नक्सलवाद के विरुद्ध केंद्र सरकार की व्यापक रणनीति

निर्णायक कार्रवाई के एक दशक: हिंसा में आई कमी से विकास से लेकर पुनर्वास तक का सफर

2014 और 2024 के बीच नक्सल से जुड़ी हिंसक घटनाओं में 53 प्रतिशत की कमी आयी ।

पिछले दस सालों में नक्सल प्रभावित इलाकों में 576 किले सदृश पुलिस स्टेशन निर्मित किये गए। इस दौरान नक्सल प्रभावित ज़िले 126 से घटकर 18 रह गए।

अक्टूबर 2025 तक 1,225 नक्सलियों ने सरेंडर किया और करीब 270 नक्सली मारे गए।

नक्सलियों से मुठभेड़ में मरने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या में 73% की कमी आयी और दूसरी तरफ नक्सली हिंसा में मरने वाले आम नागरिकों की मौतें भी 70% कम हुईं।

देते हुए नक्सलियो के कारगर नियंत्रण और उनके त्वरित खात्मे की प्रभावी शैली को दर्शाती है। केंद्र सरकार ने सुरक्षा, विकास और पुनर्वास की अपनी एक समन्वित शैली के ज़रिए देश की नक्सल विरोधी रणनीति में एक बुनियादी बदलाव लाया है।

नक्सली हिंसा को लेकर पहले अपनाये जाने वाले ढुलमुल तौर तरीके को त्याग कर केंद्र सरकार ने अब बातचीत, सुरक्षा और समन्वय की एकीकृत नी ति अपनायी है, जिसका लक्ष्य मार्च 2026 तक देश के सभी नक्सल प्रभावित जिलों को नक्सल मुक्त बनाना है। यह तरीका कानून क्रियान्वन की कार्यदक्षता, क्षमता निर्माण और सामाजिक समन्वय पर बराबर ध्यान।

पिछले एक दशक में, सुरक्षा बलों की मिली-जुली कोशिशों और नक्सली इलाको में विकास कार्यों की वजह से नक्सली हिंसा में काफी कमी आई है। तुलनात्मक रूप से देखें तो वर्ष 2004-2014 और 2014-2024 के बीच, नक्सली हिंसा की घटनायें 16,463 से घटकर 7,744 हो गई।

जबकि इस दौरान मुठभेड़ में मरने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या 1,851 से घटकर 509 रह गईं, और आम नागरिकों की मौतें 4,766 से घटकर 1,495 हो गई। यह स्थिति नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति और शासन व्यवस्था बहाल होने का एक शानदार संकेत है।

अकेले वर्ष 2025 में सुरक्षा बलों ने 270 नक्सल उग्रवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया, 680 नक्सलियों को गिरफ्तार किया और करीब 1225 नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य किया।

सुरक्षा बलों की तरफ से ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट जैसे अभियान और बीजापुर , छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में नक्सलियों द्वारा बड़े पैमाने पर किये गए आत्मसमर्पण से नक्सल उग्रवादियों को जीवन की मुख्यधारा में शामिल होने की महती प्रेरणा मिली है।

नक्सल हिंसा की रोकथाम को लेकर इसके नियंत्रण की बुनियादी संरचना का निर्माण सरकार की तरफ से एक बेहद जरुरी कदम था। पिछले दस सालों में सरकार द्वारा नक्सली इलाकों में हर जरूरत से सुसज्जित 576 पुलिस स्टेशन बनाए गए। पिछले छह सालों में 336 नए सिक्योरिटी कैंप बनाए गए हैं।

वर्ष 2014 में नक्सल प्रभावित ज़िलों की संख्या जो 126 हुआ करती थी वह 2024 में घटकर 18 रह गई है, और अब सिर्फ़ 6 ज़िले ही सबसे ज़्यादा नक्सल प्रभावित कैटेगरी में हैं। इस दौरान 68 नाइट-लैंडिंग हेलीपैड बनाए गए जिससे सुरक्षा बलों को अपने ऑपरेशन के दौरान कभी भी आने-जाने में आसानी हुई है और उनका रिस्पॉन्स टाइम भी बेहतर हुआ है।

सुरक्षा एजेंसियां अब नक्सली गतिविधियों की सटीक मॉनिटरिंग और उनके विश्लेषण के लिए अधुनातन तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों की लोकेशन ट्रैकिंग, मोबाइल डेटा एनालिसिस, साइंटिफिक कॉल लॉग जांच और सोशल मीडिया एनालिसिस जैसे टूल्स का इस्तेमाल कर उनकी सभी हरकतों पर करीब से नज़र रखा जाता है।

सुरक्षा बलों को अलग-अलग फोरेंसिक और टेक्निकल संस्थानों से मिले सपोर्ट से इंटेलिजेंस इकट्ठा करने और अपनी ऑपरेशनल दक्षता को और मज़बूत बनाने में मदद मिली है। इसके अलावा सुरक्षा बलों द्वारा मॉनिटरिंग और रणनीतिक प्लानिंग को बेहतर बनाने के लिए ड्रोन सर्विलांस, सैटेलाइट इमेजिंग और एआई -बेस्ड डेटा एनालिटिक्स का भी असरदार तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है।

नक्सलवाद को सपोर्ट करने वाले फाइनेंशियल नेटवर्क को अब बड़े सुव्यवस्थित तरीके से खत्म कर दिया गया है। नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानि एन आई ए के एक विशेष विंग ने नक्सलियों की ₹40 करोड़ से ज़्यादा की संपत्ति ज़ब्त की है, जबकि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के ऑपरेशंस से इनकी करीब ₹12 करोड़ की ज़ब्ती हुई है। राज्यों ने भी नक्सलियों की ₹40 करोड़ की प्रॉपर्टी ज़ब्त की है। इसके अलावा, शहरी नक्सलियों को काफी नैतिक और मानसिक झटके लगे हैं, जिससे इनके इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर यानी सू चना युद्ध के लिए उनकी क्षमता में कमी आई है।

राज्यों के सुरक्षा बलों को मज़बूत बनाना सरकार की वामपंथी उग्रवाद के खात्मे की नीति का एक अहम हिस्सा रहा है। सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर यानी सुरक्षा सम्बंधित व्यय योजना के तहत, पिछले 11 सालों में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों को ₹3,331 करोड़ रुपये जारी किए गए, जो पिछले दशक की तुलना में 155 % ज़्यादा है। इसी तरह स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम (SIS) ने राज्य की स्पेशल फोर्स, स्पेशल इंटेलिजेंस ब्रांच और मज़बूत पुलिस स्टेशनों के निर्माण के लिए ₹991 करोड़ रुपये मंज़ूर किए।

2017-18 के बाद से इस क्रम में ₹1,741 करोड़ की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है जिसमे अब तक ₹445 करोड़ जारी किए गए हैं। विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए ) के तहत, ₹3,769 करोड़ की राशि वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में तमाम विकास परियोजनाओं के लिए आबंटित थी. इस राशि में पूरक के रूप में शिविर अवसंरचना के लिए केंद्रीय एजेंसियों को सहायता के तहत ₹122.28 करोड़ और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ₹12.56 करोड़ प्रदान की गयी।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के विकास ने वहां सामाजिक और आर्थिक समावेश को गति दी है।

सड़क संपर्क: 2014 और 2025 के बीच कुल 17,589 किलोमीटर के निर्माण के लिए ₹20,815 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए जिसमें नक्सली इलाकों में 12,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों का निर्माण पूरा हुआ।

मोबाइल कनेक्टिविटी: वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी विस्तार को दो चरणों में लागू किया गया है। पहले चरण के तहत, ₹4,080 करोड़ की लागत से 2,343 2जी टावर बनाए गए। दूसरे चरण में, सितंबर-अक्टूबर 2022 में ₹2,210 करोड़ के निवेश के साथ 2,542 4जी टावर स्वीकृत किए गए, जिनमें से 1,139 चालू हो गए हैं। इसके अतिरिक्त, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए 8,527 4जी टावरों को मंजूरी दी गई है। आकांक्षी जिला योजना के तहत स्वीकृत 4,281 टावरों में से 2,556 कार्यरत हैं, जबकि 4जी संतृप्ति योजना के तहत, 4,246 टावरों में से 2,602 चालू हैं।

वित्तीय समावेशन और पहुंच: नक्सल प्रभावित इलाकों में 1007 बैंक शाखाएं, 937 एटीएम और 37,850 बैंकिंग संवाददाताओं की स्थापना की गई है। अब नक्सल प्रभावित 90 जिलों में 5,899 डाकघर काम करते हैं, जिससे प्रत्येक 5 किमी पर नागरिकों को डाक और वित्तीय सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित हुई है।

शिक्षा और कौशल विकास: कौशल विकास योजना के तहत, 48 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और 48 जिलों में 61 कौशल विकास केंद्र (एसडीसी) स्थापित करने के लिए ₹495 करोड़ स्वीकृत किए गए, जिनमें से 46 आईटीआई और 49 एसडीसी संचालित हैं। ये संस्थान संघर्ष से विकास की ओर बढ़ रहे युवाओं को आजीविका के नए अवसर प्रदान कर रहे हैं।

