Bareilly News : खानकाहे नियाजि़या में उम्मीदों का जश्न ,जश्ने चिरागां सम्पन्न
बरेली से लगभग 259 वर्ष पूर्व हज़रत गौसुरल आज़म (रजि0अ0) ने सपने में हज़रत शाह नियाज़ (रजि0) को विशारत दी
कि 17 रबीउस्सनी (हज़रत गौस पाक़ के विसाल के दिन) को गौस पाक के नाम का चिरागां किया किया । इस दिन जो ग़ौस पाक के नाम का मन्नत का चिरागां उठाएगा उसकी मन्नत के वसीले से एक साल के अन्दर पूरी कर देगा। जब से आज तक गौसुल आज़म दस्तगीर (रजि0) का यह फैज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब कि़बला के वसीले से ज़ारी है और इंशाअल्लाह क़यामत तक ज़ारी रहेगा। 15 दिसम्बर बरेली खानकाह-ए-आलिया नियाजि़या में आज हज़रत गौस पाक के नाम के जश्ने चिरागां का दृश्य अनोखा व निराला था। चारों तरफ मन्नतों की रौशनी थी इन चिरागों की रौशनी अकीदतमन्दों के दिलों की उम्मीदों की रौशनी को व्यक्त कर रही थी। हर व्यक्ति चाहे हिन्दू हो या मुसलमान या किसी भी साम्प्रदाय का हो यहाँ सिर्फ क ही रंग में रंगा हुआ था। अकीदतमन्द श्रद्धा से शराबोर हर व्यक्ति हाथों से चिराग लिये या चिराग लेने की उम्मीद लिये अपनी दुआओं और प्रार्थनाओं में व्यस्त थासाम्प्रदायिक सद्भावना का अद्भुत दृश्य था। किसी को किसी की खबर नहीं थी हर व्यक्ति मन्नत का चिराग हासिल चाहें कितनी देर हो जाये लेकिन मन्नत का चिराग ज़रूर लेकर जाना है इस मन्नत पर ढ़ेर सारी उम्मीदें टिकी हुई हैं और अगर आज यह मौका निकल गया तो फिर साल भर के बाद आयेगा। इतनी भारी भीड़ के बावाजूद लोग अदब, संयम व अनुशासन के साथ लाइन में लगे हुए अपनी बारी का इन्तेज़ार कर रहे थे। मन्नतों के चिराग सज्जादानशीन हज़रत हसनैन मियाँ साहब किबला के बाद नायाब सज्जादा हज़रत मेंहदी मियाँ साहब द्वारा देर रात तक बाँटे जाते रहे। कव्वाली के बाद देर रात हज़रत गौसुल आज़त व हज़रत महबूबे इलाही निज़ामद्दीन औलिया (रजि0) का कुल शरीफ सम्पन्न हुआ। सज्जादा साहब ने अमन-ओ-आलम, मुल्क व क़ौम व हाज़रीन के लिए दुआ फरमाई। जश्ने चिरागां की सारी व्यवस्थायें प्रबन्धक शब्बू मियाँ साहब द्वारा देखी गई उनका सहयोग खानदान के अन्न अफराद मुरीदीन व उनके सचिव मौलाना कासिम का विशेष सहयोग रहा। मेडिकल कैम्प पर बीमारों का उपचार चलता रहा। इस दौरान पर ऐलान के साथ-साथ हज़रत गौस पाक हज़रत महबूबे इलाही की शान में मनकबतें पढ़ी जाती रहीं। गौस पाक के सदके में कुतबे आलम हज़रत शाह नियाज़ के वसीले से अल्लाह तआला की बेहिसाब इनायतों करम का यह मन्ज़रत देखकर शायद की ज़बान पर बेसाखता यह अशआर आ रहे थे।अपनी हर मुश्किल को आसाँ कीजिए।गौसे आज़म का चिरागाँ कीजिए।।गौस का सदका़ा नियाज़ी सिलसिला।लेके अपने ग़म का दरमाँ कीजिए।।