गुजरात चुनाव से राहुल गाँधी को सबक लेना चाहिए
मोदी की गुजरात में लाख-सवा लाख की एक व्यक्तिगत सेना है, जो उनके पक्ष में खड़ी हो जाती है. दूसरी तरफ कांग्रेस की हालत ये थी कि पिछले 22 साल में गुजरात में संगठन रो-रो कर चल रहा था और संगठन नाम की चीज थी ही नहीं. वहां संगठन से किसको, कैसे निकाला जाए इसकी कोशिश चल रही थी. प्रधानमंत्री मोदी, जो कांग्रेस के मजबूत लोग निकल कर आ रहे थे, उनका कैसे इस्तेमाल करना चाहिए, इसमें दिमाग लगा रहे थे.
वहीं राहुल गांधी और उनके साथी कैसे किसको लात मार कर निकालना है, इसकी रणनीति बना रहे थे. गुजरात चुनाव ने इस चीज को रेखांकित किया कि आपको अपने साथियों की संख्या बढ़ानी चाहिए, न कि साथियों की संख्या कम करनी चाहिए. फैसला अपने दिमाग से लेना चाहिए और सुननी सबकी चाहिए. पर ऐसा लगता है कि गुजरात में राहुल गांधी ने जिनकी सुनी उन्हीं के कहने पर फैसला लिया. अपना दिमाग लगाया ही नहीं. उन्होंने कांग्रेस को हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर के दम पर खड़ा करने की कोशिश की. छह महीने-आठ महीने पहले से शंकर सिंह वाघेला चेतावनी दे रहे थे कि कांग्रेस संगठन को मजबूत करना चाहिए.गुजरात चुनाव ने एक चेतावनी भी दी. इस चुनाव ने ये सीख जरूर दी कि सभा में सुनने के लिए चाहे जितनी बड़ी भीड़ आए, आपकी जितनी भी प्रशंसा हो, लेकिन अगर आपका बूथ लेवल संगठन मजबूत नहीं है कार्यकर्ता नहीं हैं, तो आप चुनाव में औंधे मुंह गिरेंगे. प्रधानमंत्री मोदी के पास संप्रेषण और संभाषण कला भी थी. गुजरात चुनाव ने एक और चीज बताई कि अगर आपको अपने मुद्देपर सामने वाले खिलाड़ी को खेलाना नहीं आता है, तो आप अच्छे राजनेता नहीं हो सकते. राहुल गांधी ने या कांग्रेस पार्टी ने या कांग्रेस के समर्थकों ने जो-जो कहा, उसे प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्दा बना दिया. इसके बाद उस मुद्दे पर उलझने के लिए कांग्रेस को मजबूर कर दिया.