सुंजवां अटैक – निहत्थे मदनलाल ने एके-47 लैस आंतकियों से लिया लोहा, शहीद होने से पहले बचाईं कई जान

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शनिवार सुबह हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को एक बार फिर से सेना के लिए परेशान कर दिया था। लेकिन हमले में शहीद हुए देश के एक वीर जवान ने अपने हौसलों की कहानी से देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।

दरअसल आतंकियो ने हमला सेना की टाइगर डिवीजन की सुंजवां ब्रिगेड के रेजीडेंशियल क्वार्टर्स में किया गया था । रेजीडेंशियल क्वार्टर्स में घुसे चारों फिदायीन आतंकियों को मार गिराया गया है। इस हमले में अब तक कुल 6 लोगों की जान जा चुकी है। हमले में एक ओर जहां देश के पांच सैनिक शहीद हुए वहीं एक जवान के पिता की भी मौत हो चुकी है। लेकिन, देश के लिए शहीद हुए उन पांच जवानों में एक जांबाज ऐसा भी था जो बिना निहत्था ही खतरनाक हथियारों से लैस कायर आतंकियों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी । इस जाबांज जवान ने शहीद होने से पहले अपने परिवार समेत न जाने कितने लोगों की जान बचाई।

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सेना के जांबाज सूबेदार ने अपनी जान देकर बचाई कई जिंदगी

जानकारी के मुताबिक एके-47 राइफलें, ग्रेनेड और अन्य घातक हथियारों से पूरी तरह लैस होकर आर्मी कैंप में घुसे आतंकियों से जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले के सूबेदार मदन लाल चौधरी (50 वर्ष) निहत्थे ही भिड़ गए थे। बताया जा रहा है कि आतंकी हमले के वक्त शहीद मदन लाल का परिवार भी सुंजवां आर्मी कैंप में उनके क्वार्टर में ही था , और मदन लाल का परिवार उनके भतीजे की शादी के लिए शापिंग करने आया था । लेकिन शनिवार की सुबह अचानक आर्मी कैंप पर फिदायीन हमला हो गया। सेना के रेजीडेंशियल क्वार्टर्स में घुसे आतंकी जब मदन लाल के क्वार्टर की ओर बढ़े उस वक्त उनके पास कोई हथियार नहीं था। आतंकियों ने उन पर एके-47 से गोलियां बरसानी शुरू कर दी थी । जिससे उनके सीने और शरीर के अन्य हिस्से आतंकियों की गोलियों से छलनी हो गए थे। लेकिन सूत्रों के मुताबिक शहीद होने से पहले मदन लाल की यही कोशिश थी कि उनका पूरा परिवार पीछे के गेट से बाहर निकल जाए। लेकिन उन्होंने अपनी अंतिम सांस चलने तक आतंकियों को रोक कर रखा । सेना के इस जांबाज ने शहीद होने से पहले आर्मी कैंप में अपने परिवार के साथ अन्य कई सैन्य परिवारों की जान बचाई।

बेटी के पैर में लगी गोली

सूबेदार की लाख कोशिशों के बावजूद आतंकियों की गोली से मदन लाल की बीस साल की बेटी नेहा के पैर में लग गई जबकि उनकी साली परमजीत कौर को भी भागते वक्त मामूली चोटें आईं। चश्मदीदों के मुताबिक शहीद मदन लाल अगर कुछ देर आतंकियों को रोके रखने में सफल नहीं होते तो मरने वालों की संख्या ज्यादा हो सकती थी। अंत में इस हमले में 50 वर्षीय सूबेदार मदन लाल चौधरी ने अपनी शहादत दी।

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