नोटबंदी- खोदा पहाड़, निकली चुहिया

अर्थशास्त्र एक जटिल विषय है. लेकिन, नोटबन्दी की घोषणा की साथ ही देश में मानो अर्थशास्त्रियों की बाढ़ सी आ गई थी. इनमें फिल्म स्टार से ले कर बाबा, अभिनेता, पत्रकार तक, सब शामिल थे. ऐसा लग रहा था मानो अब देश की तस्वीर और तकदीर बदल कर ही रहेगी. आतंकवाद खत्म हो जाएगा, नक्सलवाद की हवा निकल जाएगी. देश से कालाधन, जाली नोट, भ्रष्टाचार का समूल नाश हो जाएगा. ये आस  जगाई गई कि बस अब हर एक घर में दीया जलने ही वाला है, भूख, भय, भ्रष्टाचार का घना अन्धेरा छंटने ही वाला है. चाहे, अनचाहे जनता ने पूरा साथ दिया. पूरा देश अगले 50 दिनों तक बैंक के आगे लाईन में खडा हो गया, ये सोच कर कि सीमा पर खडे होने के मुकाबले ये कम कष्टप्रद ही तो है.

9 महीने तक नोट गिनने के बाद, जब आरबीआई ने रिपोर्ट जारी की तो पता चला कि नोटबन्दी तो खोदा पहाड निकली चुहिया वाली कहावत बन गई है. और दुखद ये कि ये चुहिया भी मरी हुई निकली. आरबीआई ने बताया कि नोटबंदी के बाद 99 फीसदी नोट (करेंसी इन सर्कुलेशन) फिर से बैंक के खाते में वापस आ गए हैं. उधर ये भी खबर आई कि अंतिम तिमाही में देश का जीडीपी 2 फीसदी घट गया है, जिसका अनुमान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहले ही देश को बता दिया था. गौरतलब है कि 2 फीसदी जीडीपी कम होने का मतलब है करीब 3 लाख करोड़ का नुकसान. अब ये नुकसान किसे हुआ, इसका अन्दाजा आप खुद लगाइए.

बहरहाल, 99 फीसदी नोट के बैंक में वापस आने का मतलब क्या है? सीधा मतलब है कि लोगों ने अपना सारा पैसा बैंक में जमा कर दिया. अगर कालाधन पैसे के रूप में होता तो कोई भी आदमी 2.5 लाख से ज्यादा कैश अपने खाते में जमा कराता तो उसे हिसाब देना पड़ता. इसका अर्थ ये हुआ कि जब सारा पैसा सफेद है तो सरकार को क्या हासिल हुआ. सरकार को ये आस थी कि 15 लाख करोड़ में से 3 से 4 लाख करोड़ जमा नहीं होंगे जो उसे मिल जाएंगे. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. सरकार को अब तक सिर्फ 16050 करोड़ मिले जबकि उसे नए नोट छापने के लिए 21000 करोड़ खर्च करना पड़ा. यानी, यहां भी सरकार को नुकसान ही हुआ. अब यहां जहां-जहां भी सरकार लिखा है, वहां आप जनता शब्द भी रख सकते है.

प्रधानमंत्री ने नोटबन्दी के दौरान कई जगह अपने भाषणों में कहा था कि लोग नोट जला रहे हैं. नदी में फेंक रहे हैं. तो सवाल है कि क्या जलाए और बहाए गए नोट भी किसी अन्य रास्ते से बैंक तक पहुंच गए. अब वित्त मंत्री कह रहे है कि डिहिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने, करदाताओं की तादाद बढ़ाने के लिए नोटबन्दी की गई. अब इस काम के ले नोटबन्दी करना जरूरी था, ये सलाह किस अर्थशास्त्री ने दी? जहां तक जाली नोट का सवाल है, तो 18 जुलाई को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में दिए अपने लिखित बयान में बताया था कि नोटबंदी के दिन से लेकर 14 जुलाई तक 29 राज्यों में 11 करोड़ 23 लाख के जाली नोट पकड़े गए हैं.

प्रधानमंत्री ने नोटबन्दी के दौरान कई जगह अपने भाषणों में कहा था कि लोग नोट जला रहे हैं. नदी में फेंक रहे हैं. तो सवाल है कि क्या जलाए और बहाए गए नोट भी किसी अन्य रास्ते से बैंक तक पहुंच गए. अब वित्त मंत्री कह रहे है कि डिहिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने, करदाताओं की तादाद बढ़ाने के लिए नोटबन्दी की गई. अब इस काम के ले नोटबन्दी करना जरूरी था, ये सलाह किस अर्थशास्त्री ने दी? जहां तक जाली नोट का सवाल है, तो 18 जुलाई को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में दिए अपने लिखित बयान में बताया था कि नोटबंदी के दिन से लेकर 14 जुलाई तक 29 राज्यों में 11 करोड़ 23 लाख के जाली नोट पकड़े गए हैं. ये राशि करेंसी इन सर्कुलेशन का करीब करीब शून्य (नगण्य) फीसदी है. बहरहाल, आप बॉक्स में उल्लेखित 8 नवंबर 2016 के प्रधानमंत्री जी के भाषण का कुछ अंश पढिए और साथ ही आरबीआई की रिपोर्ट आने के बाद वित्त मंत्री जी के बयानों को पढिए और खुद से ये अनुमान लगाईए कि सच क्या है, झूठ क्या है, वास्तविकता क्या है और भ्रम क्या है?

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री जी ने क्या कहा था…

(अंश जो बताते है कि नोटबन्दी क्यों जरूरी है)

मेरे प्यारे देशवासियों,

आतंकवाद की भयानकता को कौन नहीं जानता है? कितने निर्दोष लोगों को के मौत के घाट उतार दिया जाता है. लेकिन क्या आपने सोंचा है की इन आतंकियों को पैसा कहाँ कहाँ से मुहैया होता है? सीमा पार के हमारे शत्रु जाली नोटों के जरिये, नकली नोटों के जरिये अपना धंधा भारत में चलाते हैं और यह सालों से चल रहा है. अनेक बार 500 और हजार रुपये के जाली नोट का कारोबार करने वाले पकड़े भी गए हैं और ये नोटें जब्त भी की गई हैं……

एक तरफ आतंकवाद और जाली नोटों का जाल देश को तबाह कर रहा है. दूसरी ओर भ्रष्टाचार और काले धन की चुनौती देश के सामने बनी हुई है…..ऐसे करोड़ों भारतवासी जिनके रग रग में ईमानदारी दौड़ती है उनका मानना है कि भ्रष्टाचार, काले धन, बेनामी संपत्ति, जाली नोट और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निर्णायक होनी चाहिए…..

देश को भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक कदम उठाना जरूरी हो गया है. आज मध्य रात्रि यानि 8 नवम्बर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानि ये मुद्राएँ कानूनन अमान्य होंगी.

2017 में आरबीआई रिपोर्ट के आने के बाद वित्त मंत्री क्या बोल रहे है…

बयान 1- यह कोई नहीं कह रहा है कि नोटबंदी के बाद कालाधन पूरी तरह से समाप्त हो गया है. नोटबंदी के बाद जीएसटी लागू होने से प्रत्यक्ष कर राजस्व को अच्छा बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि इसके बाद कई नए लोग कर के दायरे में आए हैं. नोटबंदी के बाद काफी नकदी बैंकों में जमा की गई. यह सरकार के लिए चिंता की बात नहीं है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है कि अधिक से अधिक धन सिस्टम में वापस आया है.

बयान 2- नोटबंदी का उद्देश्य पैसा जमा करना नहीं था. नोटबंदी से नकली नोटों का पता चला. इसका लक्ष्य टैक्स का दायरा बढ़ाना था. नोटबंदी से आतंकवाद और नक्सलवाद पर असर पड़ा. नोटबंदी का उद्देश्य कैश लेन-देन कम करना था. नकदी का आदान-प्रदान 17 प्रतिशत कम हो गया है. नोटबंदी का प्रभाव सही रास्ते पर है और भविष्य में केंद्र जो भा कदम उठाएगा, उसका आधार उस पर आधारित होगा.

बयान 3- नोटबंदी से जितना असर पडऩे की संभावना थी वह अनुमानित दायरे में ही है। नोटबंदी से मध्यम और दीर्काल में फायदा ही होगा. लोग नोटबंदी के उद्देश्य को समझ नहीं पा रहे हैं. जो लोग नोटबंदी के फेल हो जाने की बात कर रहे हैं, उसकी आलोचना कर रहे हैं वो लोग संशय में हंै. धन बैंकों में जमा होने मात्र से ही यह वैध धन नहीं हो जाता है.

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