नर्मदा घाटी के डूब प्रभावितों को भी न्याय दिलाने की लड़ाई

इस बार मुद्दा सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई के कारण विस्थापित हो रहे लोग हैं। सर्वोच्च   न्यायालय के आदेश के बाद डूब क्षेत्र में रहने वाले लोगों को 31 जुलाई तक जगह खाली करना है। जैसे-जैसे यह मियाद नजदीक आ रही है, नर्मदा घाटी में तनाव बढ़ता जा रहा है और पूरा प्रभावित क्षेत्र पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। दूसरी ओर  किसानों के अधिकार के लिए मंदसौर से दिल्ली तक जाने वाली इस यात्रा ने बड़वानी में नर्मदा घाटी के डूब प्रभावितों को भी न्याय दिलाने का संकल्प लिया। सरदार सरोवर बांध के गेट लगाने के बाद डूब प्रभावितों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे डूब की तारीख पास आ रही है, वैसे-वैसे डूब प्रभावितों का आंदोलन उग्र होता जा रहा है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने मघ्य प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए उनके ही राजपत्र से कई गलतियां उजागर की हैं। मध्य प्रदेश सरकार की पोल खोलने के सबूत राजपत्र में ही हैं।मेधा पाटकर कहती हैं कि सरदार सरोवर परियोजना में एमपी सरकार द्वारा गत 25 मई के दिन गजट पारित किया गया है। इसमें अपात्र विस्थापितों का नाम भी है, दूसरी जगह निवास कर रहे लोगों का नाम भी है। जो विस्थापित पुनर्वास स्थल पर निवासरत हैं,उनका भी नाम है। जिन विस्थापितों को बैक वाटर लेवल से बाहर किया गया है, उसका भी नाम दर्ज किया गया है। मघ्य प्रदेश सरकार के गजट में 18 हजार 386 परिवारों को 31 जुलाई 2017 तक हटाने की बात की गई है।नर्मदा बचाओ आंदोलन की  नेत्री मेधा पाटकर के मुताविक सरदार सरोवर बांध के चलते 40 हजार प्रभावित परिवारों को खतरे की ओर धकेला जा रहा है। उन्होंने कहा आदर्श पुनर्वास व रोजगार के साधनों के बगैर डुबोना गलत होगा। हैरतंगेज बात तो यह है कि सरदार सरोवर डूब गांवों के पुनर्वास स्थलों के लिए प्रशासन आदिवासियों की जमीन को भी अधिग्रहित कर रहा है। जमीन अधिग्रहित होने वाले आदिवासी किसानों को न तो प्रशासन विस्थापित मान रहा है, न ही मुआवजा दे रहा है।पुनर्वास नीति के अनुसार पहले तो आदिवासी किसान की जमीन ली ही नहीं जा सकती है। सामान्य वर्ग की जमीन लेने पर उन्हें भी विस्थापित माना जाकर उनका पुनर्वास करने का नियम है। मेधा पाटकर ने बताया कि पुनर्वास स्थलों के लिए जमीन अधिग्रहण में पुनर्वास नीति का पालन नहीं किया जा रहा है। 2010 की पुनर्वास नीति के अनुसार आदिवासी को उसकी जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता। पुनर्वास नीति में साफ लिखा है कि डूब में आने वाले विस्थापितों के साथ डूब कार्य से प्रभावित लोगों को भी विस्थापित माना जाएगा। सामान्य वर्ग के किसान की जमीन अधिग्रहण की जा सकती है, लेकिन उसमें भी खेत मालिक और उसके व्यस्क पुत्र के लिए 2-2 हेक्टेयर जमीन छोड़ी जानी है। इसके बाद बची जमीन का ही अधिग्रहण किया जाना है। एनवीडीए ने 2010 के बाद की पुनर्वास नीति में से डूब कार्य से प्रभावित शब्द हटा दिया है। इस मामले में भी कोर्ट में सुनवाई चल रही है। अवल्दा पुनर्वास स्थल पर मौजूद भामटा ग्राम पंचायत की उपसरपंच मालू बाई ने बताया कि प्रशासन पुनर्वास स्थल से लगी उनकी चार एकड़ खेत की जमीन में से दो एकड़ पर जबरदस्ती कब्जा करना चाह रहा है। जब यहां अधिकारी पहुंचे तो उन्होंने इस बात का विरोध किया। अधिकारियों का कहना था कि 25 हजार रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा दे देते है। इस पर मालूबाई ने कहा कि 25 हजार रुपए आप हमसे ले लो और एक एकड़ जमीन दे दो। पिछोडी, सौंदुल, जांगरवा, अवल्दा, भामटा गांव के  लोगों का कहना है कि सरदार सरोवर परियोजना में विस्थापितों के साथ पशुओं का भी पुनर्वास होना चाहिए, ये भी लाखों की तादाद में है। नर्मदा ट्रिब्यूनल का फैसले, सर्वोच्च अदालत के फैसले एवं राज्य की पुनर्वास नीति के भी मवेशियों की बात की गई है। वह आज तक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण नहीं किया गया है। डूब प्रभावित मदन अलावे, पेमा भीलाला ने बताया कि हमारे मूलगांव में पशु या मवेशियों के लिए चरगोई जमीन, घर में रखने की जगह, पानी एवं चारा होता है, लेकिन पुनर्वास स्थल पर हमारे पशुओं के लिए कोई भी चरगोई जमीन नहीं छोड़ी गई है। वह चारा या पानी पिलाने के लिए कोई भी हलावा नहीं बनाए हैं। डूब प्रभावितों की मांग है कि हमारे मूलगांव जैसा ही पुनर्वास स्थल बनाए जाए तो हम जाएंगे नहीं तो, मूलगांव गांव नहीं छोडेंग़े। उत्तराखंड के टिहरी बांध के आंदोलन की तर्ज पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भी जिले जिले में चिपको आंदोलन शुरू कर दिया है। पेड़ बचाने के इस आंदोलन की शुरुआत नर्मदा किनारे राजघाट से की गई है। यहां पर 100-200 साल पुराने पेड़ों से चिपककर और गले लगाकर आंदोलनकारियों ने घाटी के पेड़ों को कटने से बचाने का संकल्प लिया। इस दौरान कार्यकर्ताओं ने पेड़ोंं से कहा कि न तो हम काटने देंगे और न ही पूर्ण पुनर्वास होने तक हम हटेगें।

