बरेली की सड़कें बन रहीं ज़िंदगी की डगर — डीआईजी साहनी का ‘जीरो एक्सीडेंट’ अभियान शुरू !
बरेली। सड़क पर जब कोई ज़िंदगी तड़पती है, तो उसके साथ किसी माँ का सुहाग, किसी बच्चे की मुस्कान और किसी घर का सुकून भी खत्म हो जाता है। ऐसे ही दर्द को कम करने की दिशा में भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के चुनिंदा अफसर में एक संवेदनशील इंसान आगे आया है, डीआईजी अजय कुमार साहनी।
भारत सरकार ने देश के 100 जिलों को चिन्हित किया है जहाँ सड़क हादसों की दर सबसे अधिक है। उत्तर प्रदेश के बीस जिले इस सूची में हैं,और इनमें बरेली ग्यारह और बदायूं अठारह पर है। सरकार का आदेश साफ है,अब मौतें नहीं, बचाव होगा। लेकिन इस आदेश को ज़मीन पर उतारने का साहस दिखाया है डीआईजी अजय कुमार साहनी ने। उन्होंने ऑपरेशन मिनिमम एक्सीडेंट को केवल एक सरकारी योजना नहीं रहने दिया, बल्कि इसे मानवता की जिम्मेदारी में बदल दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्देश दिया है कि जिन ज़िलों में एक्सीडेंट दर सबसे ज्यादा है, वहाँ नेशनल और स्टेट हाईवे पर विशेष निगरानी हो। शासन का लक्ष्य है कि एक्सीडेंट दर को न्यूनतम स्तर पर लाया जाए। डीआईजी साहनी ने इस नीति को अपने जज़्बे से जोड़ा। उन्होंने कहा सरकार की मंशा साफ है, हर जान की कीमत है। हमें इस मंशा को ज़मीन पर उतारना है, ताकि शासन की योजना लोगों के दिल तक पहुँचे।
इस सोच के साथ उन्होंने बरेली और बदायूं में सड़क सुरक्षा की पूरी नई व्यवस्था खड़ी की। डीआईजी साहनी ने आदेश दिया कि हर थाना अब केवल अपराध से नहीं, हादसे से भी लड़ेगा। बरेली के 29 थानों में से 17 थाने रेड ज़ोन एक्सीडेंट पॉइंट के रूप में चिन्हित किए गए हैं।
प्रत्येक थाने में एक विशेष यूनिट बनाई जा रही है,एक सब-इंस्पेक्टर इंचार्ज होगा,चार कॉन्स्टेबल उसकी सहायता करेंगे। इनका काम होगा हादसा होते ही मौके पर पहुंचना, घायल को प्राथमिक उपचार देना, अस्पताल पहुँचाना और ट्रैफिक को सुचारू रखना। हर टीम को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा, आधुनिक उपकरण और फर्स्ट एड किट उपलब्ध कराई जाएंगी।डीआईजी साहनी का मानना है,एक घायल व्यक्ति अगर वक्त पर अस्पताल पहुँच जाए, तो मौत को भी हराया जा सकता है। हमारी कोशिश यही है मौत से पहले ज़िंदगी पहुंच जाए।
डीआईजी साहनी की दृष्टि केवल पुलिस की ड्यूटी तक सीमित नहीं है। वे सड़क की खामियों पर भी उतनी ही पैनी नज़र रख रहे हैं। उन्होंने आदेश दिया है कि हर टीम अपने क्षेत्र में ब्लैक स्पॉट की जांच करे ,कहाँ सड़क टूटी है, कहाँ मोड़ खतरनाक है, कहाँ सिग्नल गायब है, कहाँ अंधेरा है।इन रिपोर्टों को सीधे नगर निगम, एनएचएआई, पीडब्ल्यूडी और अन्य विभागों तक भेजा जाएगा ताकि तत्काल सुधार कार्य हो सके।उन्होंने स्पष्ट कहा
हम केवल एक्सीडेंट के बाद रिपोर्ट नहीं लिखेंगे, हम एक्सीडेंट होने से पहले उसकी वजह खत्म करेंगे। यही असली सुधार है।डीआईजी अजय कुमार साहनी की रणनीति इतनी व्यावहारिक और मानवीय है कि शासन स्तर पर भी इसे मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में देखने की तैयारी है। बरेली के पांच प्रमुख मार्ग बरेली–रामपुर, बरेली–पीलीभीत, बरेली–बीसलपुर, बरेली–शाहजहांपुर, बरेली–बदायूं अब इस मुहिम का केंद्र बने हैं। हर मार्ग पर 24 घंटे सक्रिय टीमें रहेंगी, जो केवल पुलिस नहीं बल्कि जीवन रक्षक के रूप में काम करेंगी।
डीआईजी साहनी ने दोनों जिलों के एसएसपी को आदेश दिया है कि शाम तक टीमों की नियुक्ति और ट्रेनिंग पूरी हो जाए। उत्तर प्रदेश सरकार का लक्ष्य है सेफ रोड्स, सेफ लाइफ।लेकिन बरेली में यह नारा अब हकीकत बन रहा है, क्योंकि यहाँ एक अफसर ने इसे दिल से अपनाया है। डीआईजी साहनी कहते हैं ,शासन के आदेश कागज़ों पर नहीं, दिलों में उतरने चाहिए। जब एक कॉन्स्टेबल किसी घायल को गोद में उठाकर अस्पताल पहुँचाएगा, तब समझिए ऑपरेशन जीरो एक्सीडेंट’ सफल हुआ।
यह वही सोच है जो शासन की नीति को जनभागीदारी और मानवीयता से जोड़ देती है।आज जब पुलिस को लोग सिर्फ कानून की ताकत मानते हैं, वहाँ डीआईजी अजय कुमार साहनी ने पुलिस को इंसानियत का चेहरा दिया है।उन्होंने बताया कि इस पूरी योजना का मकसद केवल दुर्घटनाएं रोकना नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ना है।वे कहते हैं- किसी सड़क पर गिरा हुआ इंसान हमारे लिए केस नहीं, ज़िम्मेदारी है। और जब तक एक भी ज़िंदगी सड़क पर तड़पती रहेगी, हमारी ड्यूटी अधूरी है। उनकी यह बात सुनकर हर पुलिसकर्मी के भीतर संवेदना का जज़्बा जाग उठा है। यह पहल बताती है कि जब शासन नीति बनाता है और प्रशासन दिल से उसे निभाता है, तो चमत्कार होता है।
बरेली की सड़कों पर अब पुलिस सिर्फ गश्त नहीं करेगी, बल्कि ज़िंदगी की रखवाली करेगी।
यह केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक क्रांति है सड़क सुरक्षा की, संवेदना की, इंसानियत की। डीआईजी अजय कुमार साहनी का यह प्रयास प्रशासनिक नहीं, भावनात्मक पहल है।
वे उन अनगिनत लोगों के लिए उम्मीद बन गए हैं जिन्होंने सड़क पर अपने अपनों को खोया है। उनका संदेश सरल है, हम मौत से नहीं डरते, लेकिन किसी की मौत को रोकने की कोशिश ज़रूर करेंगे। जब शासन की नीति और एक अफसर की संवेदना मिल जाती है, तो सड़कें मौत का रास्ता नहीं, ज़िंदगी की डगर बन जाती हैं।
बरेली से रोहिताश कुमार की रिपोर्ट
