का दावा)
दृष्टिकोण मांग-आधारित (Demand-based) मानक-आधारित (Norm-based)

विपक्ष का कड़ा प्रहार: “यह गारंटी नहीं, रोजी-रोटी पर हमला है”

कांग्रेस सांसद पी. चिदंबरम ने बिल का विरोध करते हुए इसे ग्रामीण गरीबों की सुरक्षा पर हमला बताया। विपक्ष के मुख्य आरोप हैं:

  • नाम की राजनीति: महात्मा गांधी का नाम हटाकर ‘राम’ के नाम का उपयोग करना राजनीतिक एजेंडा है।

  • फंडिंग का बोझ: अब राज्यों को मजदूरी का 40% हिस्सा देना होगा। विपक्ष का तर्क है कि राज्यों के पास 56 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाने के वित्तीय संसाधन नहीं हैं, जिससे योजना दम तोड़ देगी।

  • ग्रामीण क्षेत्र की परिभाषा: रोजगार केवल उन्हीं क्षेत्रों में मिलेगा जिन्हें केंद्र ‘ग्रामीण’ घोषित करेगा, जिससे इसका दायरा सिमट सकता है।

सरकार का तर्क: “भ्रष्टाचार मुक्त और आधुनिक योजना”

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिल का बचाव करते हुए कहा कि 20 साल पुरानी योजना पुरानी पड़ चुकी थी और भ्रष्टाचार से भरी थी।

  • ज्यादा रोजगार: काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 किया गया है।

  • राज्यों की जिम्मेदारी: 40% फंडिंग से राज्य इस योजना के प्रति अधिक जवाबदेह (Accountable) बनेंगे।

  • पारदर्शिता: केंद्र सरकार ‘ऑब्जेक्टिव पैरामीटर्स’ के आधार पर फंड आवंटित करेगी, जिससे धांधली रुकेगी।

काम की श्रेणियां और नई शर्तें

नए कानून के तहत काम को चार प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है:

  1. जल सुरक्षा

  2. मुख्य ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर

  3. आजीविका एसेट्स

  4. क्लाइमेट रेजिलिएंस (जलवायु लचीलापन)

भत्ता: यदि काम मांगने के 15 दिनों के भीतर रोजगार नहीं मिलता है, तो बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा, जिसका पूरा खर्च सरकार उठाएगी। साथ ही, इसमें 60 दिनों का ‘नो वर्क’ विंडो भी शामिल किया गया है।

निष्कर्ष: राज्यों के लिए बड़ी चुनौती

जहां केंद्र इसे ‘विकसित भारत’ की ओर एक बड़ा कदम बता रहा है, वहीं राज्यों के लिए 40% खर्च उठाना एक बड़ी चुनौती होगी। पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए राहत की बात यह है कि उन्हें केवल 10% ही देना होगा, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों का 100% खर्च केंद्र उठाएगा।


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