बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में फूट

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राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) में इस मसले पर कुछ सदस्यों के बगावती सुर अपनाने की खबरें आ रही हैं। सुन्नियों की यह शीर्ष संस्था कोर्ट में बाबरी मस्जिद की एक प्रमुख पक्षकार है। तीन तलाक के मुद्दे पर भी सरकार के रुख के खिलाफ यह कोर्ट में पक्षकार थी। अयोध्या मामले में बोर्ड का अभी तक यह स्टैंड रहा है कि मस्जिद की जमीन को बेचा नहीं जा सकता और न ही इसको गिफ्ट दिया जा सकता है और न ही इसका अदला-बदली की जा सकती है ।

जबकि इसी मसले पर हैदराबाद में पिछले दिनों बोर्ड का तीन दिवसीय 26वां कन्वेंशन आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन से पहले बोर्ड के एक्जीक्यूटिव मेंबर मौलाना सलमान हुसैनी नदवी ने बोर्ड से अलग राय जाहिर करते हुए कहा कि विवादित ढांचा परिसर की जमीन को राम मंदिर के निर्माण के लिए दे दिया जाना चाहिए और मस्जिद का निर्माण कहीं और होना चाहिए । बस फिर क्या था, बोर्ड उनसे खफा हो गया और उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया । ये पहली बार है कि बोर्ड के किसी सदस्य ने इस मुद्दे पर अलग रुख जाहिर किया ।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्‍थापना 1973 में हुई थी. यह एक गैर सरकारी संगठन है ।मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करना, शरीयत को लागू करना और अहम मसलों पर आम मुस्लिमों को जानकारी प्रदान करना इसका प्रमुख मकसद है। इसकी वर्किंग कमेटी में 51 उलेमा हैं. इसके साथ ही जनरल बॉडी में 201 सदस्य हैं। इसकी वर्किंग कमेटी में शामिल उलेमा इस्‍लाम के विभिन्न मतों की नुमाइंदगी करते हैं।

गौरतलब है कि शिया वक्फ बोर्ड पहले ही यह कहता रहा है कि मौजूदा जगह पर राम मंदिर ही बनना चाहिए और मस्जिद को कहीं और शिफ्ट कर दिया जाना चाहिए. इसी पृष्ठभूमि में बोर्ड ने अधिवेशन के बाद आरोप लगाते हुए कहा कि मौजूदा सरकार और कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए हमारी एकता को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

हालांकि केंद्र या राज्य की ओर से पारित ऐसे कानून जो सीधे या परोक्ष रूप से मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल देते हों। उन पर नजर रखना भी इसका प्रमुख काम है। इस्लाम के विभिन्न स्कूलों और उनकी संस्थाओं को एक करने की कोशिश करना और उनमें एकता और आपसी सामंजस्य की भावना को विकसित करना भी इसके प्रमुख उद्देश्यों में शामिल है।

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