गौरतलब  है कि उत्तराखंड के टिहरी जिले में गंगा नदी की सहायक नदी भागीरथी पर टिहरी बांध बना है। 1990 में बांध की डूब से प्रभावित लाखों पेड़ों को कटर मशीनों से काटने का काम सरकार ने शुरू करवाया था। इसके विरोध में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में चिपको आंदोलन शुरू किया गया था। उस समय हजारों आंदोलनकारियों ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए मशीनों के आगे पेड़ों से लिपटकर संरक्षण किया था। उग्र आंदोलन के चलते तत्कालीन सरकार को पेड़ काटने का काम रोकना पड़ा। इसी तर्ज पर नर्मदा बचाओ  आंदोलन ने भी पेड़ बचाने का अभियान शुरू किया है।31 जुलाई तक गांव खाली करने के चेतावनी के बाद भी प्रभावित संपूर्ण पुनर्वास होने तक मूल गांव छोडऩे को तैयार नहीं हैं, वहीं प्रशासन के सामने गांव खाली करवाने के लिए सिर्फ कुछ दिन ही शेष हैं।

ऐसे में प्रभावितों को लुभाने के लिए प्रशासन ने पैकेज स्कीम तैयार की है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रजनीश वैश ने बताया कि प्रभावितों को 60 हजार रुपए मकान किराए के तौर पर और बीस हजार रुपए की राशि तीन महीने के भोजन-पानी के लिए अलग से दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार साठ लाख रुपए तक मुआवजा भी दिया जा रहा है। वैश ने दावा किया 31 जुलाई से पहले पुनर्वास स्थल सुविधाओं से पूर्ण हो जाएगा। वैश ने बताया कि जिन विस्थापितों ने प्लॉट बेच दिए हैं। उन्हें सरकार फिर से प्लॉट दे रही है, जिनके पास प्लॉट है, उन्हें मकान बनाने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना में राशि दी जा रही है। इसके उलट ग्रामीणों का आरोप है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा ग्रामीणों का पुनर्वास किए बगैर ही घरों पर लाल निशान लगा उन्हें पुनर्वासित दिखा रहा है। गांवों को खाली कराने के लिए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) एक ओर फर्जीवाड़ा करने पर तुला हुआ है। बिना मुआवजा, पुनर्वास का लाभ लिए परिवारों को ही लाभांवित दिखाकर डूब गांवों से बाहर करने की साजिश चल रही है। डूब ग्रामों में लाभान्वित डूब प्रभावितों के मकानों पर लाल रंग से क्रॉस का निशान बनाया जा रहा है, जिससे चिह्नित हो सके कि इन परिवारों को पुनर्वास स्थल पर प्लाट, जमीन और 60 व 15 लाख रुपए का मुआवजा मिल चुका है। ग्राम छोटा बड़दा में कई परिवार ऐसे हैं जिनका न तो पुनर्वास हुआ न ही कोई मुआवजा मिला है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) ने इन परिवारों के घरों पर भी क्रास निशान लगा दिया है। उल्लेखनीय है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण सरदार सरोवर प्रभावित परिवारों के घरों पर लाल क्रॉस के निशान लगा रहा है।इस निशान का अर्थ संपूर्ण पुनर्वास से है और ऐसे परिवारों को कोई अन्य लाभ दिया जाना शेष नहीं है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि जिन प्रभावितों के घरों पर ये निशान अंकित किए हैं उनका पुनर्वास अभी पूर्ण नहीं हुआ है। ऐसे में मकानों पर निशान लगाना गलत है।

