वैज्ञानिकों की नई खोज, बिना कीमोथेरिपी के होगा, अब कैंसर का इलाज मुमकिन

 

Cancer-Patient-Dying-Sick-C

दुनिया में कैंसर के मरीजों की ब़ढ़ती जा रही संख्या पर कई विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूएन भी चिंता जताते हुए आज के दौर को एक अलार्मिंग वक्त बताया है । लेकिन अब दुनिया के वैज्ञानिकों ने कैंसर से लड़ने के वाली दवाई खोज निकाली है । दवाई ही नहीं, बल्कि उन्होंने कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी और उन दवाओं का विकल्प खोज लिया है, जो कैंसर के इलाज के दौरान कैंसर सेल्स के साथ सामान्य सेल्स को भी नुकसान पहुंचाती हैं। वैज्ञानिकों ने चूहों पर सफल प्रयोग किया है। हालांकि इसे मानव शरीर पर लागू करने में अभी काफी वक्त है लेकिन पहले ही पायदान पर प्रयोग को सफलता मिलने से वैज्ञानिक उत्साहित हैं।

7242013Manisha-580x365-NEW

 

यह सफल प्रयोग 11 वैज्ञानिकों की टीम ने क्लेवलैंड क्लीनिक, अमेरिका में किया, जो विश्व में दूसरे स्थान पर है। वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व क्लेवलैंड क्लीनिक में कैंसर बायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. यांग ली ने किया, बीते साल वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय आए थे और यहां सात साल से 14 जुलाई तक कैंसर जागरूकता कार्यक्रम के तहत उनके कई लेक्चर भी आयोजित किए गए थे।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जैव रसायन विज्ञान विभाग के डॉ. मुनीश भी इस टीम का हिस्सा रहे। इस रिसर्च को औंको जीन नामक प्रतिष्ठित जरनल में पब्लिशर नेचर स्प्रिंग की ओर से प्रकाशित किया गया है। डॉ. मुनीश ने बताया कि कैंसर की बीमारी से शरीर में ट्यूमर बन जाते हैं।

pict_original-NEW

 

कीमोथेरेपी और दवाओं के जरिये इन ट्यूमर्स को खत्म किया जाता है। इलाज की इस प्रक्रिया में कैंसर सेल्स के साथ सामान्य सेल्स को भी नुकसान होता है। शरीर पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मरीज को भी काफी पीड़ा होती है। वैज्ञानिकों की टीम ने रिसर्च में पाया कि माइक्रो आरएनए यानी MIIR-21 नार्मल सेल्स को खत्म करता है। इससे कैंसर सेल्स और प्रभावशाली हो जाती हैं।

images-(2)-NEW

 

टीम ने चूहों पर प्रयोग करते हुए MIIR-21 को प्रभावहीन बनाने के लिए उसका एंटी सेंस चूहे में इंजेक्ट कर दिया और पाया कि चूहे के शरीर में बना ट्यूमर धीमे-धीमे छोटा हो गया और कुछ ट्यूमर पूरी तरह से खत्म हो गए। यह प्रयोग साल भर तक अमेरिका के क्लेवलैंड क्नीनिक में चला। हालांकि अभी मानव शरीर पर इसका प्रयोग नहीं हुआ है। इसे व्यवहारिक रूप से लागू करने में तकरीबन दस वर्ष का समय लग सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: