Bareilly News : दरगाह वली मियां मे तरहई नातिया मुशायरा हुआ

बरेली आस्ताना ऐ आलिया मोहम्मदिया(दरगाह वली मियाँ ) में जश्ने ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के मुबारक मौके पर १० वां अज़ीमुश्शान तरहई नातिया मुशायरा हुआ जिसमे हिन्दुस्तान के मशहूर व मारूफ़ शोअरा हज़रात ने शिरकत की।

प्रोग्राम का आगाज़ बाद नमाज़ ईशा(9 PM) हाफ़िज़ मोहम्मद हसन ने क़ुरआन ऐ पाक की तिलावत से किया, नाज़िम ए मुशायरा उस्ताद उल शोअरा खालिद नदीम बदायूनी ने “हो चश्मे या या शाहे उमम दुनिया की तो अब्तर हालत है, तूफाने हवादिस है हर सू मुश्किल में तुम्हारी उम्मत है” यह शेर पढ़कर शोअरा हज़रात को अशार पढ़ने की दावत दी। दरगाह के सज्जादानशीन अल्हाज अनवर मियाँ हुज़ूर के “हम न ही उन्हें तो ख़ुदा मानत और न ही खु़दा से जुदा जानत, अरे मुन्किर मानले तू वर्ना तोरा प्रवेश वर्जित है” और दूसरा अशार ये पढ़ा “जब तूरा जन्मदिन आवत है हर मन की कली खिलजावत है, तोरे गीत भी मन की गलियन में मन आँगन में यही गूँजत है”

इस अशार पर महफ़िल नारो से गूँज उठी। मनसूर देहलवी के इस शेर पर “हम फ़िक्र करें क्यों जन्नत की खुद रब कहेगा आका से, जिसको चाहो जन्नत बख्शों महबूब तुम्हारी जन्नत है” खूब वाह वाह हुई। शाद पीलीभीती ने “आप हैं हम सबके आका फिर क्या हमको ज़रूरत है,हम गै़र के दर पे क्यों जाएं जब आपसे हमको निस्बत है” पढ़ा। मंज़र डिबाई के इस शेर “क्यों वक़्त गवाते हो मंज़र बेकार की बातों में अपना, हर ज़िक्र से बेहतर दुनिया में महबूब ऐ खु़दा की मिदहत है” में दाद मिली। आसिम काशीपुरी ने “एक हाथ में दामन मुर्शिद का एक हाथ में जाम ऐ वहदत है,हम गै़र के दर पे क्यों जाएँ जब आपसे हमको निस्बत है” यह शेर पढ़ा. अब्दुल रउफ़ नश्तर के इस शेर “जब नींद से हम बेदार हुए आवाज़ किसी ने दी हमको, आक़ा ने किया है याद तुम्हे क्या खूब तुम्हारी क़िस्मत है” को सराहा गया. सादिक़ अलापुरी का यह शेर “अपना के तुम्हारी सीरत को अब्दाल क़ुतब और ग़ौस बने,इंसान को बना दे जो कुंदन वो पाक तुम्हारी सीरत है” को खूब पसंद किया गया। हाजी सईद ने “हम भी हैं क़दीरी दीवाने हम भी हैं हुसैनी मस्ताने, हम इश्क़ ऐ नबी में रहते हैं ये इश्क़ हमारी दौलत है” पढ़कर अक़ीदत का नज़राना पेश किया। “वल्लाह रसूलों में जैसे सरकार को हासिल रिफत है,वैसे ही हर एक उम्मत से बेहतर सरकार की उम्मत है” डा.नईम शवाब कासगंजवी ने पढ़ा। डा.अमन ने “ऐ अमन यक़ीन ऐ कामिल है उस नात में उनकी नुदरत है, जिसने नात से कहने वालो को सरकार से जितनी उल्फ़त है” यह आशार पढ़ा। सरवत परवेज़ सहसवानी ने “जब आपसे अपनी दुनिया है जब आपसे अपनी जन्नत है, हम ग़ैर के दर पे क्यों जाएं जब आपसे हमको निस्बत है” यह शेर पढ़ा। नवाब अख्तर मोहनपुरी ने “क्या उसको घटाएगा कोई चौतरफा जिसकी हुकुमत है,मठ्ठी भर मुनकिर हैं उसके दीवानों की अक्सरियत है” यह शेर पढकर महफिल का समां बांधा। “दरगाह वली में आये लोगों सरकार की जश्ने विलादत है, माहोल बनाने नूरानी हर सिम्त खुदा की रहमत है” असरार नसीमी ने पढ़ा। असद मिनाई ने यह आशार पढा़ “ये इल्मों हुनर ये फ़हमो ज़का़ अल्फ़ाज़ के मेरे अज़मत है,सरकार की सीरत पे लिखना ये मेरे कलम की नुदरत है”. बिलाल राज़ के इस शेर पर खूब वाह वाह मिली “जिस दिन से हलीमा के घर पर तशरीफ़ पयम्बर लाये हैं,उस दिन से हलीमा के घर की हर चीज़ में ख़ैरो बरक़त है”। हिलाल बदायूँनी,ज़ौक़ वज़ीरगंजवी, अयाज़ बिसलपुरी, मौलाना सद्दीक, सलीम चाँदपुरी, आदि शोअरा हज़रात ने भी अपने कलाम पढ़े।

मुशायरे के इख़्तेताम के बाद सलात व सलाम हुआ और आख़ीर में सज्जादानशीन अल्हाज अनवर मियाँ हुज़ूर ने मुल्क में अम्न व चैन के लिए दुआ ए ख़ैर की।

मुशायरे में लखनऊ,इलाहाबाद, हैदराबाद ,शाहजहाँपुर, मुरादाबाद, रामपुर, उत्तराखंड के विभिन्न ज़िलों के ज़ायरीनों ने भी शिरकत की। इस मौके पर सय्यद नाज़िर अली (चाँद ), आरिफ़ उल्लाह, मो. उस्मान, ताहिर जमाल, ग़िज़ाल सिद्दिकी,इफ़्तेकार हुसैन,मोहसिन खान,गौहर मिर्ज़ा, फ़राज़ शमसी, गुड्डू ड्रीम्ज़,हारून खान,कैफ़ी उल्लाह, गाज़ी,सय्यद आदिल अली,सय्यद मुजाहिद अली (पोस्ट वार्डन), शावेज़ अली (सेक्टर वार्डन), उज़ैर आदि मौजूद रहे।

“ज़ायरीनों के लिए लंगर का इंतज़ाम रहा जिसे इरशाद, तौक़ीर, शाकिर, रिज़वान, ज़ीशान, मोहम्मद क़ासिम, हाजी पप्पू आदि ने बख़ूबी अंजाम दिया”।

सय्यद नाज़िर अली(चांद)

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