प्राइवेट स्कूलों से गरीब बच्चों के मुफ्त नामांकन का ब्योरा तलब
शेखपुरा। जिले में संचालित प्राइवेट स्कूलों से गरीब छात्र-छात्राओं के मुफ्त नामांकन का ब्योरा मांगा गया है। यह ब्योरा शिक्षा विभाग ने मांगी है। इसकी जानकारी देते हुए डीईओ डॉ. तकीउद्दीन अहमद ने बताया कि यह कार्यवाही शिक्षा के अधिकार कानून के तहत की जा रही है। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों को अपने यहां हर नये शैक्षणिक सत्र में पहली कक्षा में स्वीकृत सीट के अनुसार उसमें से 25 प्रतिशत ऐसे गरीब बच्चों का नामांकन करना है जिसके अभिभावक स्कूल का नामांकन शुक्ल एवं मासिक शुल्क भरने में असमर्थ हैं। ऐसे 25 प्रतिशत बच्चों का नामांकन तथा मासिक शुल्क सरकार संबंधित स्कूलों को देगी। बताया गया कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत जिला में 53 प्राइवेट स्कूल शिक्षा विभाग से रजिस्टर्ड हैं। नये शैक्षणिक सत्र 2018-19 के लिए पहली कक्षा में नामांकन के लिए इस शर्त को लागू करना है। बताया गया कि पिछले शैक्षणिक सत्र में जिला के रजिस्टर्ड प्राइवेट स्कूलों ने इस तरह के लगभग चार सौ गरीब छात्र-छात्राओं का नामांकन लिया था। इस बार चालू नये सत्र में इन स्कूलों से इस तरह के गरीब बच्चों के नामांकन का पूरा ब्योरा मई माह के पहले सप्ताह तक शिक्षा विभाग ने उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। बताया गया कि इस तरह के गरीब बच्चों की फी के रूप में सरकार प्रति छात्र 42 सौ रुपये संबंधित स्कूलों को देती है। चार साल में स्कूलों को फूटी कौड़ी तक नहीं मिली.
प्राइवेट स्कूलों में नि:शुल्क पढ़ रहे गरीब बच्चों की फी के रूप में स्कूलों को चार साल से एक फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है। सरकार से रुपया नहीं मिलने की वजह से प्राइवेट स्कूलों का प्रबंधन सरकार की इस शर्त का पालन करने में खुद को असहाय जैसा महसूस कर रहे हैं। इस बाबत शहर के एक प्राइवेट स्कूल संचालक ने बताया कि एक तो सरकार ने फी काफी कम रखा है और उपर से उसका भुगतान भी नहीं होना बड़ी मुश्किल पैदा कर रहा है। इस स्कूल संचालक ने बताया कि पिछले चार साल से इस तरह के कई गरीब छात्र-छात्राओं को फ्री में पढ़ाया जा रहा है। मगर सरकार से अभी तक उसकी एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है। इस बाबत डीईओ डॉ तकीउद्दीन अहमद ने बताया कि इस योजना की कुछ राशि सरकार से मिली है। इसका भुगतान लेखा एवं योजना से किया जायेगा। इधर सरकार के इस रवैये पर स्कूल संचालक ने कहा कि सरकार कार्रवाई का डंडा दिखाकर अपना काम तो निकलवा लेती है, मगर उसकी राशि का भुगतान करने में समय लगा देती है।