सुरक्षा और प्रवर्तन: कुल 108 मामलों की जांच की गई है, जिसके परिणामस्वरूप अब तक 87 आरोप पत्र दाखिल किए गए हैं। बस्तरिया बटालियन, जिसका गठन 2018 में हुआ था, में 1,143 रंगरूट शामिल हैं, जिनमें बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा जिलों के 400 युवा शामिल हैं, जो सुरक्षा अभियानों में स्थानीय भागीदारी और उनके विश्वास-निर्माण की प्रतीक हैं।

अपने सतत सुरक्षा अभियानों और अपनी सटीक खुफिया-आधारित रणनीतियों के माध्यम से, सरकार ने करीब तीन दशक पुराने वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित कई क्षेत्रों को पुनः प्राप्त कर लिया है। सरकार की इस सफलता के पीछे लिए “ट्रेस, टारगेट, न्यूट्रलाइज” यानी पहचान लक्ष्य और मिटा दो का दृष्टिकोण अहम् रहा है, जिससे सुरक्षा बलों को प्रमुख नक्सली नेताओं की पहचान कर उन्हें खत्म करने और उनकी कमान संरचना को बाधित करने में मदद मिली है।

नक्सल इलाकों के सुदूर क्षेत्रों में सुरक्षा शिविरों की स्थापना तथा ऑक्टोपस, डबल बुल और चक्रबंध जैसे अभियानों से नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में सुरक्षा बलों को उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई है। इसके परिणामस्वरूप, बुध पहाड़, पारसनाथ, बरमशिया और चक्रबंधा जैसे क्षेत्र वामपंथी उग्रवाद से लगभग मुक्त हो गए हैं। सुरक्षा बलों ने नक्सल विद्रोहियों के अंतिम प्रमुख गढ़ अबूझमाड़ में सफलतापूर्वक प्रवेश किया है।

इसके अलावा सुरक्षा बलों ने पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) को बीजापुर और सुकमा में अपने मूल क्षेत्रों को छोड़ने के लिए मजबूर करने में बड़ी सफलता पायी। गौरतलब है की वर्ष 2024 में सुरक्षा बलों के खिलाफ नक्सलियों ने एक जवाबी सामरिक हमला अभियान (टी सी ओ सी ) शुरू किया परन्तु हमारे सुरक्षा बलों ने अपने आक्रामक अभियानों के जरिये उनकी इस मंशा को विफल कर दिया।

वर्ष 2024 में हमारे सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ 26 बृहद मुठभेड़ों को अंजाम दिया जिसके परिणामस्वरूप कई शीर्ष नक्सली कैडरों को ढेर कर दिए गया। इनमे शामिल हैं:

1 आंचलिक समिति सदस्य (जेडसीएम)

5 उप-आंचलिक समिति सदस्य (एसजेडसीएम)

2 राज्य समिति सदस्य (एससीएम)

31 मंडलीय समिति सदस्य (डीवीसीएम)

59 क्षेत्र समिति सदस्य (एसीएम)

सुरक्षा बलों की इस सुव्यवस्थित कार्रवाई ने नक्सलियों के कई मुख्य समूहों को भंग कर दिया है और कई नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और शासन बहाल कर दिया है। सुरक्षा प्रयासों के साथ-साथ, सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीति, आजीविका और सामाजिक सहायता प्रदान करने की नीति ने कई नक्सल कैडरों को समाज की मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रोत्साहित किया है।

वर्ष 2025 में, अब तक 521 वामपंथी उग्रवादी कैडरों ने आत्मसमर्पण किया है। और पिछले दो वर्षों में, छत्तीसगढ़ में 1,053 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किए हैं। इसके अलावा, पुनर्वासित कैडरों को ₹5 लाख (उच्च-रैंक), ₹2.5 लाख (मध्य/निम्न-रैंक) की वित्तीय सहायता और 36 महीनों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए ₹10,000 का मासिक वजीफा मिलता है, जिससे वे गरिमा और स्थिरता के साथ अपना जीवन फिर से बना सके ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में,भारत में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई सुरक्षा, विकास और सामाजिक न्याय के त्रिकोण पर आधारित एक व्यापक अभियान में दृष्टिगोचर हुई है। मजबूत बुनियादी ढांचे, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, लक्षित प्रवर्तन और ममता व करुणा केंद्रित पुनर्वास के माध्यम से, सरकार ने कभी संघर्षरत रहे क्षेत्रों को अब अवसर के केंद्रों में बदल दिया है।

भारत अभी केंद्र और राज्यों के बीच सतत सक्रिय सहयोग के जरिये मार्च 2026 तक नक्सल-मुक्त बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की राह पर अग्रसर है। यह एक निर्णायक सरकार और उसकी शांति और विकास के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के एक दशक का प्रमाण है।

पीडीएफ में देखे-

ब्यूरो चीफ, रिजुल अग्रवाल

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