जीएसटी पर बैकफुट पर क्यों आई सरकार

gstएक देश, एक बाजार और एक कर के लुभावने नारे के बीच देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदलने का दावा करने वाले गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी पर मोदी सरकार बैक फुट पर आ गयी है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक विशेषज्ञों के साथ ताबड़तोड़ बैठकें कर इसमें बदलाव के संकेत दिए, जिन पर अमल भी शुरू हो गया. यह बिना तैयारी के एक जुलाई को आधी रात से ही जीएसटी लागू करा लेने वाली सरकार के उस रुख, से अलग है जिस का असर आर्थिक अराजकता के रूप में देश को देखने को मिला. जीएसटी लागू होने के बाद से ही अफसर हलकान हैं और बड़े से बड़े अर्थ विशेषज्ञों तक को पता नहीं चल रहा है कि उन्हें करना क्या है. छोटे व्यापारी मर रहे हैं, तो पूंजीपतियों ने चोर रास्ते निकाल लिए हैं. जीएसटी काउंसिल की अंतहीन बैठकें जारी हैं, जो हर बार कर के दायरे में कुछ नया जोड़ती हैं, तो कुछ न कूछ हटाती है. पर कब कहां क्या जुड़ेगा, क्या घटेगा की अनिश्चितता के चलते टैक्स चोरी करने वालों की मौज है. तमाम व्यापारी फिलहाल रजिस्ट्रेशन न होने का हवाला देकर कच्चा बिल काट कर काम चला रहे हैं, जिससे सरकार के कर विभाग को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

कहने के लिये यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी योजना है, पर न तो सरकार और न ही अफसर इसके स्वरुप को लेकर स्पष्ट हैं. नतीजा यह है कि जीएसटी लागू होने के इतने दिन बाद भी अपने स्वरुप में नहीं है. सरकार से लेकर, व्यापारी और आमजन उहापोह की स्थिति में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली की अगुआई में सरकार का दावा था कि जीएसटी के चलते आम लोगों को काफी फायदा होगा. इससे देशवासियों के बाजार की दुनिया हमेशा के लिए बदल जाएगी. यह एक ऐसा टैक्स है, जो टैक्स के भारी जाल से आमजन और व्यापारियों को मुक्ति दिलाएगा. दावा किया गया था कि जीएसटी आने के बाद बहुत सी चीजें सस्ती हो जाएगी, जबकि कुछ चीजें महंगी भी हो जाएंगी, लेकिन सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि टैक्स का पूरा सिस्टम आसान हो जाएगा. व्यापारियों को 18 से ज्यादा टैक्सों से छुटकारा मिल जाएगा और पूरे देश में सिर्फ एक टैक्स जीएसटी जमा करना होगा. हालांकि शुरू-शुरू में कई राज्य सरकारों और व्यापारी संगठनों ने दिक्कतों का हवाला देकर इसे लागू करने की तारीख आगे खिसकाने की मांग की थी, जिनमें पश्चिम बंगाल सबसे आगे था, पर केंद्र ने अनसुनी कर दी.

जीएसटी के मौजूदा स्वरूप को लागू करना असंभव बताते हुए, बंगाल सरकार ने तब इसकी तारीख कम से कम एक महीने बढ़ाने का अनुरोध किया था. कई व्यापारिक संगठनों ने भी इसके विभिन्न प्रावधानों और तकनीकी दिक्कतों पर आपत्ति जताई थी. व्यापारियों का दावा था कि जीएसटी लागू करने की तारीख सिर पर है, पर तकनीकी दिक्कतें कम होने का नाम नहीं ले रहीं. जीएसटी पंजीकरण के समय प्रक्रियागत समस्याओं का सामना करना आम बात है. सरकारी समयसीमा के महीने भर पहले से ही ऑनलाइन पंजीकरण के लिए जीएसटी नेटवर्क सुचारू रूप से काम नहीं कर रहा था. इसकी वजह से ई-वे बिल बनाने में दिक्कत हो रही थी. ऑनलाइन बनने वाले इस डिलीवरी नोट के बिना एक जुलाई के बाद सामानों का परिवहन संभव नहीं होता. पर सरकार मानी नहीं, उसने बिना रजिस्ट्रेशन के बिल्टी पर व्यापार की छूट दी. नतीजा यह हुआ कि  करोड़ रुपए तक का टर्न ओवर करने वाले मध्यम शहरों के व्यापारियों ने चार-पांच इंटरप्राइजेज खोल कर, अपने अकाउंटेंटों की मार्फत सरकार को खूब धता बताया .

कहते हैं कि तकनीकी दिक्कतों की वजह से पहली मई को जीएसटी नेटवर्क वेबसाइट को बंद करना पड़ा था. पहली जून को दोबारा इसके खलने के बावजूद हालत में ज्यादा सुधार नहीं आया. कर्नाटक चैंबर्स आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की टैक्सेशन कमिटी के अध्यक्ष बी.टी.मनोहर का कहना था कि, जब कोई व्यापारी ऑनलाइन पंजीकरण के लिए अपना ब्योरा भरता है तो आखिरी पेज पर पोर्टल एरर दिखाने लगता है. इसकी वजह से एप्लीकेशन रजिस्ट्रेशन नंबर (एआरएन) नहीं मिल पाता, और एआरएन के बिना व्यापारी जीएसटी पहचान हासिल नहीं कर सकते. इतना ही नहीं, एप्लीकेशन रजिस्ट्रेशन नंबर यानी एआरएन के बिना टैक्स इनवॉयस और बिक्री का बिल भी नहीं बन सकता. ऐसे में अगर सरकार पहली जुलाई से जीएसटी लागू करने के प्रति गंभीर थी, तो उसे सुनिश्चित करना चाहिए था कि 30 जून या उससे पहले देश के तमाम व्यापारियों को जीएसटी पहचान मिल जाए, ताकि टैक्स बाबू व्यापारियों को परेशान न करने पाएं.

