बरेली -14 वर्षिय विकलांग को अपनो ने ठुकराया धरती आसमाँ ने अपनाया

सामने आई परिवार से ठुकराए सत्येंद्र की कहानी हर किसी के लिये मिसाल बन गई। अपने दिव्यांग होने की मजबूरी व गरीबी के चलते दो माह पहले सतेंद्र के परिजन इलाज के बहाने से सतेंद्र को बरेली के जिला अस्पताल में तन्हा छोड़ गए । जिसके बाद परिवार के अन्य लोगों ने भी दिव्यांगता के चलते सत्येंद्र से सारे बंधन तोड दिए है। अब अस्पताल का परिसर व सड़क सत्येंद्र के जीवन का हिस्सा बन चुकी है।

बिशारतगंज के कस्बे रघुवीरपुर का रहने वाला 14 वर्षीय सत्येंद्र से बात करने पर जो सामने आया कि वह अपने जन्म से ही दिव्यांग है। उसको जन्म देने वाले रामलाल के कंधों पर चार भाईओं सहित बहनों की भी जिम्मेदारी है छह साल पहले उसकी माँ का आंचल भी हमेशां के लिए छिन गया। बुजुर्ग पिता के कंधों पर परिवार का दबाव इतना बढ़ा पहले तो उसको कोसते रहे फिर की सत्येंद्र के परिजनों ने इलाज के बहाने बरेली के जिला अस्पताल ठोकरें खाने के लिए छोड़कर चले गए। पर खुदा ने साथ दिया और सत्येंद्र का जीवन एक कहानी बनता चला गया ।

अस्पताल के बाहर सिगरेट,गुटखा बेचकर चंद पैसा कमाने वाले सत्येद्र ने सबसे पहले चलने के लिए एक लोहे का वॉर्कर और बच्चों की तीन पहियों वाली साइकिल खरीदी। अब यही साइकिल और वॉर्कर उसकी चलती फिरती दुकान बन गई। जोकि दिन की तपती धूप में सड़कों पर घुमकर-घुमकर सिगरेट व गुटखा बेचकर कमाए पैसे से खुद का इलाज कराता है। और रात में जिला अस्पताल रोड पर खड़े ठेलों की आड़ में आंसमा के तारे गिनते हुय नई सुबह की तलाश में नींद की आगोश लेकर सो जाता है। लेकिन कभी इस बच्चे ने अपनी मजबूरी को अपने जीवन के आड़े नही आने दिया।

सत्येंद्र ने बताया कि शहर की सड़क और भीड़ भाड़ वाले ट्रैफिक के बीच दिन भर में दो से तीन सौ रूपए तक की कमाई कर लेता है। मन हल्का करते हुए सत्येंद्र ने बताया कि पैरों की लाचारी और इलाज के कारण उसके अपनों ने ही हमेशा के लिए उससे रूख मोड़ लिया है। ऐसे में वह खुद कमाए पैसों से पेट की भूख व दिव्यांगता की लडाई लड़ रहा है।

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