पत्रकार और समाजकर्मी चिन्मय मिश्र कहते हैं कि सरदार सरोवर बांध के पुनर्वास स्थलों के प्लाट आवंटन में फर्जीवाड़ा के खेल में हद तो ये हो गई कि राजघाट स्थित ऐतिहासिक गांधी समाधि के लिए कुकरा पुनर्वास स्थल पर आरक्षित प्लाट ही दूसरे को आवंटित कर दिया गया। इसका खुलासा  तब हुआ, जब प्लाट पर एक व्यक्ति ने अपना हक जताते हुए निर्माण कार्य के लिए जेसीबी से गड्ढे खोदना शुरू कराया। इसकी जानकारी लगते ही क्षेत्रवासी और राजघाट के लोगों ने विरोध किया। इसकी सूचना पुनर्वास अधिकारी को भी दी गई। मौके पर पहुंचे पुनर्वास अधिकारी ने काम रुकवाया। हालांकि प्लाट मालिक अब भी उक्त प्लाट पर अपना हक जता रहा है। कुकरा बसावट में मेन रोड पर गांधी स्मारक के लिए 60 बाय 90 का प्लाट आरक्षित किया गया है।  राजघाट निवासी सुनील नक्शा लेकर पहुंचा और इसे प्लाट क्रमांक 174 बताते हुए अपनी मां राजुलबाई सोमा के नाम से 2014 में आवंटन होना बताते हुए निर्माण कार्य के लिए जेसीबी से गड्ढे खुदवाना शुरू कर दिया। बसावट के लोगों का कहना था कि ये प्लाट गांधी स्मारक के लिए दिया गया है। बड़वानी जिला मुख्यालय के समीप राजघाट में नर्मदा तट स्थित महात्मा गांधी की समाधि डूब क्षेत्र में आने के कारण कुकरा बसाहट में उसका विस्थापन तय किया गया था, लेकिन समाधि के विस्थापन के लिए आवंटित भूमि पर मकान बनाने के लिए जब एक ग्रामीण पहुंचा, तो पता चला कि 2014 में यह भूखंड किसी अन्य को आवंटित कर दिया गया है। स्थिति को देख कुकरा बसाहट के लोगों ने आपत्ति का इजहार किया और काम को रुकवाया। गौरतलव है कि वर्ष 2004 में तत्कालीन कलेक्टर चंद्रहास दुबे की उपस्थिति में बापू समाधि के विस्थापन के लिए कुकरा बसाहट में भूखंड क्र. 174 आवंटित किया गया था। 16 अप्रैल 2012 को ग्राम पंचायत भीलखेड़ा में आयोजित ग्राम सभा में समाधि स्थल के निर्माण के लिए ठहराव प्रस्ताव कर जल्द निर्माण शुरू करने की मांग की गई थी।साथ ही उक्त स्थल पर पौधारोपण भी किया गया था। इसके बाद 1 सितंबर 2014 को पुनर्वास अधिकारी द्वारा राजलबाई पति सोमा को भूखंड क्र. 174 आवंटित कर दिया गया। इस पर पंचायत ने 16 सिंतबर 2014 को एक बार फिर लिखित आपत्ति की गई थी। लेकिन उक्त स्थल पर आज तक कोई निर्माण कार्य जारी नहीं किया गया।नर्मदा बचाओ आंदोलन के राहुल यादव कहते है कि पुनर्वास स्थलों में प्लाटों को लेकर फर्जीवाड़े का कई बार खुलासा किया जा चुका है। एनवीडीए अधिकारियों ने दलालों के साथ मिलकर एक ही प्लाट को कई-कई बार आवंटित कर दिया है। इसमें छोटा बड़दा में 86 प्लाट, कसरावद बसावट में 20 प्लाट, कुकरा में 3, भीलखेड़ा में 4, बोरलाय एक और दो में 10-10, दतवाड़ा में 25 प्लाट ऐसे है जो दो से तीन लोगों को दिए जा चुके हैं। वहीं कसरावद में तो 48 प्लाटों की फर्जी रजिस्ट्री भी कर दी गई। इस मामले में दलाल पर केस भी दर्ज है। इतना ही नहीं पुनर्वास स्थल सलाहकार समिति ने वर्ष 2005 से 07 के बीच पुनर्वास स्थलों के 110 प्लाटों में हेराफेरी कर जगह बदली है। मौके के प्लाटों की जगह बदल कर रसूखदारों को दे दिए गए है।

सरदार सरोवर परियोजना सिंचाई, विद्युत और पेयजल के लाभों हेतु एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जो चार राज्यों क्रमश गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान द्वारा संयुक्त उपक्रम के रूप में क्रियान्वित की जा रही है। इस परियोजना के अन्तर्गत गुजरात में नर्मदा नदी पर 1,210 मीटर लंबा और 163 मीटर ऊंचाई पर कॉन्क्रीट गुरूत्व बांध का निर्माण किया जा रहा है।इस परियोजना की सक्रिय भंडारन क्षमता 5,800 मिलियन घन मीटर (4.73 मिलियन एकड़ फीट) और इसकी 458 किमी लंबी पक्की नर्मदा नहर द्वारा (शीर्ष प्रवाह 1.133 घन मीटर प्रति सेकेन्ड) गुजरात में 17.92 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर वार्षिक सिंचाई करने का प्रावधान है। इसके साथ ही राजस्थान को आवंटित 616 मिलियन घन मीटर (0.5 मिलियन एकड़ फीट) नर्मदा जल का संवहन, राजस्थान के बाड़मेर और जालोर जिलों की कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र की 246 लाख हेक्टेयर भूमि पर वार्षिक सिंचाई करने का प्रावधान है। इस परियोजना के नदी तल विद्युत गृह की निर्धारित क्षमता 1,200 मेगावॉट और नहर शीर्ष विद्युत गृह की निर्धारित क्षमता 250 मेगावॉट द्वारा जल विद्युत का उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है। गुजरात राज्य को आवंटित 9 मिलियन एकड़ में पेयजल, नगरीय और औद्योगिक क्षेत्रों के उपयोग में लाने हेतु प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार राजस्थान को आवंटित 616 मिलियन घनमीटर जल की मात्रा में से बाड़मेर एवं जालोर जिलों के कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र की 2.46 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के साथ-साथ दो शहरों एवं 1107 गाँवों में पेयजल आपूर्ति करने हेतु प्रस्ताव बनाए गए हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी गुजरात यात्रा के दौरान सरदार सरोवर बांध का जिक्र भी किया था. प्रधानमंत्री ने कहा कि नर्मदा नदी के सरदार सरोवर बांध के गेट बंद होने के साथ ही गुजरात की समृद्धि का नया दौर शुरू हो गया है। मोदी ने कहा कि पानी की उपलब्धता गुजरात के लिए एक बड़ी बात रही है। पहले पानी पर ही इतना पैसा खर्च होता था कि अन्य योजनाओं पर असर होता था। उन्होंने कहा कि नर्मदा परियोजना के लिए सभी सरकारों ने काम किया है, इसमें कोई राजनीति जैसी बात नहीं है. इसके दरवाजे लगने के मामले कुछ बाधाएं थीं पर अब वह सब कुछ दूर हो चुका है। गुजरात के लोग पानी का महत्व समझते हैं। उन्होंने कहा कि नर्मदा के दरवाजे बंद होने के साथ ही गुजरात के समृद्धि के दरवाजे खुलने के अवसर के लिए वह शीघ्र ही गुजरात का एक और दौरा करेंगे। बांध पर बने 30 दरवाजे हाल में बंद करने के बाद से इसमें जल का संग्रहण स्तर करीब पौने चार गुना बढ़ गया है, जिससे गुजरात में जल की उपलब्धता की समस्या के काफी हद तक हल होने की आस है।

मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि सरदार सरोवर बांध के फाटकों के बंद होने से 192 गांवों में 40,000 लोग प्रभावित होंगे। इनके पुर्नवास की कोई योजना नहीं है। सरकार झूठे वचन पत्र भराकर विस्थापितों को भ्रमित कर रही हैं। गुजरात में विधानसभा चुनाव है, जिसके लिए बांध के गेट लगाकर उद्योगपतियों को उपकृत किया जा रहा है, ताकि चुनाव जीता जा सके। कांग्रेस इनके मंसुबे कभी कामयाब नहीं होने देगी। डूब प्रभावितों को उनका हक दिलाया जाएगा।

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