‘इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ की ओर से के. रघु ने आगाह किया था कि जीएसटी के लिए हमें पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदलना होगा, लिहाजा इसे 1 सितंबर से पहले न लागू किया जाए. रघु के साथ ही 237 बैंकों की नुमाइंदगी करने वाली संस्था द इंडियन बैंक्स एसोसिएशन ने भी संसदीय पैनल को सूचित किया था कि उसके सदस्य नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था को लागू करने के लिए तैयार नहीं हैं. बावजूद इसके केंद्र ने इसे लागू कर दिया. वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता वाली जीएसटी काउंसिल ने जीएसटी लागू करने के लिए शुरू में 1,200 सामानों और 500 सेवाओं पर टैक्स की दरें तय कीं और इनको 5, 12, 18 और 28 पर्सेंट के टैक्स स्लैब में रखा. पर जिन सामानों पर 28 फ़ीसदी टैक्स था, उनमें से कई आइटम को महंगाई बढऩे के बाद गुजरात और हिमाचल चुनावों के डर से हाल में ही 18 फ़ीसदी कर दिया गया. इसी तरह पापड़ जैसी खाने की नॉन ब्रैंडेड चीज़ें, जो लोकल लेवल पर बिकती हैं, उस पर 12 पर्सेंट जीएसटी को घटाकर 5 पर्सेंट कर दिया गया है. पर सवाल यह है कि यही करना था तो सरकार ने इतना घुमाया क्यों ?

देश की आर्थिक वृद्धि को लेकर बनी चिंताओं के बीच सरकार ने अब जाकर माना है कि जीएसटी लागू करने में उससे गलती हुई है, और इतने सुधारों के बाद अभी भी उसमें कई ख़ामियां है. सरकार कह रही है कि आगे जाकर वह जीएसटी को और रिफ़ाइन करेगी. तिमाही जीएसटी रिटर्न भरने के लिए जो नई डेढ़ करोड़ सालाना टर्नओवर की लिमिट रखी गई है, उसे और अधिक किया जा सकता था. दुनिया के तमाम देशों में यह लिमिट आधा या एक मिलियन डॉलर तक है. अगर इसे भारतीय मुद्रा में बदलें तो यह लिमिट साढ़े तीन से चार करोड़ रुपए हो जाती है. इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि अगर तिमाही रिटर्न के लिए यह लिमिट पांच करोड़ तक रखी जाती तो छोटे उद्योगों को और भी राहत मिलती.

हाल में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में कई अहम फ़ैसले लिए गए. छोटे उद्योगों को राहत देते हुए फैसला किया गया कि जिन व्यापारियों का टर्नओवर डेढ़ करोड़ तक है, वह हर महीने रिटर्न फाइल न कर तीन महीने में एक बार रिटर्न फाइल करेंगे. पर इसे भी तकनीकी रूप में लागू करना एक बड़ी चुनौती है. वजह, जीएसटी काउंसिल के फैसले के बाद सभी कारोबारियों की तीन कैटेगरी होगी. पहली 1.5 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर से कम और दूसरी उससे ज्यादा का कारोबार वालों की कैटेगरी होगी, जबकि कंपोजिशन स्कीम वालों की अलग कैटेगरी बनानी होगी. इसमें भी 1.5 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर से कम वालों की दो कैटेगरी बनानी होगी. इन दो कैटेगरी में 1.5 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर वाले वे कारोबारी शामिल होंगे जो हर महीने रिटर्न फाइल करते हैं और साथ ही 1.5 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर वाले वे कारोबारी भी शामिल किए जाएंगे जो हर तीन महीने पर रिटर्न फाइल करते हैं. सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए से कम है, इसकी घोषणा कारोबारी करेंगे, पर सरकार की ओर से पूरा आंकड़ा जुटाया जाएगा, जिसकी पड़ताल करना एक चुनौती भरा काम होगा.

यहां चुनौती यह भी है कि हर महीने रिटर्न फाइल करने वालों को हर तीन महीने वालों से अतिरिक्त आंकड़ा लेना होगा. वहीं हर महीने रिटर्न फाइल करने वालों को हर तीन महीने वालों से अतिरिक्त आंकड़ा लेकर जीएसटीआर 2 तैयार करना होगा, ऐसे में तीसरे महीने में जीएसटीआर 2 का मिलान करना भी एक बड़ी चुनौती होगी. इस अफरातफरी के बीच महंगाई बढ़ रही है. एक देश एक टैक्स की कलई खुल चुकी है. आलम यह है कि एक थाली में तीन तरह की सब्जी, मिठाई, खीर पूरी सब पर अलग -अलग टैक्स के विज्ञापन जागो ग्राहक जागो अभियान की तरफ से खुद सरकार ने छपवाए थे. हमारा सुझाव है जब सारे पैसे का हिसाब सरकार के पास है ही, और आम आदमी की कमाई पर कर विभाग की नजर है ही तो क्या ही बेहतर होता कि सबसे कमाई के आधार पर एक ही बार में टैक्स ले लिया जाता. कम से कम इससे जीएसटी जैसा बवेला तो नहीं खड़ा होता.

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