चूडिय़ाँ मतलब कमजोरी नहीं

chudiya-matlab-kamjoriकहां से लिखना शुरू करूं, समझ नहीं आ रहा। चलिए, चूडिय़ों से शुरू करते हैं।  कुछ दिन पहले स्मृति ईरानी जी पर  किसी सभा में एक किसान ने चूडिय़ां फेंकीं।  मुझे उस मुद्दे पर कुछ नहीं कहना कि क्यों फेंकीं, मीडिया में उस पर बहस चलती है और चलती रहनी चाहिए। मुझे यह समझ नहीं आता कि किसी को नाकारा या कमजोर साबित करने के लिए चूडिय़ां ही क्यों फेंकीं जाती हैं? चूडिय़ां किस बात का प्रतीक हैं? कमजोरी का? ये चूडिय़ां देने वाले हमेशा आदमी ही नहीं होते, औरतें भी पीछे नहीं होतीं। यानी की औरतों को भी लगता है चूडिय़ां निक्कमेपन या कमजोर होने की निशानी हैं। बचपन से ये डायलॉग सुनते आ रहे हैं कि हमने चूडिय़ां नहीं पहन रखीं हैं या फिर औरतों की तरह चूडिय़ां पहनकर घर पे बैठो।  और मजे की बात ये है कि किसी को चूडिय़ों के इस तरह के इस्तेमाल पे ऐतराज भी नहीं है। होगा भी क्यों? सोचेंगे तो होगा ना। जरा सोचिए, चूड़ी देकर कोई भी सामने वाले का नहीं बल्कि महिला शक्ति का अपमान करता है। चूडिय़ां तो मां काली और दुर्गा के हाथ में होती हैं उनसे बढक़र है शक्ति का रूप? चूडिय़ां तो सीता मां के हाथ में होती हैं, है कोई जो उनसे बड़ा धैर्यवान हो?, चूडिय़ां तो हर उस लडक़ी के हाथ में होती हैं जो नए सपने सजाती है और बड़ी ही मजबूती से अपने माता-पिता के घर को छोडक़र एक नए और अंजान घर को अपनाती है, चूडिय़ां तो उन हाथों में भी होती हैं जो नौ महीने तक एक जीवन को अपने अंदर पालती हैं और दर्द की चरम सीमा को पार करके एक नए जीवन को दुनिया में लाती हैं, फिर रात रात भर जागकर उस जीवन को अपनी करुणा और ममता से संवारती है। चूडिय़ां तो उन कई हाथों में भी देखी हैं जिन्होंने काव्य लिख डाले, कहानियां लिख डालीं, चूडिय़ां तो उन हाथों में भी हैं जो शिक्षक के रूप में समाज को आगे ले जा रही हैं। गावों में लाखों औरतें खेती-बाड़ी और चूल्हे में जुटी रहती हैं  कमर में बच्चे को बांधकर।  कौन-सा रूप है औरत का जिससे उसका श्रृंगार कमजोरी या नकारेपन का प्रतीक बना दिया गया। कई बार तो ये सोच ही मुझे पल्ले नहीं पड़ती कि अगर किसी का अपमान करना है तो उसे बताओ कि वो औरत के बराबर है, औरत मतलब  कमजोर, औरत मतलब नाकारा। ये सोच है हमारे समाज के अंदर तक धंसी हुई, एकदम घुली-मिली और वो भी ऐसे घुली-मिली हुई कि पता ही न चले। सदियों से बस चली आ रही है। और हम आज भी यूं ही हांकते चले आ रहे हैं। वैसे जरूर कहेंगे कि ऐसा नहीं है ये औरतों का अपमान नहीं है, उनसे मैं जरूर जानना चाहूंगी कि कैसे नहीं है? चूडिय़ां महिलाओं का श्रृंगार हैं, पौराणिक, धार्मिक या सांस्कारिक जो भी कारण हो सच यही है की औरतें अपने पति की मंगलकामना के लिए ही इन्हें पहनती हैं। हाथों में चुभें, कभी टूट जाएं तो चोट भी लग जाए पर फिर भी पहनती हैं। कितना धीरज और कितनी समझदारी होती है कि हाथ में कांच भी है और कठोर से कठोर जीवन जीने ही क्षमता और साहस भी।

पुरुषों के लिए इतना ही, कभी कांच की चूड़ी की दुकान पे जरा चूड़ी पहनने की कोशिश करके देखिएगा। पता चलेगा की महिला का जीवन जीना तो छोडि़ए पुरुषों के बस का तो उनकी चूडिय़ां पहनना भी नहीं है। और वो महिलाएं जो खुद दूसरों को चूडिय़ां भेंट कर आती हैं उन्हें तो बस नमस्कार।

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