उपराष्ट्रपति ने समानता आधारित तथा जन-केन्द्रित सतत विकास का आह्वान किया

मानव जाति को प्रकृति के साथ फिर से संबंध स्थापित करना चाहिए और नई बाते ग्रहण करनी चाहिएः उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने अप्रत्याशित रूप से पेड़ों की समाप्ति पर चिंता व्यक्त की

भोजन में विविधता की कमी प्रत्यक्ष रूप से जीवनशैली बीमारियों से जुड़ी है

पारम्परिक खाद्य प्रणाली स्वास्थ्य के लिए बेहतरः उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने ‘ट्री-एम्बुलेंस’ पहल का उद्घाटन किया

श्री एम. वेंकैया नायडू ने अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस समारोह को सम्बोधित किया

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने समानता आधारित तथा जन-केन्द्रित सतत विकास लक्ष्य हासिल करने का आह्वान किया है। उपराष्ट्रपति ने प्राकृतिक संसाधनों के सक्षम और किफायती इस्तेमाल की आवश्यकता पर बल दिया है।

उपराष्ट्रपति ने आज चेन्नई में अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस (आईडीबी) समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि जैव-विविधता मानव जाति के अस्तित्व के लिए मूल है। उन्होंने कहा कि मानव का प्रकृति के साथ फिर से संबंध स्थापित करना आवश्यक है जैसाकि सदियों पहले भारत में हुआ करता था। उन्होंने पृथ्वी और पर्यावरण से लाभ उठाने को कहा।

उन्होंने कहा कि सतत विकास में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के सक्षम और किफायती उपयोग की बात कही गई है और इसमें जैव-विविधता शामिल है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे सामने आज वनों का नष्ट होना और प्रजातियों के नुकसान की गंभीर चुनौती है।

अप्रत्याशित रूप से वनों की कटाई, शहरीकरण, औद्योगीकरण तथा प्रदूषण के कारण पेड़ों की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री नायडू ने कहा कि भारत में वन क्षेत्र 21 प्रतिशत है जबकि वैश्विक मानक 33.3 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी नए अध्ययन के अनुसार भारत में 2001 और 2018 के बीच 1.6 मिलियन हेक्टेयर पेड़ क्षेत्र में कमी आई है।

उन्होंने कहा कि समाज के विकास के साथ मानव और प्रकृति के संबंध पर प्रहार हो रहा है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान से आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खतरे में आ जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान उपभोग के तौर-तरीके विशेषकर औद्योगिक विश्व में सतत नहीं रह सकते, क्योंकि ऐसे तौर-तरीके प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डालते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत विश्व की पुरानी सभ्यताओं में से एक है। प्रत्येक भारतीय में पर्यावरण के प्रति चिंता रहती है। ऐसा धार्मिक व्यवहारों, लोक कथाओं, कला तथा संस्कृति और दैनिक जीवन के सभी पहलुओं में दिखता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा, मितव्ययिता और प्रकृति के साथ साधारण रहन-सहन की रही है और हमारे देश के सभी धर्मों ने प्रकृति के साथ मानव जाति की एकता की शिक्षा दी है। उन्होंने समावेशी विकास तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा लक्ष्य हासिल करने पर बल दिया।

श्री नायडू ने गरीबी उपशमन को पहली प्राथमिकता बनाने की सराहना करते हुए कहा कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय रूप से सहमत ढांचे को व्यवहारिक रूप देने और प्रदान करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रत्येक देश अपनी राष्ट्रीय आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं तथा परिस्थितियों के साथ विकसित हो और प्राकृतिक संरक्षण के साथ विकास का तालमेल सुनिश्चित हो सके।

इससे पहले उपराष्ट्रपति ने ‘ट्री-एम्बुलेंस’ पहल का उद्घाटन किया। यह पहल पेड़ों को बचाने के लिए की गई है। ‘ट्री-एम्बुलेंस’ का उद्देश्य पेड़ों को प्रथम चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना, पौधरोपण में सहायता देना, पेड़ों को एक जगह से हटाकर दूसरे जगह लगाने में सहायता देना और सीड बॉल वितरण करना है। ‘ट्री-एम्बुलेंस’की स्थापना के लिए उन्होंने श्री के. अब्दुल गनी तथा श्री सुरेश के प्रयासों की सराहना की।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस वर्ष के समारोह का विषय जैव-विविधता, हमारा खाद्य-हमारा स्वास्थ्य सामयिक है। उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन में मौसम के अनुसार और स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य सामग्री शामिल है। उन्होंने कहा कि हमारी पारम्परिक खाद्य प्रणाली स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर और पौष्टिकता की दृष्टि से संतुलित थी। उन्होंने कहा कि पूरे भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में खाए जाने वाले जौ-बाजरा काफी पौष्टिक होते हैं।

इस अवसर पर पर्यावरण वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अपर सचिव श्री ए.के. जैन, तमिलनाडु सरकार के अपर मुख्य सचिव श्री हंसराज वर्मा, तमिलनाडु सरकार के प्रधान सचिव श्री शंभु कालोलिकर, राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण के सचिव डॉ. पूर्वजा रामचन्द्रन तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

 

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