प्राचीन भारतीय समाज में नहीं थी जाति व्यवस्था

श्री रामायण मंदिर में चल रहे 13 दिवसीय तुलसी जयंती महोत्सव में आज पठानकोट से पधारे कथा व्यास श्री रविनंदन शास्त्री जी ने श्रीरामचरितमानस जी की कथा करते हुए कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्रीरामचरितमानस जी के आरंभ में लिखा बंदऊं प्रथम महीसुर चरना ,मोह जनित संसय सब हरना . गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस जी का आरंभ करते हुए ब्राह्मणों की वंदना की है.

ब्राह्मण शब्द की व्याख्या करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी की मानस जी के माध्यम से रामकथा विशेषज्ञ रविनंदन शास्त्री जी ने कहा कि जो ब्रह्म को जानता है वह ब्राह्मण है .उन्होंने इतिहास से अनेक उदाहरण देकर यह स्पष्ट किया कि केवल जन्म से ब्राह्मण होना पर्याप्त नहीं अपितु ब्राह्मण वाले कर्मों का होना भी आवश्यक है .उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं चतुर्वर्णं मया स्रष्टा गुण कर्म विभागश: .इसके पश्चात रविनंदन शास्त्री जी ने ब्राह्मणोचित कर्मो की विस्तार से व्याख्या की .

उन्होंने यह भी बताया कि सज्जन और दुर्जन दोनों ही दुख देते हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि सज्जन बिछड़ने पर दुख देता है और दुर्जन मिलने पर .कथा व्यास ने स्पष्ट किया कि सज्जन का चरित्र कपास की भांति होता है जो अत्यंत दुख सहन करके भी दूसरों के दुख को हरता है और उनकी लज्जा की रक्षा करता है अंत में उनके द्वारा करण प्रे स्वर में गाए गए भजन सतगुरु तुम्हारे प्यार ने जीना सिखा दिया पर श्रद्धालुओं को झूमने को विवश कर दिया मीडिया प्रभारी जगदीश भाटिया ने बताया कि कथा का विश्राम 12 अगस्त को होगा आज के कार्यक्रम में अनिल अरोरा नवीन अरोड़ा हरीश सेठी अशोकअरोरा बाल किशन अरोरा नितिन सेठी आदि का विशेष सहयोग रहा.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: