अरविंद श्रीनिवास: Perplexity के संस्थापक, डेढ़ लाख करोड़ की कंपनी — जिसने सिर्फ दो साल में Google को हिला दिया!
(1) कौन हैं अरविंद श्रीनिवास?
जिस Google ने दो दशकों तक सर्च इंजन की दुनिया में बादशाहत कायम रखी, जिसे Microsoft का Bing भी टक्कर नहीं दे पाया—उसे आज पहली बार असहज कर दिया है एक भारतीय युवा ने। चेन्नई के मध्यमवर्गीय तमिल परिवार से निकला अरविंद, IIT मद्रास की कठोर पढ़ाई पार कर, आज दुनिया भर में चर्चित AI स्टार्टअप Perplexity AI का संस्थापक है।
Google के लिंक-आधारित सर्च सिस्टम को चुनौती देने वाला यह प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ताओं को सीधे जवाब देता है, और साथ में देता है भरोसेमंद स्रोत भी। मात्र 30 वर्ष की उम्र में अरविंद ने जो तकनीकी क्रांति रची, वह इतिहास में दर्ज हो रही है। और यह तो बस शुरुआत है।
(2) चेन्नई की धूप से सिलिकॉन वैली तक का सफर
पहला अध्याय: अनचाहा जिज्ञासा
7 जून 1994 को जन्मे अरविंद के घर में कंप्यूटर नहीं था। पिता की पुरानी स्कूटर और रेलवे स्टेशन से लाए गए पुराने मैगज़ीन से वह छोटे-छोटे मॉडल बनाता। तकनीकी चीजों को हाथ से छूकर समझने का जुनून उसमें बचपन से था।
दूसरा अध्याय: IIT मद्रास—खून, पसीना और सपना
2011, हॉस्टल रूम D-208। दीवारें सीलन भरीं, छत से पानी टपकता। परिवार IIT की महंगी फीस नहीं उठा सकता था—तो अरविंद दिन में क्लास करता, रात में लैब और बच्चों को ट्यूशन देकर अपनी पढ़ाई की लागत निकालता।
पहला झटका: कैल्कुलस में फेल।
दूसरा झटका: प्रोफेसर ने रिसर्च आइडिया को खारिज कर दिया—“डेटा के बिना आइडिया बेमतलब है।”
उसी रात Kaggle से ओपन डाटासेट डाउनलोड किया। पहली बार Amazon EC2 पर अपना AI मॉडल चलाया—हॉस्टल के लाइट्स आउट के बाद, चादर के नीचे लैपटॉप की नीली रोशनी में।
उसने सीखा: “जैसे मशीन बिना रन किए नहीं चलती, वैसे ही जिंदगी भी बिना पसीना बहाए आगे नहीं बढ़ती।”
तीसरा अध्याय: कैलिफोर्निया की सीढ़ियाँ — UC Berkeley
2016 में पूरी स्कॉलरशिप के साथ पहुंचा Berkeley। भारत से गई आदतें जल्दी बदली नहीं:
डॉलर की महंगाई, धनिया के लिए भी सोच-समझकर खर्च।
F1 वीज़ा के चलते पार्ट-टाइम जॉब नहीं कर सकता था—TA-शिप से खर्च निकालना पड़ता।
अमेरिकी क्लासरूम में “I disagree” कहकर प्रोफेसर को टोकना कल्चर शॉक था।
पहले दो पेपर रिजेक्ट हुए, तीसरे पेपर के लिए उसने 12 घंटे तक कोड री-फैक्टर किया—और ICLR में “स्पॉटलाइट” मिला। अब वह इंटरनेशनल स्टेज पर था।
चौथा अध्याय: लंदन की चूहों भरी रातें—DeepMind
2019, DeepMind में इंटर्नशिप। लेकिन वीजा-हाउसिंग इतनी सीमित कि लंदन में एक सस्ती बेसमेंट रूम में चूहों के बीच नींद नहीं आती थी—इसलिए लाइब्रेरी के सोफे पर रातें बिताई।
शाम 6 बजे के बाद ऑफिस खाली होता, तब वह व्हाइटबोर्ड पर Transformer पेपर समझता। Google की किताब In the Plex पढ़ता। एक दिन उसके कोड ने टीम का latency 20 मिलीसेकंड कम कर दिया—टीम लीड ने नोटिस किया, तारीफ मिली। उसने जाना: Struggle is temporary, impact is permanent.
(3) Perplexity की शुरुआत: गेराज से गूगल तक
2022 की गर्मियों में तीन दोस्तों के साथ Zoom कॉल—SQL जनरेशन से बात मुड़ी: “क्यों न सर्च का नया तरीका बनाया जाए?”
नाम रखा Perplexity AI, जो एक भाषा मॉडल की ‘confusion’ को मापता है। मकसद—10 लिंक नहीं, सीधा जवाब, और साथ में सोर्स।
गेराज में शुरू हुआ ऑफिस।
टीम GPU खुद मॉनिटर करती।
अरविंद खुद का क्रेडिट कार्ड लिमिट बढ़ा कर मॉडल टेस्टिंग करता।
(4) गूगल की पहली घबराहट
2024 के अंत में, अचानक Perplexity के सर्वर पर सर्च ट्रैफिक 10 गुना बढ़ गया। Google के एक वरिष्ठ प्रोडक्ट मैनेजर ने X (Twitter) पर लिखा—“मुझे इनका UI पसंद नहीं, लेकिन इनके सर्च रिज़ल्ट तेज और बेहतर हैं।”
Google के माउंटेन व्यू ऑफिस में मीटिंग बुलानी पड़ी।
दुनिया ने पहली बार महसूस किया—Google को भी डर लगता है।
(5) अरबों की कंपनी, लेकिन संघर्ष नहीं भूले
सिर्फ एक साल में SoftBank, Nvidia, Jeff Bezos सबने निवेश किया। कंपनी की वैल्यू 18 अरब डॉलर (लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये)। अरविंद की निजी संपत्ति भी 50,000 करोड़ के पार—but वह अब भी उन चूहों वाली रातें नहीं भूला।
(6) अंत नहीं, एक नई शुरुआत
अरविंद श्रीनिवास ने साबित किया:
मध्यमवर्गीय सीमाएं रोका नहीं करतीं।
वीज़ा की शर्तें सपनों से बड़ी नहीं होतीं।
सफलता चूहों भरी बेसमेंट से भी शुरू हो सकती है।
Perplexity आज Google की असली चुनौती है। और अरविंद, भारत के उस युवा सपने का नाम है, जो रुकना नहीं जानता।
इतिहास वही लोग लिखते हैं जो मुश्किलों से डरते नहीं, उन्हें सामना करते हैं। अरविंद ने किया—और इसलिए वो अब सिर्फ एक इंसान नहीं, एक मिसाल हैं।
और सबसे जरूरी बात—मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता।
