बिहार में एक और सियासी ड्रामा, इस बार कांग्रेस बनाम कांग्रेसी और मांझी की नाराजगी

 

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पटना : राजनीति में संभावनाओं की हर वक्त जगह होती है। खासकर, बिहार की राजनीति बिल्कुल जुदा है। कहते हैं कि राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता और न ही दुश्मन। उलट-फेर और दल-बदल राजनीति का सबसे बड़ा फंडा होता है, कौन किसके साथ कब हाथ मिला लेगा? ये तय नहीं होता।

एेसे कई उदाहरण बिहार की राजनीति में देखने को मिल जाएंगे। जैसे राजनीति में एक-दूसरे के अच्छे दोस्त की तरह पेश आने वाले भाजपा और जदयू ने दोस्ती की फिर कुछ मुद्दों पर वैमनस्य होने के बाद दोस्ती तोड़ ली। फिर चिर प्रतिद्वंद्वी रहे लालू और नीतीश ने गलबहियां कीं और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया। लेकिन यह दोस्ती कुछ ही दिनों की रही और दोस्ती टूटने के बाद फिर पुराने दोस्त जदयू-भाजपा एक हो गए।

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ठीक एेसे ही बिहार की राजनीति ने एक बार फिर करवट बदली है और होली से ठीक दो दिन पहले बुधवार  को सियासी बदलाव की बयार फिर से देखने को मिली। जहां उपचुनाव, राज्यसभा चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव व विधानसभा के घमासान की शुरुआत हो चुकी है।

एनडीए से नाराज चल रहे हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने बुधवार को विपक्षी महागठबंधन के साथ जाने का एेलान कर दिया तो वहीं शाम में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने पार्टी के तीन अन्य विधानपार्षदों के साथ जदयू में जाने का एेलान कर दिया।

हालांकि, राजनीति के जानकारों के मुताबिक ये दोनों ही फ़ैसले बिहार की राजनीति में चौंकाने वाले फैसले नहीं हैं। इसकी संभावना बिहार में राजद-जदयू-कांग्रेस के महागठबंधन के टूटने के बाद से ही देखी जा रही थी। ये दोनों नेता जुलाई में नीतीश कुमार द्वारा फिर से भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का दामन थामने के बाद से अपने-अपने पुराने गठबंधनों में असहज महसूस कर रहे थे।

 

जीतन राम मांझी ने बुधवार देर शाम बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ प्रेस वार्ता कर एनडीए छोड़ने एवं महागठबंधन में शामिल होने को लेकर औपचारिक एलान किया और प्रदेश के नीतीश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मुझे कुछ मुद्दों पर मतभेद था, जिसके कारण एनडीए के साथ चलना मुश्किल था। इसीलिए हमने उनका साथ छोड़ दिया। मांझी ने कहा कि शराबबंदी और बालू-संकट के कारण राज्य के गरीब तबके पर बहुत बुरी मार पड़ी है।

मांझी ने आरक्षण के मुद्दे पर भी सवाल उठाया और बिहार के नए डीजीपी केएस द्विवेदी के बारे में कहा कि भागलपुर दंगे के आरोपी को डीजीपी बनाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि एनडीए में सब ठीक नहीं है।भाजपा अपने सहयोगियों को सम्मान नहीं देती है उनपर हावी रहना चाहती है। एेसे में मैं आहत होता था।

वहीं, बुधवार की शाम में ही अचानक कांग्रेस का साथ छोड़कर जदयू के साथ जाने वाले पार्टी के पूर्व अध्यक्ष जो कभी पार्टी के लिए बेहतरीन प्रदर्शन करने का दम भरते दिखते थे तो कभी पार्टी से मिले अपमान पर आंसू बहाते दिखते थे।

उस अशोक चौधरी का कहना था कि उन्होंने सम्मान नहीं मिलने के कारण पार्टी छोड़ दी है। इसका आरोप उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सीपी जोशी पर लगाते हुए कहा कि उनकी वजह से ही मुझे पार्टी छोड़नी पड़ी है। इसके साथ ही उन्होंने नीतीश कुमार को दूसरा सबसे बेहतर मुख्यमंत्री बताते हुए कहा कि वे नीतीश की छवि और कार्यशैली से प्रभावित होकर जदयू में शामिल हो रहे हैं। दूसरी ओर उन्होंने पार्टी छोड़ते हुए भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की जमकर तारीफ की।

इसके साथ ही उनके साथ आए बाकी सदस्यों ने भी पार्टी में अपमानित होने की बात कही और ये भी कहा कि जल्द ही कुछ और लोग कांग्रेस का साथ छोड़कर जदयू में आ जाएंगे। तो वहीं राजद की तरफ से भी कहा जा रहा है कि जल्द ही कुछ और घटक दल एनडीेए छोड़कर विपक्षी महागठबंधन में आ जाएंगे।

इन सबके पीछे एक ही वजह है कि अब कुछ ही दिनों में उपचुनाव होने हैं उसके बाद राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव होने हैं। इनकी परीक्षा के साथ ही अगले साल लोकसभा का चुनाव और फिर 2020 के विधानसभा के चुनाव का सियासी जमीन तैयार की जा रही है।

इस बार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में एनडीए के सामने विपक्षी महागठबंधन होगा, जिसे एकजुट करने के प्रयास जारी हैं। इसे ही ध्यान में रखते हुए बिहार के दोनों सबसे अहम गठबंधन राजनीतिक और सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में करने की तैयारी में जुट गए हैं और अब ये देखना होगा कि कौन किससे दोस्ती करता है कौन किससे दुश्मनी।

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